समाज एक ऐसे मोड़ पर पहुँच चुका है जहाँ अन्धेरा ज़्यादा और रोशनी कम है। सब जैसे हताश ,अकेले और सन्नाटे में जी रहे हैं। मुस्कुराहट मानो खो सी गयी है। न तो कोई किसी को वक्त दे रहा है और न ही किसी से बात करता है। सब जीती -जागती कठपुतलियों में बदल रहे हैं, जैसे हिम्मत हार चुके हैं। कई बार ज़िन्दगी बेज़ुबा हो जाती और हम बेगुनाह होकर उस गुनाह को ढोते है जिन्दगी भर।
इसी सोच को तो बदलना है । आज सबसे ज़्यादा युवा इसके बीच जी रहे हैं। उनमें जुनून है पर सही दिशा नहीं मिल पा रही है । गति, विधि, आहुति यह तीन आज त्रिकोण बन चुके हैं। न ये षटकोण पूजा है न कोई लकीर। ये एक सोच है सही मार्ग की तरफ। गति तभी सम्भव है जब इन्सान का मन शुद्ध हो। मन की शुद्दि सम्भव है सिर्फ अच्छी परवरिश और अच्छी परिवेश से। यहाँ जो माता- पिता, परम गुरु ,दोस्तों का बहुत बरा योगदान हैं। दूसरा है विधि, हर युवा आज मुकाम तक पहुँचने की कोशिश कर रहा है। वह सफल नही हो पा रहा। हताश हो रहा है । वे अपने आप को कमरे मे बंद कर रहे हैं । सबसे सम्बन्ध तोड़ रहे हैं, खुद को नशे की ओर धकेल रहे हैं और जब खुद को सम्भाल नहीं पा रहे हैं तो आत्महत्या कर रहे हैं। युवाओं की अपनी परेशानियाँ हैं और वजहें भी। वह दूसरों के लिए त्याग नहीं करना चाहता, अपने स्वार्थीपन की आहुति नहीं देना चाहता। वह खुद में गुम है। कभी प्रेमी या प्रेमिका के जाने का गम, कभी नौकरी न मिलने की चिन्ता और इन सबके बीच वह खुद को धकेलता है नशे की तरफ। सावधान होने की जरूरत है क्योंकि युवाओं में जज्बा और जाँबाजी, दोनों हैं जिससे आप एक नयी रोशनी की ओर कदम बढ़ा सकते हैं। भरोसा रखिए अपनी चेतना पर। उमंग को दीजिये उड़ान। आपको जीनी है एक बेखौफ ज़िन्दगी। हाथ बढ़ाए और बस पार करते है एक साथ ये मुश्किल और वह भी होगी आसान –
‘ख़िलाफों को लिफाफों मे बंद रख/खयालों मे उमंग भर/ खयालातों को बदल /तू आगे बढ़ ।’