1850 में स्थापित हुआ था चेतला में स्थित यह स्कूल
संस्थापक कैलाश दास बढ़ई थे, जीवन की आधी कमाई इस विद्यालय को दी
नवजागरण के दौरान बहुत से शिक्षण संस्थान खुले और इनके पीछे उस समय के कई बड़े समाज सुधारकों का योगदान रहा। यह वह समय था जब हमारा समाज जाति – पात, ऊँच – नीच के बन्धनों में जकड़ा था। किसी गरीब परिवार के पिछड़े बच्चों के लिए ऐसे शिक्षण संस्थानों के दरवाजे अब भी नहीं खुले थे मगर शिक्षा पर सबका हक है, ये बात आम जनता समझने लगी थी। शिक्षित होने और एक अच्छा जीवन जीने की चाह तड़प बन उठी थी और तब 18वीं सदी में एक अशिक्षित बढ़ई कैलाश दास ने वह किया जो आज भी हमारे सामने मिसाल बनकर खड़ा है।
इतिहास के पन्नों में इनका नाम नहीं मिलता या यूँ कहें कि खो गया है मगर 1850 में जरूरतमंद बच्चों को शिक्षित करने की जो तड़प थी…उसके कारण इन्होंने एक शिक्षण संस्थान खोला जो आज चेतला सेन्ट्रल रोड में कैलाश विद्या मंदिर के रूप में हमारे सामने खड़ा है। वे कलकत्ता कोर्ट में काम किया करते थे। उन्होंने अपनी आधी कमाई इस स्कूल को दे दी। 11 कट्ठा जमीन दी, शिक्षकों का खर्च भी खुद उठाया और तब जाकर बना यह विद्यालय..कल्पना की जा सकती है कि यह सब उनके लिए कितना कठिन रहा होगा।
यह स्कूल कई उतार – चढ़ाव देख चुका है औऱ कई कठिनाइयों से गुजर चुका है…और एक वक्त तो ऐसा आया जब ऐसा लगा कि यह शिक्षण संस्थान अपना अस्तित्व खो बैठेगा। वह कहते हैं कि जब आप किसी नेक इरादे से कोई काम करते हैं तो खुद ईश्वर आपकी रक्षा करता है और आपके सपने को सम्भालता और सहेजता है और किसी को आपकी सहायता के लिए भेज देता है। कैलाश दास ने इस स्कूल की स्थापना एक बेहद ऊँचे उद्देश्य के साथ की थी इसलिए जब उनका सपना अस्तित्व खोने की कगार पर आया तो जैसे ईश्वर ने उस सपने को सहेजने का जिम्मा उठाया और यहीं से शुरू होती है एक ऐसे स्कूल की कहानी, जिसे एक बढ़ई ने बनाया और शिक्षक ने जीवनदान देकर सँवारा..2000 में प्रधान शिक्षक के रूप में स्कूल की बागडोर सम्भालने वाले ये शिक्षक हैं विश्वजीत मित्र।
विश्वजीत मित्र सिर्फ कैलाश विद्या मंदिर के प्रधान शिक्षक ही नहीं बल्कि माध्यमिक शिक्षक और शिक्षा कर्मी के महासचिव भी हैं। इस शिक्षक संगठन ने इस साल 50 वर्ष पूरे किये और विश्वजीत मित्र एक बार फिर महासचिव चुने गये। कहने की जरूरत नहीं है कि इनको एक साथ दो मोर्चों पर लड़ाई लड़नी पड़ी है। एक तरफ शिक्षकों और शिक्षाकर्मियों के अधिकार की लड़ाई तो दूसरा संघर्ष अपने स्कूल को बचाने का….। तब पास – फेल हटाने के साथ अंग्रेजी हटा देने के कारण अंग्रेजी माध्यम के निजी विद्यालयों का प्रसार होने लगा। इस कारण से बांग्ला माध्यम स्कूलों में विद्यार्थी कम होने लगे।
1976 में चेतला ब्वॉयज स्कूल को उच्च माध्यमिक बनाया गया जबकि कैलाश विद्या मंदिर माध्यमिक ही रह गया। शिक्षकों की नियुक्ति भी ठप हो गयी इसलिए छात्र और भी कम होने लगे। 1999 में उच्च माध्यमिक का दर्जा मिला तब भी विद्यार्थी कम थे।
कारण यह था कि जब विश्वजीत मित्र ने जिम्मेदारी सम्भाली तो विद्यार्थियों की संख्या इतनी कम हो गयी थी कि स्कूल शिक्षा विभाग कैलाश विद्या मंदिर का विलय चेतला ब्वॉयज स्कूल में करने की तैयारी करने जा रहा था।
