आओ देश
से माफ़ी मांगें
भारत माता के सपूत हैं
हमें माफ कर देना
वेद, पुराण और संस्कृति को
मन से कभी न माना
आंख कान को बंद कर सबने
बरसों व्यर्थ गंवाया
भाषा के भावों को छोड़ा
सरहद पार पहुंचाया
आचार विचारों की सभ्यता का
हर युग में मजाक उड़ाया
शिक्षा की गुणवत्ता को
हर युग में तोड़ा मोड़ा
आजाद हुए इस भारत को
फिर से गुलाम बनवाया
करते हैं हम तो बस नाटक
तिरंगे को एक दिन फहराने का
फिर पूरे वर्ष भूल भारत को
धर्म जाति भाषा में बंटकर
मर्यादा को रखकर ताक पर
अपने -अपने ही गीत अलापे
किसको पढ़ना किसे पढ़ाना
सब कुछ है बाहर से लाना
घर के लोग तो रहे पराए
आधुनिक बन चादर ओढ़े
कल कारखाने और उद्योगों से
बढ़ते हुए प्रदूषण में
लगे पनपने तरह-तरह के
किटाणु – विषाणु
प्रकृति की हरियाली को
ढांक दिया ईंटों से
जंगल के जंगल ही काटे
माना पर्यावरण को दुश्मन
बन बैठे दावेदार प्रकृति के
हा मनुज धिक्कार रहा
जन्म लेना इस देश में
बचा न सके संपदा अपनी
और अपनी संस्कृति को
खान पान वेशभूषा भी
श्रेष्ठ और उत्तम है
विश्व गुरु कहलाते थे
सोने की चिड़िया थी
भूल सुधार अभी भी कर लें
देश माफ कर देगा
आओ देश से माफी मांगें
देश प्रेम की अलख जगा लें
अपनी संस्कृति की रक्षा कर
भारत को भारत दिखलाएं
आओ गीता मानस में रमकर
अपनी सोच से आगे बढ़ जाएं।