देखते – देखते साल अलविदा कहने जा रहा है। सर्दियों की गुनगुनी धूप का इंतजार है और अब तक जाड़े का मजा लेने की तैयारी भी आप करने लगे होंगे और इन तमाम ख्यालों के बीच एक इंतजार अर्थव्यवस्था के खुशहाल होने का भी है। तकलीफदेह बात है कि मौत, कतार और किसी नेता का ट्वीटर अकाउंट हैक होना भी सियासत के खेल का हिस्सा हो गया है। देश को आगे बढ़ाने के लिए संसद का सकारात्मक होना जरूरी है मगर अफसोस यह है कि इस देश के नेता जनता को नाकारा समझ रहे हैं जो कभी आगे बढ़ने की कोशिश नहीं कर सकती। इस देश में जब कम्प्यूटर आया था, तब भी शोर मचा था मगर आज यह हमारी जिंदगी का हिस्सा बन चुका है। हम मानते हैं कि देश में संरचना की कमी है मगर क्या इसका हवाला देकर देश के हर गाँव में जाने वाले विकास का रास्ता मोड़ देना चाहिए? हमारी समस्या यह है कि हम गिलास को आधा खाली देखने के आदी हो चुके हैं मगर हमारे दिमाग में गिलास को पूरा भरने की उम्मीद नहीं दिखती मगर आगे बढ़ने के लिए यह उम्मीद और एक नयी सोच जरूरी है। यह काम सरकार अकेले नहीं कर सकती। आज दुनिया के तमाम विकसित देश कैशलेस होने की राह पर आगे बढ़ रहे हैं, हमारे यहाँ अर्थव्यवस्था का 80 प्रतिशत भाग अभी भी नकद पर टिका है।
यह सही है कि इसे एकबारगी खत्म नहीं किया जा सकता मगर इस दिशा में शुरुआत तो की जा सकती है। अगर देश आपका है, आप उस पर अधिकार जताते हैं तो आपकी जिम्मेदारी महज वोट डालने पर खत्म नहीं होती, विकास की प्रक्रिया में आपको भागीदार बनना पड़ेगा। अगर आप ऐसा सोचते हैं तो यह आपकी स्वार्थपरता है। हम विषमता का रोना रोते हैं मगर यह हमारा ही किया –धरा है, वरना क्या वजह है कि जितने रूपयों में एक गरीब का खर्च चल जाता है, वह आपका एक दिन या कुछ घंटों का खर्च है? यह देश किसी नेता और किसी सरकार का नहीं है बल्कि हमारा है और हमारे देश को आगे ले जाने में हाथ बढ़ाना हमारी जिम्मेदारी है। कैशलेस होने की प्रक्रिया में एक आम आदमी भी कड़ी बन सकता है, अपने आस – पास के लोगों को जागरुक कीजिए, उनके खाते खुलवाने, आर्थिक रूप से सजग बनाकर ठगी से बचाने, एटीएम की जानकारी देने और ई –वॉलेट का उपयोग सिखाने में आप मदद कर सकते हैं, यह आपकी ताकत है।
गरीब होने का मतलब जानकारी से वंचित रहना नहीं होता। सच तो यह है कि शहर की जीवनशैली में सुविधा से भरे जीवन के बीच हमें यह गवारा नहीं होता कि हमारी जिंदगी में खलल पहुँचे। परिवर्तन हमें चाहिए जरूर मगर उसके लिए हम तकलीफ उठाने को तैयार नहीं हैं। सरकारें आती हैं, जाती हैं मगर एक बात तय है कि आम आदमी ही देश को आगे ले जा सकता है, सरकार को उसकी जरूरत है। सांता क्लाज और नया साल दोनों आने वाले हैं। आप सभी को अपराजिता की तरफ से मेरी क्रिसमस।