साल की उल्टी गिनती आज से शुरू हो चुकी है और ऐसा लग रहा है जैसे हमारे विकास और प्रगतिशीलता की उल्टी गिनती शुरू हो रही है। परम्परा के नाम पर वर्चस्व की राजनीति करने वाले तमाम लोग एकजुट हो रहे हैं और बहाना है एक फिल्म। बहाना कहें या निशाना ही सही शब्द है और ये चिन्ता तमाम सतही बातों को लेकर ही है या यूँ कहें कि उनके हाथ में एक हथियार मिल गया है…जन भावना…जनभावना…सम्मान और प्रतिष्ठा की धुरी में पिस रहे इस देश और समाज ने क्या खो दिया है…उसे खुद अन्दाजा नहीं है। कभी – कभी समझना मुश्किल हो जाता है कि ये परम्परा…इज्जत और धर्म इतने नाजुक क्यों हैं कि जरा सी चोट से खुद को बचा नहीं पाते। याद रखिए कि धर्म और समाज के ठेकेदारों ने इसी जनभावना का हवाला देकर लम्बे समय तक शोषण चक्र और वर्चस्व को जिन्दा रखा है…और आज हर राजनीतिक पार्टी यही कर रही है…कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जो अपने सिद्धांतों पर अडिग हो और सिद्धांत तो वर्तमान समय की सबसे बड़ी विडम्बना बनकर रह गए हैं…आप यह नहीं देख रहे कि आप किस चीज की वकालत कर रहे हैं….सती प्रथा की या जौहर की या उसके नाम पर होने वाली हिंसा की….क्या इतिहास को चाटुकारिता में बदलना चाहिए। आपका इतिहास गौरवशाली रहा होगा मगर आप अपनी हार को भूलते हैं तो आपको जीत की प्रेरणा कभी नहीं मिलेगी। आदिम समय से ही कमजोरों खासकर स्त्रियों को दंडित करने के लिए उनका अंग – भंग करना, दबाना..या बलात्कार कर देना वर्चस्ववादी सत्ता की नीति रही है और आज भी यही चला आ रहा है। सोशल मीडिया पर यह जुबानी गंदगी तो छायी रहती है….आप कल्पना कीजिए कि हमें कहाँ बढ़ना था और हम कहाँ तक गिर रहे हैं….इस राष्ट्र ने कभी भी एक विशेष विचारधारा को कभी प्रश्रय नहीं दिया और अगर दिया होता तो वसुधैव कुटुम्बकम की परम्परा नहीं रही होती। जिस देश में पूरी वसुधा को समेटने की शक्ति है…उसे किसी एक धर्म, सम्प्रदाय और में समेटना ही ही परम्परा का अपमान है और राष्ट्रवाद के नाम पर यही हो रहा है। आप एक परिवार की परिकल्पना कीजिए जिसमें बहुएँ बाहर से ही आती हैं…सम्बन्ध बाहर से ही जुड़ते हैं..क्या आप यह कह सकते हैं कि परिवार के इन सदस्यों को घर में रहने का अधिकार नहीं है क्योंकि ये बाहर से हैं या आप उनको अपने परिवार का हिस्सा नहीं मानते। यही बात इस देश रूपी विशाल परिवार पर भी लागू होती है..हो सकता है कि हिन्दू या द्रविड़ सभ्यता यहाँ रही हो..और अन्य जातियाँ बाहर से हों मगर अब वे इस देश की संस्कृति का हिस्सा हैं…इसलिए यह देश उनका भी है जैसे कि आपका है और वसुधैव कुटुम्बकम की परम्परा का निर्वाह ही आपकी जड़ों को मजबूत करेगा…धर्म जड़ता नहीं है…समय के साथ वह खुद को कट्टर नहीं बल्कि उदार बनाता है। जो लोग लव जेहाद की बातें करते हैं…उनको एक बार इतिहास पर नजर डालनी चाहिए क्योंकि विदेशियों से विवाह तो तभी से चला आ रहा है…। अपनी कमजोरियों से भाग कर हम कभी मजबूत नहीं बन सकते। कला और साहित्य हमें आइना दिखाते हैं तो इसका सम्मान कीजिए और अगर कुछ गलत है तो उसका प्रतिवाद भी सृजनात्मक तरीके से ही होना चाहिए….दबाकर विद्रोह को रोका नहीं जा सकता…और न ही इतिहास चाटुकारिता में बदलेगा मगर आपकी हरकतें आपको एक अँधी और क्रूर याद के रूप में कैद जरूर कर देंगी। इतिहास को हम अपने स्वार्थ के हिसाब से नहीं ढाल सकते क्योंकि उसमें आपकी अच्छाई और बुराई दोनों समाहित है।
