आरती में ताली बजाने से बढ़ती है रोग प्रतिरोधक क्षमता

आमतौर पर भगवान की स्तुति करने वक्त ताली बजाने का प्रचलन है। श्रीमद्भागवत के अनुसार कीर्तन में ताली की प्रथा भक्त प्रह्लाद ने शुरू की थी क्योंकि, जब वे भगवान का भजन करते थे तो जोर-जोर से नाम संकीर्तन भी करते थे तथा साथ-साथ ताली भी बजाते थे। इसके बाद अन्य लोग भी उनकी तरह करने लगे। सामान्यत: हम किसी भी मंदिर में आरती के समय सभी को ताली बजाते देखते हैं और हम भी ताली बजाना शुरू कर देते हैं। ऐसा करने से हमारे शरीर को कई लाभ प्राप्त होते हैं। हमारे शरीर के 29 एक्यूप्रेशर पॉइंटस हमारे हाथों में होते है। प्रेशर पॉइंट को दबाने से संबंधित अंग तक रक्त और ऑक्सीजन का संचार अच्छे से होने लगता है। एक्यूप्रेशर के अनुसार इन सभी दबाव बिंदु को सही तरीके से दबाने का सबसे सहज तरीका है ताली। हथेली पर दबाव तभी अच्छा बनता है जब ताली बजाते हुए हाथ लाल हो जाए, शरीर से पसीना आने लगे। इससे आंतरिक अंगों में ऊर्जा भर जाती है और सभी अंग सही ढंग से कार्य करने लग जाते है।
तीन तरह से बजायी जाती है ताली
1. ताली में बाएं हाथ की हथेली पर दाएं हाथ की चारों अंगुलियों को एक साथ तेज दबाव के साथ इस प्रकार मारा जाता है कि दबाव पूरा हो और आवाज अच्छी आए। इस प्रकार की ताली से बाएं हथेली के फेफड़े, लीवर, पित्ताशय, गुर्दे, छोटी आंत व बड़ी आंत तथा दाएं हाथ की अंगुली के साइनस के दबाव बिंदु दबते हैं और इससे इन अंगों तक खून का प्रवाह तीव्र होने लगता है। इस प्रकार की ताली कब्ज, एसिडिटी, मूत्र, संक्रमण, खून की कमी व श्वांस लेने में तकलीफ जैसे रोगों में राहत मिलती है। इस प्रकार की ताली तब तक बजानी चाहिए जब तक हथेली लाल न हो जाए।

2. थप्पी ताली- ताली में दोनों हाथों के अंगूठों से लेकर कनिष्ठिका तक सभी अंगुलियां अपने समानांतर दूसरे हाथ की अंगुलियों पर पड़ती हो एवं हथेली-हथेली पर पड़ती हो। इस प्रकार की ताली कान, आंख, कंधे, मस्तिष्क, मेरूदंड के सभी बिंदुओं पर दबाव डालती है। इस ताली का सर्वाधिक फायदा सोल्जर, डिप्रेशन, अनिद्रा, स्लिप डिस्क, स्पोगोलाइसिस, आंखों की कमजोरी जैसी समस्याओं में होता है। एक्यूप्रेशर चिकित्सकों की राय में इस ताली को भी तब तक बजाया जाना चाहिए जब तक कि हथेली लाल न हो जाए। इस प्रकार की ताली की आवाज बहुत तेज व दूर तक जाती है।

3. ग्रिप ताली – इस प्रकार की ताली में हथेली को हथेली पर क्रॉस की आकृति में मारा जाता है। इससे किसी विशेष रोग में लाभ तो नहीं मिलता है, लेकिन यह ताली उत्तेजना बढ़ाने का कार्य करती है। इससे अन्य अंगों के दबाव बिंदु सक्रिय होने लगते हैं। यह ताली सम्पूर्ण शरीर को सक्रिय करने में मदद करती है। यदि इस तरह ज्यादा समय तक ताली बजाई जाए तो शरीर में पसीना आने लगता है जिससे कि शरीर के विषैले तत्व पसीने से बाहर आ जाते हैं। इस तरह त्वचा स्वस्थ रहती है। इस तरह ताली बजाने से न सिर्फ रोगों से रक्षा होती है, बल्कि कई रोगों का इलाज भी हो जाता है।

बेहतर होता है रक्त संचार
1. ताली बजाने से खून में बुरे कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम होती है, जिससे हार्ट अटैक जैसी समस्या की आशंका कम हो जाती है। ताली बजाने से शरीर में रक्त का संचार अच्छे से होता है जिससे फेफड़ों में अस्थमा संबंधित रोग का खतरा भी टलता है।

2. तेज ताली बजाने से आंख, कान, दिमाग, रीढ़ की हड्डी, कंधे आदि सभी बिंदुओं पर प्रभाव पड़ता है जिससे तनाव, अनिद्रा, आंखों की कमजोरी, पुराना सिर दर्द, जुकाम, बालों का झड़ना जैसी समस्या से राहत मिलती है।

3. ताली से मांसपेशियां प्रभावित होती हैं जिससे पूरे शरीर में ऊर्जा का संचार अच्छे से होता है। इतना ही नहीं नियमित ताली की आदत से खून में सफेद कणों को ताकत मिलती है जिससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

(साभार – दैनिक भास्कर)

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