कोलकाता : सांस्कृतिक पुर्निर्माण की ओर से कोरोना काल में हिंदी कविता विषय पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए भारतीय भाषा परिषद के निदेशक प्रो. शंभुनाथ ने कहा कि कोरोना ने हमें बिल्कुल एक नई दुनिया में ला दिया है। यह समय अनिश्चिता, संदेह और भय का समय है। अब हमें इन घटनाओं और इस समय के सच के साथ ही जीना होगा। हिंदी कविता ने हमें कोरोना संकट और बंधनों से पार ले जाने का कार्य किया है। हिंदी कविता की प्रतिबद्धता जनसरोकारों के साथ है। कोरोना काल में उपजे अकेलेपन में कविता और टेक्नोलॉजी ने हमें जोड़कर रखा है। प्रो. इतु सिंह ने कहा कि कोरोना काल पर कुछ भी कहना मुश्किल है क्योंकि हम जिस धारा में बह रहे हों उस समय उस पर अधिकार पूर्वक कुछ भी कहना संभव नहीं है। बावजूद इसके मैं कोरोना काल में रचित हिंदी कविता को लेकर आश्वस्त हूं। इस काल की कविता में प्रकृति और जीवन को लेकर गंभीर चिंतन दिखता है। डॉ. अवधेश प्रसाद सिंह ने कहा कि कोरोना काल में मनुष्यता पर आए संकट को हिंदी कविता ने बड़ी ईमानदारी और संवेदना के साथ व्यक्त किया है। कवि मृत्यंजय कोरोना काल को एक संभावना काल के रूप में देखते हैं। उन्होंने कहा कि कोरोना काल में हिंदी कविता समृद्ध हुई है। प्रो. संजय जायसवाल ने कहा कि कोरोना काल को हिंदी कविता में संकट के समय सृजन का काल कह सकते हैं। इस समय की कविता में कोरोना की भयावहता और व्यवस्था के प्रति आक्रोश के स्वर के साथ प्रवासी मजदूरों की पीड़ा को बेबाकी के साथ व्यक्त किया गया है। इस अवसर पर कर्नाटक, झारखंड, उत्तर प्रदेश के अलावा आसनसोल, मिदनापुर, खड़गपुर, कोलकाता आदि जगहों से भारी बड़ी संख्या में प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम का सफल संचालन करते हुए प्रो. मधु सिंह ने कहा कि कोरोना काल में हिंदी कविता ने काव्य धर्म का निर्वाह किया है। कार्यक्रम का संयोजन प्रो. राहुल गौड़ एवं धन्यवाद ज्ञापन संस्था के महासचिव डॉ राजेश मिश्र ने दिया।