किडनी रोग के उपचार में आयुर्वेदिक दवा नीरी केएफटी असरदार

अध्ययन में किया गया दावा
नयी दिल्ली । आयुर्वेदिक औषधियों से तैयार दवा नीरी केएफटी और आयुर्वेदिक औषधि ‘कबाब चीनी’ उन मरीजों के गुर्दों की कार्यक्षमता में सुधार लाने में प्रभावी हो सकती है जो गुर्दे के रोगों से जूझ रहे हैं।
राष्ट्रीय यूनानी चिकित्सा संस्थान के एक नवीनतम अध्ययन में यह दावा किया गया है। एविसेना जर्नल ऑफ मेडिकल बायोकेमिस्ट्री में प्रकाशित अध्ययन में जागरूकता के कम स्तर के बावजूद विभिन्न बीमारियों के इलाज में पारंपरिक चिकित्सा की क्षमताओं का उल्लेख किया गया है।
अध्ययन के हिस्से के रूप में, बेंगलुरु में संस्थान के अनुसंधानकर्ताओं ने 30 रोगियों को यादृच्छिक रूप से दो समूहों में वर्गीकृत किया। अध्ययन के अनुसार रोगियों के एक समूह को नीरी-केएफटी दी गई, जबकि दूसरे समूह को कबाब चीनी (पाइपर क्यूबेबा)। 42 दिनों के बाद, दोनों समूहों में ‘सीरम क्रिएटिनिन’ के स्तर में कमी देखी गई। अध्ययन के मुताबिक इस दौरान ग्लोमेरुलर फिलट्रेशन रेट (जीएफआर) में वृद्धि हुई है जो बेहतर गुर्दे की कार्यप्रणाली के संकेतक है।
अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि मरीजों को भूख और थकान में भी सुधार का अनुभव हुआ। इस बारे में पूछे जाने पर, इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ सलाहकार एवं गुर्दारोग विशेषज्ञ डॉ. जयंत कुमार होता ने कहा कि इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि भारतीय दवाओं में कई तत्व गुर्दे की बीमारियों को ठीक करने या रोकने में सहायक हो सकते हैं, लेकिन किसी निश्चित निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए सर्वेक्षण में शामिल नमूनों का आकार कम है। हालांकि, एमिल फार्मास्यूटिकल्स के कार्यकारी निदेशक डॉ. संचित शर्मा ने कहा कि पारंपरिक चिकित्सा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल रही है।
उन्होंने उन्होंने कहा कि आयुर्वेद में गुर्दे को मजबूती देने के लिए कई औषधियों का जिक्र है और नीरी केएफटी पर अब तक कई चिकित्सा अध्ययन हुए हैं जिनमें इसे असरदार पाया गया। इंटीग्रेटेड मेडिकल एसोसिएशन (आयुष) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. आरपी पराशर ने कहा कि आयुर्वेद में मूत्र विकारों और गुर्दे की बीमारियों के इलाज के लिए कई दवाएं हैं जो एंटी-ऑक्सीडेंट और इम्यूनो-मॉड्यूलेटर के रूप में भी काम करती हैं। उन्होंने कहा, ‘ये दवाएं पाचक रसों, एंजाइमों और रसायनों के स्राव को बढ़ाती हैं, शरीर को विषमुक्त करती हैं, उच्च रक्तचाप और सूजन को कम करती हैं।’
अध्ययन के अनुसार जटिल गुर्दा रोगों का दुनिया भर में मृत्यु के कारण और सामाजिक व आर्थिक बोझ के रूप में 19वां स्थान है और यह दुनिया की 10 प्रतिशत से अधिक आबादी को प्रभावित करता है। विकासशील देशों में जटिल गुर्दा रोगों का का प्रचलन अधिक है। शोधकर्ताओं के अनुसार, समय पर पहचान न होने से क्रोनिक किडनी डिजीज यानी सीकेडी का बोझ लगातार बढ़ रहा है। वैश्विक स्तर पर यह करीब 13 फीसदी तक है। भारत की बात करें तो 10 में से नौ सीकेडी रोगी महंगे उपचार का भार नहीं उठा सकते। इसलिए सस्ते विकल्प के तौर पर पारंपरिक चिकित्सा के वैज्ञानिक तथ्यों का पता लगाने के लिए यह अध्ययन किया गया।
(इनपुट- भाषा)

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