कहानी एक्जिट पोल की : 88 साल पहले दुनिया में पहली बार अमेरिका में हुआ था

नयी दिल्ली ।  भारत में एग्जिट पोल की शुरुआत से काफी पहले ही कई देशों में यह शुरू हो चुका था। अब तो अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, दक्षिण एशिया, यूरोप और दक्षिण पूर्व एशिया समेत दुनिया के कई देशों में मतदान के बाद एग्जिट पोल होते हैं। इसकी शुरुआत का श्रेय वैसे तो संयुक्त राज्य अमेरिका को जाता है। साल 1936 में सबसे पहले अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में जॉर्ज गैलप और क्लॉड रोबिंसन ने चुनावी सर्वे किया था। तब पहली बार मतदान कर निकले मतदाताओं से पूछा गया था कि उन्होंने राष्ट्रपति पद के किस उम्मीदवार को वोट दिया है।

इस सर्वे से मिले आंकड़ों से अनुमान लगाया गया था कि फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट को चुनाव में जीत मिलेगी और वैसा ही हुआ भी था। हालांकि इस सर्वे ने अमेरिका के चुनाव परिणाम को बुरी तरह से प्रभावित किया था। इसके बावजूद तब इसे एग्जिट पोल न कहकर सर्वे ही कहा जाता था।

नीदरलैंड से चलन में आया एग्जिट पोल – अमेरिका के बाद दूसरे कई देशों में भी यह सर्वे लोकप्रिय हो गया। अमेरिका के बाद साल 1937 में ब्रिटेन में पहली बार ऐसा ही सर्वे किया गया। फिर अगले साल यानी 1938 में फ्रांस में पहली बार मतदाताओं से उनका मिजाज पूछा गया। तब तक एग्जिट पोल टर्म चलन में नहीं आया था। इसकी शुरुआत बहुत बाद में नीदरलैंड में हुई। 15 फरवरी 1967 को नीदरलैंड के समाजशास्त्री और पूर्व राजनेता मार्सेल वॉन डैम ने एग्जिट पोल की शुरुआत की थी। तब नीदरलैंड में हुए चुनाव के परिणाम को लेकर मार्सेल वॉन डैम का आकलन एकदम सटीक निकला था।

भारत में ऐसे हुई एग्जिट पोल की शुरुआत – जहां तक भारत की बात है तो यहां सबसे आजादी के बाद दूसरे आम चुनाव के दौरान साल 1957 में इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक ओपिनियन की ओर से पहली बार इसके मुखिया एरिक डी कॉस्टा ने सर्वे किया था। हालांकि, तब इसे एग्जिट पोल नहीं माना गया था. फिर साल 1980 और 1984 में डॉक्टर प्रणय रॉय की अगुवाई में सर्वे किया गया। औपचारिक तौर पर साल 1996 में भारत में एग्जिट पोल की शुरुआत सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) ने की थी। तब पत्रकार नलिनी सिंह ने दूरदर्शन के लिए एग्जिट पोल कराया था, जिसके लिए सीएसडीएस ने आंकड़े जुटाए थे। इस पोल में बताया गया था कि भाजपा लोकसभा चुनाव जीतेगी और ऐसा ही हुआ। इसी के बाद से देश में एग्जिट पोल का चलन बढ़ गया। साल 1998 में निजी न्यूज चैनल ने पहली बार एग्जिट पोल का प्रसारण किया था।

इस तरह से किया जाता है एग्जिट पोल – एग्जिट पोल वास्तव में एक तरह का चुनावी सर्वे ही है। यह मतदान के दिन ही किया जाता है. इसके लिए मतदान कर पोलिंग बूथ से निकले मतदाताओं से यह पूछा जाता है कि उन्होंने किस पार्टी या प्रत्याशी को अपना वोट दिया है। इससे मिले आंकड़ों का विश्लेषण किया जाता है, जिससे यह अनुमान लग जाता है कि चुनाव के नतीजे क्या होंगे.

एग्जिट पोल और ओपिनियन पोल में अंतर – एग्जिट पोल की ही तर्ज पर एक और सर्वे किया जाता है, जिसे ओपिनियन पोल कहा जाता है. इन दोनों में इतना फर्क है कि एग्जिट पोल केवल मतदान वाले दिन किए जाते हैं। इसमें मतदान करने वाले मतदाताओं को ही शामिल किया जाता है। वहीं, ओपिनियन पोल चुनाव से पहले ही किए जाते हैं। इनमें सभी तरह के लोगों को शामिल किया जा सकता है, भले ही वे मतदाता हों अथवा नहीं. एग्जिट पोल में मतदाताओं से सीधे पूछा जाता है कि किस पार्टी या प्रत्याशी को वोट दिया है। वहीं, ओपिनियन पोल में पूछा जाता है कि किसे वोट देने की इच्छा या योजना है.

नतीजे सटीक होने की कोई गारंटी नहीं – अब सवाल यह है कि भारत में एग्जिट और ओपिनियन पोल कितने सटीकता हो सकते हैं। आमतौर पर एग्जिट पोल 80 से 90 फीसदी के बीच सटीक निकलता हैं। हालांकि, ऐसा ही हो यह जरूरी नहीं है।  कुछ मामलों में ये बहुत सटीक नहीं होते हैं। इसमें यह आशंका बनी रहती है कि मतदान कर निकला मतदाता जरूरी नहीं कि यह सच बताए ही कि उसने किसे वोट दिया है। वहीं, ओपिनियन पोल के बाद तो मतदाताओं के पास अपनी राय बदलने का समय होता है और अंत में हो सकता है वे किसी और को वोट दे आएं।

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