इस तरह हुई मदर्स डे की शुरुआत

माँ और बच्चों के इसी खास प्यार-मोहब्बत भरे रिश्ते से जुड़ा है ‘मदर्स डे’। जाहिर है जब रिश्ता इतना खास है तो इस रिश्ते का सैलिब्रेशन भी खास होना चाहिए। बच्चों के साथ माँ के इस रिश्ते को एक खास सैलिब्रेशन कर नई पहचान दी एक अमेरिकी नागरिक ऐना जार्विस ने जिन्होंने पहली बार अपनी माँ के सम्मान में ‘मदर्स डे’ का आयोजन 1908 में वर्जीनिया, अमेरिका में किया। ऐना ने हालांकि खुद कभी शादी नहीं की और उनकी कोई संतान भी नहीं थी लेकिन इस चलन की शुरुआत ऐना ने अपनी माँ की याद से की थी। ऐना की माँ की मृत्यु 1905 में हुई थी, वह एक समाज सेविका थीं। ऐना की माँ अक्सर अपनी पुत्री से अपनी यह इच्छा जाहिर किया करती थीं कि एक दिन सारी दुनिया की माओं का सम्मान होना चाहिए और उन्हें समाज में उनके योगदान के लिए सराहा जाना चाहिए। 1905 में माँ की मृत्यु होने पर ऐना ने तय किया कि वह उनकी यह इच्छा जरूर पूरी करेंगी। प्रारंभ में ऐना ने अपनी माँ के लिए चर्च में फूल भेजने शुरू किए फिर एक टीम तैयार कर उसके साथ उन्होंने सरकार से इस दिन को सरकारी छुट्टी का दिन और आधिकारिक रूप से ‘मदर्स डे’ के नाम से घोषित किए जाने की माँग की। ऐना और उनके सहयोगियों की माँग पर 1914 में अमेरिका के अट्ठाईसवें राष्ट्रपति वुडरो विल्सन ने मई माह के दूसरे रविवार का दिन मदर्स डे के रूप में मनाये जाने की घोषणा की। अमेरिका में ‘मदर्स डे’ की शुरूआत के बाद दूसरे देशों में भी इसे अपना लिया गया, हालांकि कई देशों में इसे अलग तारीखों में भी मनाया जाता है पर आमतौर पर ‘मदर्स डे’ मार्च या मई माह में ही मनाया जाता है। भारत में भी ‘मदर्स डे’ मई माह के दूसरे रविवार(संडे) को मनाया जाता है। ‘मदर्स डे’ की शुरूआत आधिकारिक रूप से भले ही 19 वीं शताब्दी में अमेरिका से हुई हो पर कहा यह भी जाता है कि इस खास दिन का सैलिब्रशन सदियों पूर्व भी किसी न किसी रूप में होता रहा है। इंग्लैंड में 17वीं शताब्दी में एक खास दिन माँ के सम्मान में आयोजित किया जाता था। इस दिन चर्च में प्रार्थना के बाद बच्चे अपने घर फूल या उपहार लेकर जाते थे। प्राचीन ग्रीक और रोमन इतिहास में भी इस दिन को मनाए जाने के प्रमाण मिलते हैं, इस दिन को मनाने के पीछे उनके धार्मिक कारण जुड़े थे।

(साभार – प्रभासाक्षी)

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