सरकार भले ही कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न से संबंधित कानून का पालन नहीं करने वाली कंपनियों पर चाबुक चलाने के प्रयासों में जुटी है, लेकिन बड़ी संख्या में निजी क्षेत्र की कंपनियों को इस कानून के बारे में पता तक नहीं है। कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (प्रीवेन्शन, प्रोहिबिशन एंड रिड्रेसल) कानून 2013 के अनुपालन पर एक कंपनी द्वारा 2015 में किए गए सर्वेक्षण में ये संकेत मिले हैं कि 97 फीसदी कंपनियां कानून और उसे अमल में लाने के बारे में वाकिफ ही नहीं हैं।
इसके अलावा कंपनी द्वारा सूचना के अधिकार कानून के तहत भेजे गए आवेदनों से यह पता चला है कि केवल राजस्थान ने कानून की निगरानी के लिए जिला अधिकारियों के माध्यम से आवश्यक स्थानीय शिकायत समिति और नोडल अधिकारियों की नियुक्ति की है।
कंपनी के अधिकारियों के अनुसार कानून और इसको लागू करने के बारे में जागरुकता सबसे बड़ी चुनौती है। महिला और बाल विकास मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार वर्ष 2014 में महिलाओं के साथ कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के 520 से अधिक मामले आए, जिसमें 57 मामले कार्यालय परिसर के अंदर प्रकाश में आए, जबकि 469 मामले काम से संबंधित अन्य स्थानों से जुड़े थे।
सार्वजनिक और निजी कार्यस्थलों पर महिलाओं को यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए दिसंबर, 2013 में यह कानून लागू किया गया था। कहने की जरूरत नहीं है कि ऐसे मामलों में कमी नहीं आयी है मगर अधिकतर मामलों में या तो महिलाएं खामोश रहती हैं या नौकरी छोड़ देती हैं। अगर कोई मामला सामने आता भी है तो कई कम्पनियाँ उस महिला को बर्खास्त कर देती है और अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके या तो मामला दबा देती हैं या फिर महिला का कॅरियर ही नष्ट कर दिया जाता है। जाहिर है कि किसी भी आम महिला के लिए लम्बी कानूनी लड़ना बेहद मुश्किल है और यही वजह है कि अधिकतर मामलों में वह या तो हार मान लेती है या नौकरी छोड़ देती है। हर क्षेत्र में इस तरह के अपराधों को लेकर हर दूसरी कम्पनी का प्रबंधन इतना सहयोगी हो जाता है कि अपराधी अपनी पहचान का इस्तेमाल कर मीडिया में उस औरत को बदनाम कर छोड़ता है और उसे कहीं नौकरी नहीं मिलती। कम्पनियाँ अपनी छवि को चमकदार बनाए रखने के लिए भी ऐसे मामलों को दबा देती हैं क्योकि उत्पीड़न करने वाला अगर कम्पनी के लिए फायदेमंद है तो इसका असर कम्पनी पर पड़ेगा इसलिए अपराधी खुले घूम रहे हैं और लड़कियाँ विवश हैं। अगर यही स्थिति रही तो हालात कभी नहीं सुधरने जा रहे हैं।
कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न, लैंगिक समानता, जीवन और स्वतंत्रता को लेकर महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन है। कार्यस्थल पर महिलाओं के लिए अनुरूप वातावरण न होने की स्थिति में उनके लिए वहां कार्य करना मुश्किल हो जाता है और अगर ऐसे में यौन उत्पीड़न होता है तो महिलाओं की भागीदारी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इस वजह से, देश की महिलाओं आर्थिक सशक्तिकरण और उनके समावेशी विकास पर भी प्रतिकूल प्रभाव होता है। सुहानी ने एक प्रसिद्ध कॉलेज से