श्रीनगर : कश्मीर में आतंकी संगठनों में शामिल हुए युवाओं को वापस घरों में बुलाने और उन्हें मुख्यधारा में शामिल करने के लिए सेना का ऑपरेशन माँ सफल होता दिख रहा है। एक साल में ही आतंकवादी बन चुके करीब 50 युवा घर लौट आए हैं। सेना भी इससे उत्साहित है। यह ऑपरेशन माँ सेना की चिनार कोर ने शुरू किया था। इस ऑपरेशन में चिनार कोर के जनरल ऑफिसर कमांडिंग केजेएस ढिल्लो के निर्देश पर घरों से गायब हो चुके युवाओं का पता लगाना और उनके परिजनों से सम्पर्क कर उन्हें वापस घर लाना। पुलवामा हमले के बाद सेना ने घाटी में सभी माताओं से अपने बच्चों को वापस लौटने के लिए अपील करने को कहा था। सेना ने कहा था कि माँ एक बड़ी भूमिका में होती है और वे अपने बच्चों को वापस बुला सकती है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो वे मारे जाएंगे।
कई बार बीच में रोकी मुठभेड़
सेना की चिनार कोर के जीओसी लेफ्टिनेंट जनरल केजेएस ढिल्लो का कहना है कि अपनी मातृभूमि की सेवा करो। अपनी माँ और पिता की सेवा करो। इस संदेश ने सभी को प्रेरित किया। कई अभिभावकों के उन्हें संदेश भी आए और यही उनके लिए सबसे बड़ा तोहफा है। यही कारण है कि सेना ने कई बार बीच में ही मुठभेड़ रोकी, ताकि गुमराह हुए इन युवकों को आत्मसमर्पण के लिए मौका दिया जा सके।
कई बार माँ के गले मिलने से खत्म हुई मुठभेड़
उन्होंने कहा कि जब भी यह जानकारी मिलती है कि कोई स्थानीय आतंकी मुठभेड़ में फंसा हुआ है तो उसकी माँ की तलाश कर उसे लाया जाता है। कई बार तो मुठभेड़ मां और गुमराह हुए युवक के गले मिलने से ही खत्म हो जाती है। इस साल करीब 50 ऐसे युवा आतंकी संगठनों को छोड़कर वापस लौटे हैं। कई आतंकी आत्मसमर्पण करने के बाद पढ़ रहे हैं। कुछ अपने पिता का हाथ बंटा रहे हैं तो कुछ खेतों में काम कर रहे हैं। पाकिस्तान का प्रयास रहता है कि ऐसे युवाओं को निशाने बनाए। ऐसे में इनकी पहचान छुपाई जाती है।
सेना ने जो डाटा बनाया है उसके अनुसार आतंकी की उम्र एक साल से अधिक नहीं होती है। आतंकी संगठनों में शामिल होने वाले 83 प्रतिशत युवा पत्थरबाज थे। इसका मतलब यह है कि आज का पत्थरबाज कल का आतंकी है। ले. जनरल ढिल्लो के अनुसार आतंकी संगठनों में शामिल होने वाले सात प्रतिशत युवाओं की मौत दस दिनों के भीतर हो जाती है। नौ प्रतिशत की मौत एक महीने के भीतर, 17 प्रतिशत की तीन महीने के भीतर, 36 प्रतिशत की छह महीनों के भीतर और अन्य की एक साल के भीतर मौत हो जाती है।
सेना के अधिकारियों के अनुसार माँ के चेहरे पर मुस्कान बनी रहे, इसी को देखते हुए ऑपरेशन माँ शुरू हुआ था। ले. जनरल ढिल्लो के अनुसार कई बार ऐसे ऑपरेशन हुए जहाँ पर स्थानीय कश्मीरी आतंकियों के साथ विदेशी आतंकी भी थे। सेना के जवानों ने अपनी ¨जिन्दगी को दांव पर रखते हुए आत्मसमर्पण के लिए तैयार स्थानीय आतंकियों को विदेशियों से अलग करवाया। विदेशी आतंकियों को ऐसे मौके नहीं दिए जाते हैं, लेकिन अगर कोई आत्मसमर्पण करना चाहे तो उसका स्वागत है।