बिजनौर : अपनी कला से पूरे एशिया में बिजनौर को पहचान दिलाने वाला नगीना का काष्ठकला उद्योग अब आत्मनिर्भर भारत अभियान को भी गति देगा। काष्ठकला उद्योग के अंतर्गत पहली बार देवी-देवताओं की मूर्तियां बनाई जाएंगी। इसके लिए दक्षिण भारत से कारीगरों को बुलाकर जिले के कारीगरों को प्रशिक्षण दिलाया जाएगा। बाजार में देवी-देवताओं की मेड इन चाइना नहीं बल्कि मेड इन इंडिया की मूर्तियां दिखाई देंगी। नगीना का काष्ठकला उद्योग लकड़ी पर की गई नक्काशी के लिए पूरे एशिया में प्रसिद्ध है। यहां पर बने लकड़ी के सिगार केस, घड़ी, माला, छड़ी, लकड़ी की टाइल्स व अन्य सजावट के आइटम की देश के अलावा बाहर भी बहुत डिमांड है। देश के साथ- साथ विदेशों के पांच सितारा होटलों में भी यहां के बने काष्ठकला आइटम में खाना सर्व किया जाता है। काष्ठकला उद्योग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत अभियान में सहभागी भी बनेगा।
हिंदुओं के घरों व दुकानों पर देवी-देवताओं की मूर्तियां न हों ऐसा नहीं हो सकता है। काष्ठकला उद्यमी चीन के इस बाजार पर कब्जा कर सकते हैं। लेकिन अब आत्मनिर्भर भारत अभियान से इसे और बल मिलेगा। दक्षिण भारत में लकड़ी से देवी देवताओं की मूर्तियां बनाई जाती हैं। नगीना में भी मशीनों से देवी देवताओं की मूर्तियां बन सकती हैं लेकिन हाथ से बनी मूर्तियां ज्यादा सुंदर होती हैं। दक्षिण भारत के कारीगरों को बुलाकर स्थानीय कारीगरों को प्रशिक्षण दिलाया जाएगा।
देवी-देवताओं की मूर्तियों का बाजार हर हिंदू घर, प्रतिष्ठान में है। विदेश से आने वाली मूर्तियों की तुलना में जिले में बनने वाली लकड़ी की मूर्ति सस्ती पड़ेगी। ये मूर्तियां शीशम, बबूल व आम की लकड़ी से बनाई जाएंगी। ‘एक जिला एक उत्पाद’ में शामिल काष्ठकला उद्योग की जिले में करीब 800 इकाइयां हैं। इनका सालाना टर्नओवर करीब 300 करोड़ रुपये है। काष्ठकला में बनने वाला 80 प्रतिशत से अधिक माल विदेशों को निर्यात होता है। जिलेवासी विदेशों के आइटम बड़े पैमाने पर घरों में सजाते हैं और अपने जिले के काष्ठकला आइटमों के बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं।
बिना पैकिंग जाता है माल
जिले के काष्ठकला उद्योग की नक्काशी बेजोड़ है। भले ही इसका विदेशों में नाम है लेकिन यहां के कारीगर गुमनाम हैं। नगीना से जो माल निर्यात होता है उसकी पैकिंग तक नहीं होती है। निर्यातक उद्यमियों से बिना पैकिंग वाला माल ही खरीदते हैं और उस पर अपनी पैकिंग करके निर्यात करते हैं। काष्ठकला उद्यमी इरशाद मुल्तानी का कहना है कि काष्ठकला उद्योग देवी देवताओं की मूर्तियों के साथ- साथ फैंसी आइटम में विदेशी कंपनियों पर कहीं भारी है। इससे उद्यमियों को राहत मिलेगी तो वे भी अपने उत्पादों के दाम कम कर सकेंगे।