हाल ही में अपना एमबीए पूरा किया और वह एक मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छे पद पर काम कर रही थी, लेकिन कुछ दिनों से उसके बॉस का व्यवहार उसके प्रति अजीब सा हो गया था, वह उसे शॉर्ट्स पहनने के लिए कहते और हमेशा अपने साथ ही रखने की कोशिश करते, ऐसे माहौल में सुहानी सही से अपना काम नहीं कर पा रही थी और वह हतोत्साहित होती जा रही थी, और कुछ ही समय बाद वह डिप्रेशन का शिकार हो गई। ऐसी कहानी कई महिलाओं और लड़कियों की है जो यौन उत्पीड़न के कारण अपने आप की काबिलियत को साबित नहीं कर पाती है, समाज के डर की वजह से आवाज नहीं उठाती हैं और कई शारीरिक समस्याओं की शिकार हो जाती हैं।
यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं को सिरदर्द, उल्टी, वजन कम होना, आत्मविश्वास खो देने और डिप्रेशन व तनाव जैसी कई समस्याएं हो जाती हैं। मानसिक और भावनात्मक आघात पहुँचने के कारण वो हर किसी पर से अपना विश्वास खो देती हैं। क्या होता है यौन उत्पीड़न: कार्यस्थल पर महिलाओं को ज़बरन परेशान करना, उनके साथ अश्लील बातें करना और छेड़छाड़ करना, शरीर को छूने का प्रयास करना, गंदे इशारे करना आदि जैसे कृत्य यौन उत्पीड़न की श्रेणी में आते हैं। महिलाओं की स्थिति हाल ही में हुए कुछ सर्वे से पता चला है कि लंबे समय तक कार्यस्थल पर यौन शोषण या उत्पीड़न होने पर महिला की मानसिक स्थिति इतनी खराब हो जाती है कि वह तनाव में रहने लगती है। अपने आप को सामाजिक रूप से अलग कर लेती है और किसी भी समारोह आदि में जाना पसंद नहीं करती है। कई बार, उनके मन में आत्महत्या करने का ख्याल भी आता है। यौन शोषण की शिकार हुई महिलाएं अक्सर स्लीप डिस्ऑर्डर से ग्रसित हो जाती हैं क्योंकि वह नींद की दवाईयों आदि का सेवन करना शुरू कर देती हैं। यौन उत्पीड़न के लिए कानून कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से महिलाओं का संरक्षण (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 में कार्यस्थल पर महिलाओं पर होने वाले यौन शोषण पर प्रकाश डाला गया है और एक शिकायत निवारण तंत्र प्रदान किया गया है। अधिनियम पर पिछले वर्ष सरकार के द्वारा इसके प्रवर्तन को सुनिश्चित करने के लिए प्रयास किया गया है। यह अधिनियम, महिलाओं के समानता के मौलिक अधिकारों की पुष्टि करता है जिसमें अंर्तगत उन्हें पूरी गरिमा और अधिकार के साथ समाज में रहने, किसी व्यवसाय, व्यापार या कार्य को करने की स्वतंत्रता है जिसमें भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(छ) तहत प्रदान किए गए नियम के अनुसार, कार्य स्थल का वातावरण पूरी तरह सुरक्षित और यौन शोषणरहित होना भी शामिल है।
सरकार क्या कर रही है इस मुद्दे को प्रमुखधारा में आगे बढ़ाने के लिए और उनकी प्रतिक्रिया तंत्र का मानकीकरण करने में मदद करने के लिए, महिला और बाल विकास मंत्रालय ने हाल ही में इस अधिनियम पर एक हैंडबुक को प्रकाशित किया है। ऑनलाइन इस हैंडबुक को http://goo.gl/0a3Of9 लिंक से डाउनलोड किया जा सकता है। इस बुकलेट को सभी केन्द्रीय सरकारी मंत्रालयों और विभागों, राज्य सरकारों और रेडी रेकनर के रूप में उपयोग करने के लिए व्यापार मंडलों को भी भेज दिया गया है। भारत सरकार के मंत्रालयों और विभागों को