नयी दिल्ली । राफेल जेट और रूसी S-400 मिसाइल सिस्टम भारत के लिए दो ऐसे अहम हथियार साबित हुए हैं, जिन्होंने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और मौजूदा भारत-पाकिस्तान संघर्ष में निर्णायक भूमिका निभाई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने इन दोनों हथियारों को भारत के रक्षा बेड़े में शामिल करने के लिए न सिर्फ आंतरिक विरोध झेला, बल्कि अमेरिका समेत कई वैश्विक दबावों का भी डटकर सामना किया । 8 और 9 मई की दरम्यानी रात पाकिस्तान की सेना ने ड्रोन और मिसाइलों के ज़रिए भारत पर बड़ा हमला करने की कोशिश की। लेकिन भारत की वायु रक्षा प्रणाली—खासतौर पर S-400 और आकाश मिसाइल सिस्टम—ने इस हमले को पूरी तरह नाकाम कर दिया। पाकिस्तान द्वारा श्रीनगर, जम्मू और जैसलमेर जैसे कई स्थानों को निशाना बनाकर दागी गई मिसाइलों में से एक भी अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाई। भारत ने 2018 में रूस से करीब 5 अरब डॉलर के सौदे में S-400 डिफेंस सिस्टम खरीदने का फैसला लिया था। उस वक्त अमेरिका ने खुले तौर पर इस सौदे का विरोध किया था और यहां तक कि प्रतिबंध लगाने की धमकी भी दी थी। ट्रंप प्रशासन और बाद में बाइडन प्रशासन, दोनों ही भारत को इस सौदे से पीछे हटने के लिए कहते रहे। मगर मोदी सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा को सर्वोपरि मानते हुए किसी भी दबाव को स्वीकार नहीं किया। अब तक एस-400 की तीन स्क्वाड्रन भारत में तैनात की जा चुकी हैं और कुछ और इस साल आनी बाकी हैं। यह सिस्टम 600 किलोमीटर तक के दायरे में कई हवाई लक्ष्यों को एकसाथ ट्रैक और नष्ट कर सकता है। भारतीय वायुसेना में इसे ‘सुदर्शन चक्र’ कहा जाता है, जो लड़ाकू विमान, ड्रोन और बैलिस्टिक मिसाइल जैसे खतरों को खत्म करने में सक्षम है। इसी तरह राफेल लड़ाकू विमान, जिन्हें भारत ने 2020 से फ्रांस से सरकारी समझौते के तहत हासिल किया, ने भारतीय वायुसेना की ताकत को कई गुना बढ़ा दिया। इन विमानों में लगी लंबी दूरी की एससीएएलपी मिसाइलों ने पाकिस्तान के बहावलपुर में स्थित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के मुख्यालय को निशाना बनाया, वो भी सीमा पार किए बिना। इस हमले में मोस्ट वांटेड आतंकी मौलाना मसूद अजहर का परिवार और उसका भाई अब्दुल रऊफ अजहर—जो IC-814 हाईजैकिंग का मास्टरमाइंड था—मार गिराया गया। हालांकि, राफेल डील को लेकर कांग्रेस पार्टी, खासकर राहुल गांधी ने 2019 के चुनावों में मोदी सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। मगर सुप्रीम कोर्ट ने इस सौदे को पूरी तरह सही ठहराया और कीमत व प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी नहीं पाई। आज ये दोनों हथियार भारत की सुरक्षा नीति की रीढ़ बन चुके हैं और मोदी सरकार के साहसिक निर्णयों का नतीजा हैं, जिन्होंने देश की सुरक्षा को किसी भी राजनीतिक या अंतरराष्ट्रीय दबाव से ऊपर रखा।