क्रिसमस का सबसे खास हिस्सा है केक। बिना केक क्रिसमस अधूरा है। केक की कहानी भी बेहद दिलचस्प है। एक दौर ऐसा भी था जब बेकर्स को केक में बटर तक इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं थी। नतीजा स्टॉलेन केक बेहद स्वादहीन और कठोर बनता था। जर्मन में बनने वाले स्टॉलेन केक को सबसे पहले 1545 में क्रिसमस ब्रेड के तौर पर बेक किया गया था। केक कई वैरायटी सालों तक यह अपने बदलाव के कई पड़ावों को पार करने के बाद आज हमारे डेजर्ट का सबसे खास हिस्सा बन गया है। जानते हैं इसका सफरनामा….
स्टॉलेन केक : स्वाद के लिए चुकानी पड़ती रकम
‘जर्मनी के सैक्सनी प्रांत में यह केक आटे, यीस्ट और ऑयल से बनाया गया था। यह टेस्टलेस और हार्ड था। तब बेकर्स को बटर इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं थी।
15वीं शताब्दी में प्रिंस इलेक्टर अर्न्स्ट और उनके भाई ड्यूक अल्ब्रेख्त ने रोम में पोप को लिखा कि बेकर्स को बटर इस्तेमाल करने की इजाजत दी जाए। इसकी वजह थी कि ऑयल वहां महंगा था और मुश्किल से मिलता था। शुरुआत में इनकी अपील खारिज कर दी गई।
आखिरकार पोप ने प्रिंस को जवाब दिया कि सिर्फ आप और आपकी फैमिली बटर इस्तेमाल कर सकती है। इसे बटर लेटर के तौर पर जाना जाता है। कुछ और लोगों को भी इजाजत दी गई, लेकिन सालाना रकम चुकानी पड़ती थी।
काफी सालों बाद बटर से बैन पूरी तरह से हटाया गया। आज भी पारंपरिक स्टॉलेन उतना मीठा और हल्का नहीं होता जैसा दुनिया के अन्य हिस्सों में बनाया जाता है।
डंडी केक : मेरी क्वीन ऑफ स्कॉट्स को पसंद नहीं थी चेरीज़, इसलिए बनाया ये केक
19वीं सदी में स्कॉटलैंड में इसे सबसे पहले बेक किया गया था। कहा जाता है कि मेरी क्वीन ऑफ स्कॉट्स को अपने केक में ग्लेस चेरीज़ पसंद नहीं थीं। इसलिए सबसे पहले उनके लिए यह केक बनाया गया, जिसमें चेरी की जगह बादाम इस्तेमाल किए गए।
आज यह यूके के सुपरमार्केट्स में बड़े पैमाने पर बिकता है और इसकी खासियत ही है- बादाम से डेकोरेशन। 1947 के बाद एक नामी कंपनी ने इसे इंडिया में भी बेचा।
हालांकि 1980 में इसे मार्केट से विदड्रॉ कर लिया गया, लेकिन क्रिसमस गिफ्ट के तौर पर दिया जाता रहा। ऐसा कहा जाता है कि टी टाइम में क्वीन एलिजाबेथ डंडी केक पसंद करती हैं।
(साभार – दैनिक भास्कर)