महिला और बाल विकास मंत्रालय के द्वारा सलाह दी गई है कि इस अधिनियम के अनुपालन को सुनिश्चित किया जाए। भारत के वाणिज्य और उद्योग के एसोसिएट चैम्बर्स (एसोचैम), वाणिज्य और उद्योग के भारतीय चैम्बर्स के फेडरेशन (फिक्की), सीसीआई, नैसकॉम से भी इस अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने का अनुरोध किया गया है। महिला और बाल विकास मंत्रालय, कम्पनियों की वार्षिक रिपोर्ट में आंतरिक शिकायतों समिति (आईसीसी) के संविधान के प्रकटीकरण को जनादेश करने के लिए प्रयत्नशील है। जैसा कि ऊपर पहले ही उल्लेख किया जा चुका है कि इस अधिनियम में महिलाओं की आयु, व्यवसाय, कार्यस्थल वातावरण को लेकर हर बात स्पष्ट है, हर महिला को लैंगिक समानता का अधिकार है। महिलाएं, चाहें सरकारी क्षेत्र में कार्यरत हों या प्राईवेट क्षेत्र में; यह अधिनियम उनके हित के लिए हर क्षेत्र में सरकार के द्वारा लागू किया जाता है। यहां तककि घरों में काम करने वाली बाईयों या कर्मियों के लिए भी यह नियम है। यह अधिनियम, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को एक व्यापक तरीके से परिभाषित करता है और यदि किसी संस्थान में 10 से अधिक यौन उत्पीड़न की शिकायतें मिलती हैं तो आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) के गठन पर जोर देती है। यौन उत्पीड़न की शिकायत को कृत्य होने के तीन महीने के भीतर कर देना चाहिए, विभिन्न परिस्थितियों में ज्यादा भी किया जा सकता है। सभी कम्पनियों को सलाह दी जाती है कि वे अपनी महिला कर्मचारियों को इस बारे में जागरूक करें और इसके लिए समय-समय पर वर्कशॉप और जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन करें। इस अधिनियम के अनुसार, राज्य सरकारों व विभागों की जिम्मेदारी है कि वे ध्यान दें कि महिलाओं की सुरक्षा हेतु इस अधिनियम को वे सही से लागू कर रहे हैं या नहीं।
यह सुनिश्चित किया जाता है कि सभी विभाग, महिलाओं को कार्यस्थल पर सुरक्षित वातावरण देने में सक्षम हैं या नहीं। किसी भी प्रकार के मामले को हल्के में न लेने के आदेश भी हैं। अधिनियम, यौन उत्पीड़न के सम्बंध में कार्यस्थलों और रिकॉर्ड्स के निरीक्षणों को करने के लिए समुचित सरकार को अधिकृत करता है। अधिनियम की धारा 26(1) में कहा गया है कि इस अधिनियम के तहत नियोक्ता, अपने कर्तव्यों के उल्लंघन में पाये जाने की स्थिति में 50,000/- रूपए का जुर्माना देने के लिए उत्तरदायी होगा। साथ ही उसका लाईसेंस भी निरस्त भी किया जा सकता है या मामला गंभीर होने पर दोनों ही दंड दिए जा सकते हैं। इसलिए, प्रत्येक नियोक्ता व मालिक का यह मुख्य कर्तव्य है कि कार्यस्थल पर यौन शोषणरहित माहौल प्रदान करें। साथ ही हर व्यक्ति को इस अधिनियम के बारे में जागरूक करें और इसके लिए आवश्यक कार्यशालाओं का आयोजन करें। महिलाओं को लैंगिक समानता और भयरहित माहौल प्रदान करें। इसी प्रकार, पूरे भारत को महिलाओं के लिए सुरक्षित बनाया जा सकता है। कई बार पुरुषों को भी प्रताड़ना का शिकार होना पडता है, ऐसी स्थिति में वे अक्सर शिकायत भी नहीं कर पाते।जरूरी है कि यौैन उत्पीड़न के मामले में महिला और पुरुष, दोनों को ध्यान में रखकर नीति तैयार की जाए। यह कार्यस्थल के साथ देश के विकास के लिए भीी जरूरी है।