त्रिवेणी यानी तीन नदियों का संगम गंगा , यमुना , सरस्वती । प्रयागराज में गंगा ,यमुना का मिलन सभी देखते हैं लेकिन सरस्वती का दर्शन नहीं होता ,जबकि सरस्वती को वैदिक सभ्यता की सबसे बड़ी और मुख्य नदी माना जाता है ।कुछ लोगों की मान्यता है कि सरस्वती विलुप्त हो गई है या यमुना से मिलकर अदृश्य रूप से आगे बढ़ी है ।शास्त्रों के अनुसार सरस्वती को पाताल में लुप्त होने की कथा रही है ,महाभारत में भी इस नदी का उल्लेख है । सरस्वती जिस स्थान पर लुप्त हो जाती है उस स्थान को विनाशना तथा उपमज्जना के नाम से संबोधित किया गया है ।
महाभारत में इसे वेद स्मृति ,वेदवती नाम से बुलाया गया है । ये भी उल्लेखित है कि बलराम ने द्वारिका से मथुरा तक की यात्रा इसी नदी से होकर की थी । कर्ण ने सरस्वती नदी के तट पर ही अपना अंतिम दान दिया था । ऋग्वेद में भी इस नदी का उल्लेख मिलता है, इसे यमुना के पूरब और सतलुज के पश्चिम बहते बताया गया है ।
एक पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि वेदव्यास सरस्वती नदी के तट पर गणेश जी को महाभारत को कथा सुना रहे थे ,कथा में कोई बाधा उपस्थित ना हो इसलिए उन्होंने सरस्वती नदी को धीरे बहने का आदेश दिया था पर सरस्वती इस आदेश को ना मानकर अपने वेग को तीव्र गति से आगे बढ़ाती रही क्रोधवश गणेश जी ने सरस्वती नदी को पाताल से बहने का श्राप दे दिया ताकि आगे धरती पर उसका बहाव ही ना रहे ।
परिणामतः सरस्वती विलुप्त हो गई । अब विज्ञान की बात करें तो भौगोलिक आधार पर भौगौलिक परिवर्तन( जलवायु और टेक्टोनिक बदलाव) के कारण 5000 बी.पी में इस नदी के गायब होने का उल्लेख मिलता है । शोधकर्ता माइकल डैनिनो (इतिहासकार) ने अपनी शोध में एक छोटी नदी घग्घर का नाम उल्लेख किया है जिसे सरस्वती कहा है और इसे विलुप्त माना है ।
अब अगर उद्गम और प्रवाह की बात करें तो सरस्वती का उद्गम उत्तराखंड के बद्रीनाथ से निकलकर उसकी प्रवाह हरियाणा,पंजाब , राजस्थान और गुजरात से होकर बहते हुए अंत में अरब सागर में मिलने का उल्लेख मिलता है ।
कुछ लोग यह भी मानते हैं कि थार के रेगिस्तान के नीचे अभी भी सरस्वती नदी का अस्तित्व शेष है । सवाल यह उठता है कि प्रयागराज के संगम में सरस्वती क्या सिर्फ़ एक परिकल्पना है या सचमुच यमुना की धारा में इसे मिला हुआ मान लिया जाए पर सरस्वती का अस्तित्व क्यों सिमटकर और विलुप्त होकर ही रह गया , यह एक पहेली है जिसकी अलग -अलग व्याख्या की गई है ।