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कमजोरियों से भागकर हम इतिहास नहीं बदल सकते
साल की उल्टी गिनती आज से शुरू हो चुकी है और ऐसा लग रहा है जैसे हमारे विकास और प्रगतिशीलता की उल्टी गिनती शुरू हो रही है। परम्परा के नाम पर वर्चस्व की राजनीति करने वाले तमाम लोग एकजुट हो रहे हैं और बहाना है एक फिल्म। बहाना कहें या निशाना ही सही शब्द है और ये चिन्ता तमाम सतही बातों को लेकर ही है या यूँ कहें कि उनके हाथ में एक हथियार मिल गया है…जन भावना…जनभावना…सम्मान और प्रतिष्ठा की धुरी में पिस रहे इस देश और समाज ने क्या खो दिया है…उसे खुद अन्दाजा नहीं है। कभी – कभी समझना मुश्किल हो जाता है कि ये परम्परा…इज्जत और धर्म इतने नाजुक क्यों हैं कि जरा सी चोट से खुद को बचा नहीं पाते। याद रखिए कि धर्म और समाज के ठेकेदारों ने इसी जनभावना का हवाला देकर लम्बे समय तक शोषण चक्र और वर्चस्व को जिन्दा रखा है…और आज हर राजनीतिक पार्टी यही कर रही है…कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जो अपने सिद्धांतों पर अडिग हो और सिद्धांत तो वर्तमान समय की सबसे बड़ी विडम्बना बनकर रह गए हैं…आप यह नहीं देख रहे कि आप किस चीज की वकालत कर रहे हैं….सती प्रथा की या जौहर की या उसके नाम पर होने वाली हिंसा की….क्या इतिहास को चाटुकारिता में बदलना चाहिए। आपका इतिहास गौरवशाली रहा होगा मगर आप अपनी हार को भूलते हैं तो आपको जीत की प्रेरणा कभी नहीं मिलेगी। आदिम समय से ही कमजोरों खासकर स्त्रियों को दंडित करने के लिए उनका अंग – भंग करना, दबाना..या बलात्कार कर देना वर्चस्ववादी सत्ता की नीति रही है और आज भी यही चला आ रहा है। सोशल मीडिया पर यह जुबानी गंदगी तो छायी रहती है….आप कल्पना कीजिए कि हमें कहाँ बढ़ना था और हम कहाँ तक गिर रहे हैं….इस राष्ट्र ने कभी भी एक विशेष विचारधारा को कभी प्रश्रय नहीं दिया और अगर दिया होता तो वसुधैव कुटुम्बकम की परम्परा नहीं रही होती। जिस देश में पूरी वसुधा को समेटने की शक्ति है…उसे किसी एक धर्म, सम्प्रदाय और में समेटना ही ही परम्परा का अपमान है और राष्ट्रवाद के नाम पर यही हो रहा है। आप एक परिवार की परिकल्पना कीजिए जिसमें बहुएँ बाहर से ही आती हैं…सम्बन्ध बाहर से ही जुड़ते हैं..क्या आप यह कह सकते हैं कि परिवार के इन सदस्यों को घर में रहने का अधिकार नहीं है क्योंकि ये बाहर से हैं या आप उनको अपने परिवार का हिस्सा नहीं मानते। यही बात इस देश रूपी विशाल परिवार पर भी लागू होती है..हो सकता है कि हिन्दू या द्रविड़ सभ्यता यहाँ रही हो..और अन्य जातियाँ बाहर से हों मगर अब वे इस देश की संस्कृति का हिस्सा हैं…इसलिए यह देश उनका भी है जैसे कि आपका है और वसुधैव कुटुम्बकम की परम्परा का निर्वाह ही आपकी जड़ों को मजबूत करेगा…धर्म जड़ता नहीं है…समय के साथ वह खुद को कट्टर नहीं बल्कि उदार बनाता है। जो लोग लव जेहाद की बातें करते हैं…उनको एक बार इतिहास पर नजर डालनी चाहिए क्योंकि विदेशियों से विवाह तो तभी से चला आ रहा है…। अपनी कमजोरियों से भाग कर हम कभी मजबूत नहीं बन सकते। कला और साहित्य हमें आइना दिखाते हैं तो इसका सम्मान कीजिए और अगर कुछ गलत है तो उसका प्रतिवाद भी सृजनात्मक तरीके से ही होना चाहिए….दबाकर विद्रोह को रोका नहीं जा सकता…और न ही इतिहास चाटुकारिता में बदलेगा मगर आपकी हरकतें आपको एक अँधी और क्रूर याद के रूप में कैद जरूर कर देंगी। इतिहास को हम अपने स्वार्थ के हिसाब से नहीं ढाल सकते क्योंकि उसमें आपकी अच्छाई और बुराई दोनों समाहित है।