एक भक्त के लिए रूक जाता है भगवान जगन्नाथ का रथ

प्रभु जगन्नाथ को भक्तों का भगवान कहा जाता है। जब-जब भक्तों ने भक्ति से पुकारा भगवान उस के साथ खड़े हुए नजर आए। यह कहा जाता है जब तक प्रभु जगन्नाथ का डोरी नहीं लगता तब तक प्रभु के दर्शन नहीं हो पाते है। कई ऐसी कहानियाँ है जब प्रभु जगन्नाथ अपने भक्तों की विश्वास पर खड़े उतरे हैं।

कभी प्रभु अपने भक्त के लिए साक्षी देने के लिए निकल पड़ते हैं तो कभी दासिया नाम के एक दलित के हाथ से नारियल उठा लेते हैं। महाप्रभु जगन्नाथ के सामने न कोई जाति होती है न कोई धर्म जो भी भगवान जगन्नाथ को भक्ति से पुकारता है भगवान उस के भक्ति पर खड़े उतरते हैं।
ऐसी है भक्त सालबेग की कहानी
ऐसी ही एक कहानी भक्त सालबेग की है जो धर्म से तो मुस्लिम थे, लेकिन प्रभु जगन्नाथ का सबसे बड़े भक्त बन गये थे। भक्त सालबेग के पिता मुस्लिम और माता ब्राह्मण थी. सालबेग का पिता मुगल सेना में सैनिक थे। अपने पिता की तरह सालबेग भी मुगल सेना मे रहे। एक बार युद्ध के दौरान सालबेग पूरी तरह घायल हो गए। जब सभी को लगा था कि सालबेग ठीक नहीं हो पाएंगे तब सालबेग के मां ने प्रभु जगन्नाथ के शरण में जाने के लिए कहा।
जगन्नाथ के आर्शीवाद से सालबेग पूरी तरह ठीक हो गए और प्रभु जगन्नाथ के बहुत बड़े भक्त बन गए. सालबेग जगन्नाथ के भक्ति में कई सारे भक्ति कविताएँ भी लिखीं। एक बार सालबेग प्रभु जगन्नाथ से मिलने के लिए पुरी गए, लेकिन वह मुसलमान होने के वजह से उन्हें मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया गया। फिर हर साल सालबेग रथ यात्रा के दौरान पूरी जाते थे और प्रभु जगन्नाथ की दर्शन करते थे।
सालबेग को दर्शन देने के लिए रूक गया रथ 
एक बार रथयात्रा के दिन सालबेग पुरी से बाहर थे। उन्हें लगा कि समय पर रथ यात्रा देखने के लिए पुरी पहुंच नहीं पाएंगे। फिर सालबेग ने प्रभु जगन्नाथ से विनती की, कि उनके पहुंचने तक वह इंतजार करें। फिर क्या हुआ भगवान जगन्नाथ ने अपने भक्त का बात मान ली। रथ जहां खड़ा था वहीं रुक गया आगे नहीं गया। लाखों भक्त भगवान के रथ को आगे ले जाने के लिए कोशिश कर रहे थे। भक्तों की कई कोशिशों के बावजूद रथ आगे नहीं जा रहा था।
जैसे ही सालबेग पुरी पहुंचे और भगवान की दर्शन कर लिए, तब रथ आगे जाने लगा। इसके बाद भक्त सालबेग की भक्ति के बारे में सभी को पता चला। फिर सालबेग पुरी में रहने लगे।  उनके देहांत के बाद उनकी समाधि पुरी के उस जगह पर बनाई गई जहां वह रहते थे। इस समाधि के रास्ते में प्रभु जगन्नाथ रथ हर साल जाती है और जब रथ इस जगह पर पहुंचता है तो कुछ समय के लिए रूक जाता है।

 

शुभजिता

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