कीनू के बाग ने किसान को बनाया मालामाल, कमा रहा लाखों

चोपटा : नहरी पानी की कमी, बारिश समय पर न होना, फसलों में विभिन्न प्रकार की बीमारियां व अन्य प्राकृतिक आपदाओं के आने से किसानों को परंपरागत खेती से घाटा ही होने लगा। जब परम्परागत खेती से आमदनी कम हो जाती है और आर्थिक स्थिति डांवांडोल हो जाती है तो विचलित होना स्वाभाविक है, लेकिन गाँव नारायण खेड़ा (सिरसा) के किसान विकास पूनियां ने हौसला हारने की बजाए कमाई का जरिया खोजा।
उसने अपने घर की आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाए रखने के लिए 9 वर्ष पूर्व में 25 एकड़ भूमि में कीनू का बाग लगाया। इससे परंपरागत कृषि के साथ अतिरिक्त आमदनी शुरू हो गयी। लीक से हटकर कुछ करने के जज्बे ने विकास को हरियाणा के साथ – साथ निकटवर्ती राजस्थान के आस – पास के गांवों में अलग पहचान भी दिलवाई जिससे किसानों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गया। विकास पूनिया ने बताया कि रेतीली जमीन व नहरी पानी की हमेशा कमी के कारण परंपरागत खेती में अच्छी बारिश होने पर तो बचत हो जाती वरना घाटा ही लगता। 9 वर्ष पूर्व तत्कालीन सरकार ने समाचार पत्रों में विज्ञापन दिया कि किसान खेतों में बाग लगाए तो उन्हें कई प्रकार की रियायतें दी जाएंगी। समाचार पत्रों से पढ़कर स्कीम के बारे में विभाग से जानकारी लेकर व वहां से प्रेरणा लेकर 25 एकड़ जमीन में कीनू का बाग लगाया।
कीनू के पौधों में के साथ – साथ मौसमी फसलें गेहूं, सरसों, ग्वार बाजरा व कपास नरमे की खेती भी करता है। कीनू के बाग से उसे पहले 25 लाख रुपये सालाना अतिरिक्त आमदनी होने लगी है। उसने बताया कि सरकार के सहयोग से उसने खेत में एक पानी की डिग्गी भी बना ली है। उस डिग्गी में पानी इकट्ठा करके रखता है। जब भी सिंचाई की जरूरत होती है तभी कीनू के पौधों व फसलों मे सिंचाई कर लेता है। वह सिंचाई ड्रिप सिस्टम द्वारा की जाती है, जिससे पानी व खाद व दवाई सीधे पौधों को मिल जाती है तथा पानी बेकार नहीं जाता। आस पड़ोस के किसानों को जब भी सिंचाई के पानी की जरूरत नहीं होती तो वह उन किसानों से किराए पर पानी लेकर डिग्गी भर लेता है।
विकास पूनिया ने बताया कि उसके बाग को देखकर गाँव के कई किसानों ने भी कीनू के बाग लगाकर कमाई शुरू कर दी है। पास लगते कई गाँवों के किसान कीनू का बाग देखने के लिए आते हैं और परंपरागत खेती के साथ अतिरिक्त कमाई का जरिया देखकर खुश होते हैं। विकास ने बताया कि वह सब्जियां अपने खेत में ही उगाता है, कभी भी बाजार से नहीं लाता। जल्दी सिंचाई की जरूरत नहीं होती।
मंडी दूर होने के कारण यातायात खर्च ज्यादा हो जाता है
विकास पूनिया ने बताया कि उसके गांव से सिरसा मंडी दूर पड़ताी है जिससे फलों को वहां ले जाकर बेचने में यातायात खर्च ज्यादा आता है तथा बचत कम होती है। उसका कहना है कि अगर फलों की मंडी या फ्रूट प्रोसेसिंग प्लांट नाथूसरी चोपटा में विकसित हो जाए तो यातायात खर्च कम होने से बचत ज्यादा हो जाएगी।

(साभाार – अमर उजाला)

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