कहानी पाटलीपुत्र से पटना तक की ऐतिहासिक यात्रा की

‘नगर का भविष्य उज्ज्वल होगा, मगर बाढ़, आग या आपसी संघर्ष के कारण ये बर्बाद हो जाएगा।’ पाटलिपुत्र (पटना) को लेकर भगवान बुद्ध ने भविष्यवाणी की थी। खैर, करीब 2800 साल बाद भी आधुनिक पटना आबाद है। अनुमान के मुताबिक 30 लाख से ज्यादा लोग रहते हैं। 1500 वर्षों तक अखंड भारत की सत्ता का केंद्र रहा पाटलिपुत्र अब पटना के नाम से मशहूर है। फिलहाल बिहार राज्य की राजधानी है। इस ऐतिहासिक शहर ने पाटलिपुत्र से पटना तक का सफर तय किया है।

पाटलिपुत्र से पटना का सफर
पटना का वैसे तो कोई खास अर्थ नहीं होता है। मगर ये जानना दिलचस्प है कि पाटलिपुत्र से ये ऐतिहासिक शहर पटना कब हो गया? मौजूदा बिहार की राजधानी पटना कभी पाटलिपुत्र के नाम से जाता था। ऐसा कहा जाता है कि आधुनिक पटना करीब तीन हजार साल पहले जब एक गांव था तो यहां बहुत सारे पाटलि वृक्ष थे। इन पाटलि वृक्षों (औषधीय पौधा) के कारण ही इसका नाम पहले पाटलिग्राम और फिर नगर बनने पर पाटलिपुत्र बन गया। गंगा नदी के किनारे और राजधानी होने की वजह से इसका व्यारिक महत्व हमेशा बना रहा। गंगा के बड़े और चौड़े घाटों के कारण यहां बड़े-बड़े जहाजों से माल की ढुलाई होती थी। ये एक बंदरगाही शहर था तो ‘पत्तन’ (पत्तन का निर्माण किया जाता है, ये प्राकृतिक नहीं होते) शब्द इसके साथ जुड़ गया। इसे पाटलिपत्तन या पाटलिपट्टन नाम से भी जाना जाता था। जानकारों के अनुसार ‘पटना’ शब्द ‘पत्तन’ से बना है। ‘पत्तन’ शब्द अपभ्रंश होकर पटना हो गया और इसमें से पाटलि शब्द पीछे छूट गया। 1704 ईस्वी में इसका नाम बदलकर अजीमाबाद भी किया गया, मगर बाद के वर्षों में इसका नाम पटना ही रहा जानकारों के अनुसार ‘पटना’ शब्द ‘पत्तन’ से बना है। ‘पत्तन’ शब्द अपभ्रंश होकर पटना हो गया और इसमें से पाटलि शब्द पीछे छूट गया। यह भी कहा जाता है कि पटना का नाम पाटन देवी के नाम पर पड़ा है ।


राजा पत्रक से अजातशत्रु तक
लोककथाओं में राजा पत्रक को आधुनिक पटना का जनक कहा जाता है। राजा पत्रक ने अपनी रानी पाटलि के लिए जादू से इस नगर का निर्माण किया था। ऐसा माना जाता है कि इसी वजह से इसका नाम पाटलिग्राम पड़ा। बाद में पाटलिपुत्र के नाम से जाना गया। पुरातात्विक अनुसंधानों की मानें तो पटना का इतिहास 490 ईसा पूर्व (आज से करीब 2800 साल पहले) से शुरू होता है। हर्यक वंश के शासक अजातशत्रु (492-460 ईसा पूर्व) ने अपनी राजधानी राजगृह से पाटलिपुत्र में स्थापित की। वैशाली के लिच्छवी वंश से संघर्ष के दौरान राजगृह की अपेक्षा पाटलिपुत्र सामरिक दृष्टि (Strategically) से अधिक रणनीतिक स्थान पर था। गंगा, सोन और पुनपुन नदी से घिरे इस भू-भाग पर अपमा दुर्ग स्थापित किया। पाटलिपुत्र का असली इतिहास अजातशत्रु के शासनकाल से मिलता है।

मौर्य शासन काल पटना का स्वर्ण युग
मौर्य साम्राज्य के उत्थान के बाद पाटलिपुत्र सत्ता का केंद्र बन गया। चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य बंगाल की खाड़ी से आधुनिक अफगानिस्तान तक फैला हुआ था। शुरुआती पाटलिपुत्र लकड़ियों से बना था, मगर सम्राट अशोक ने यहां शिलाओं की संरचना खड़ी की। चीन के फाहियान और युनानी इतिहासकार मेगास्थनीज ने पाटलिपुत्र का लिखित विवरण दिया। ज्ञान की खोज में कई विदेशी यात्री यहां आए। कई राजवंशों ने पाटलिपुत्र से शासन को संभाला। मौर्य वंश के शासन के वक्त जो, गौरव इस शहर को हासिल हुआ, वो फिर बाद में किसी वंश के सत्ता के दौरान नहीं मिला। गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद पटना का भविष्य काफी अनिश्चित रहा। 12वीं सदी में बख्तियार खिलजी ने बिहार पर अपना अधिपत्य जमाया। कई आध्यात्मिक प्रतिष्ठानों को नष्ट कर डाला। उसके बाद से पटना देश का सांस्कृतिक और राजनैतिक केंद्र नहीं रहा।
सूरी का पटन, अंग्रेजों का पटना बना
शेरशाह सूरी (1540-1545 ईस्वी) के शासनकाल में पाटलिपुत्र को ‘पटन’ कहा जाने लगा था, बाद में ब्रिटिश शासन काल में ‘पटन’ ही ‘पटना’ हो गया। शेरशाह सूरी ने पटना को पुनर्जीवित करने की कोशिश की। उसने गंगा के किनारे एक किला बनाने की सोची। मगर सफलता नहीं मिली। अफगान शैली में बना एक मस्जिद अब भी मौजूद है। अकबर के राज्य सचिव और आइन-ए-अकबरी के लेखक (अबुल फजल) ने कागज, पत्थर और शीशे का संपन्न औद्योगिक केंद्र तौर पर इसकी चर्चा की है। मुगल बादशाह औरंगजेब ने अपने पोते मोहम्मद अजीम की गुजारिश पर 1704 में इसका नाम अजीमाबाद कर दिया। अजीम उस वक्त पटना का सूबेदार था।

1912 में बिहार की राजधानी बना पटना
मुगल साम्राज्य के पतन के साथ ही बंगाल के नबाबों के अधीन पटना आ गया। 17वीं शताब्दी में पटना अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का केंद्र बन गया। 1620 में अंग्रेजों ने रेशम और कैलिको (भारत से जानेवाले सफेद सूती कपड़े को इंग्लैंड में कैलिको कहा जाता था) के व्यापार के लिए यहां फैक्ट्री खोली। जल्द ही ये सॉल्ट पीटर (पोटेशियम नाइट्रेट) के व्यापार का केंद्र बन गया, जिसके कारण फ्रेंच और डच से प्रतिस्पर्धा तेज हो गई। बक्सर के युद्ध (1764) के बाद पटना ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन हो गया। मगर व्यापार का केंद्र बना रहा। 1912 में बंगाल के विभाजन के बाद ओडिशा और बिहार की राजधानी बना। फिर बिहार से अलग कर 1935 में ओडिशा को राज्य बना दिया गया। उसके बाद साल 2000 में बिहार से अलग कर झारखंड राज्य बनाया गया। मगर बिहार की राजधानी पटना बनी रही, जो आज भी कायम है।

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