ऐसी स्थिति में प्रधान शिक्षक विश्वजीत मित्र ने स्कूल को को एड बनाने का निर्णय लिया मगर उच्च माध्यमिक शिक्षा परिषद का कहना था कि लड़कों का एक स्कूल पास होने के कारण कैलाश विद्या मंदिर को कोएड नहीं किया जा सकता क्योंकि चेतला ब्वॉयज स्कूल पास ही था।
तब इस इलाके में हिन्दीभाषी लड़कियों के लिए स्कूल की कमी एक समस्या थी। उनको बड़ाबाजार आना पड़ता था। बहुत से अभिभावकों के कहने पर मित्र ने उनको मास पिटिशन का सुझाव दिया। मुहिम रंग लायी और स्कूल को एड हुआ। लड़कियों के साथ अन्य बोर्ड के विद्यार्थी भी आने लगे। मगर अब विद्यार्थी बहुत अधिक थे और स्कूल की बुनियादी संरचना को उन्नत करने की जरूरत थी। ऐसी स्थिति में लड़कियों के लिए उच्च माध्यमिक स्तर की पढ़ाई की व्यवस्था की गयी।
2008 में आएला के कारण स्कूल के भवन को क्षति पहुँची तो सभी शिक्षकों ने इस विशाल स्कूल प्रांगण में जरूरतमंद बच्चों के लिए पूरी तरह निःशुल्क छात्रावास स्थापित करने की पहल की। कुछ समय के लिए खर्च विश्वजीत मित्र ने खुद उठाया। बाद में सर्व शिक्षा मिशन ने जिम्मेदारी ली और आज जरूरतमंद बच्चे निःशुल्क रहते हैं। तब कार्तिक मान्ना ने इस मुहिम में बहुत मदद की। सिस्टर सिरिल से लेकर राज्य सरकार से सहायता मिली। इस छात्रावास में 100 गरीब विद्यार्थी रह रहे हैं।
2012 में सर्व शिक्षा मिशन के सहयोग से जरूरतमंद बच्चों के लिए नगरीय आवासीय ईकाई बनी और इसका उद्घाटन तत्कालीन शिक्षा मंत्री ने इसका उद्घाटन किया। विश्वजीत मित्र ने अमेरिकन सेंटर के साथ काम किया तो शैक्षणिक सुविधाओं को लेकर यहाँ से मदद मिली। अमेरिकन सेंटर से मदद मिली और स्कूल में कार्य़शालाएं हुईं। हर शनिवार को स्कूल की गतिविधियों में गीत, जादू, चित्रांकन, नाटक, आवृत्ति के साथ फुटबॉल का प्रशिक्षण भी शामिल हो गया। स्कूल ने फुटबॉल अकादमी स्थापित की जिसे शिक्षकों का सहयोग मिला। स्कूल यू एस आई ई एस के साथ विगत 4-5 सालों से कई गतिविधियाँ संचालित कर रहा है।
2017 में प्रख्यात विद्वान डेविड सनशाइन हैम्बरगर ने इस स्कूल में 10 माह तक पढ़ाया। स्कूल की सह शिक्षिका शर्मिला सेनगुप्ता शैक्षणिक विनिमय कार्यक्रम फुलब्राइट एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत 42 दिन के लिए स्कूल की तरफ से वर्जिनिया पढ़ाने के लिए गयीं। 2017 से सेनगुप्ता के मार्गदर्शन में इन्टेक के सहयोग से इस स्कूल में बच्चों ने शॉर्ट फिल्म का निर्माण शुरू किया और अब तक 3 फिल्में बना चुके हैं। फ्रांस और स्विट्जरलैंड जैसे कई देशों से शिक्षक आकर पढ़ा चुके हैं।
यह शिक्षण संस्थान जरूरतमंद बच्चों के लिए ही है क्योंकि 95 प्रतिशत अभिभावक रोज कमाकर खाने वाले ही हैं। सन् 2000 में जिस स्कूल में 100 से भी कम विद्यार्थी थे. आज वहाँ 650 विद्यार्थी हैं। कोरोना के दौरान यहाँ पर ऑडियो – विजुअल सेमिनार हुआ। स्कूल में लगातार गतिविधियाँ होती रहती हैं। यहाँ हाल ही में बेहद खूबसूरत पुस्तकालय बनाया गया है जिसमें 1 हजार से अधिक किताबें हैं।
कैलाश विद्या मंदिर एक मिसाल है कि अगर इरादे नेक और मजबूत हों तो कुछ भी असम्भव नहीं होता…जरूरत बस कदम उठाने की है।