अवसाद या अपराध

— ‘पंकज सिंह’

(परदा उठता है रोहन अपने पूरे परिवार के साथ भोजन के दौरान बातें करते हुए अपने कार्य में हो रही प्रगति का बखान करता है)
पात्र परिचय

रोहन : एक दिहाड़ी मजदूर
सरला देवी : रोहन की माँ
कृष्णा : रोहन का छोटा भाई
सीमा : रोहन की छोटी बहन
सुजाता : रोहन की बड़ी बहन
कुसुम : रोहन की पत्नी
दृश्य -1
रोहन : आज तो काम पर मजा ही आ गया अम्मा। कॉन्ट्रेक्टर रवि भइया मेरे काम से बहुत खुश हुए। उन्होंने मुझसे यह भी कहा कि कल से मुझे 200 की जगह 250 रुपए रोज का देंगे।
माँ : सच बोल रहे हो बेटे! अब हम अपनी सुजाता के लिए दूसरों पर आश्रित नहीं रहेंगे।
रोहन : हाँ माँ। अपने कृष्णा का डॉ. बनने का सपना भी जरूर पूरा होगा।
कुसुम : यह सब तो ठीक है जी पर हमको तो कुछ और चाहिए।
सीमा : जी भैया। हम और भाभी आज ही बात कर रहे थे। कितने दिन हो गए फिल्म गए। (मनुहार करती है)…भैया कल ले चलो ना।
कृष्णा : गाँव बसा नहीं कि भिखारियों ने पहले ही भीड़ लगा दी। सिर पर दसवीं की बोर्ड परीक्षा है और इनको देखनी है फिल्म…चिढ़ाते हुए…सिनेमा देखने चली हैं।

रोहन : अरे ठीक है भई ! एक दिन नहीं पढ़ने से फेल नहीं हो जाएगी मेरी बहन । मेरी छोटी बहुत होशियार है।
कृष्णा : भैया तुमने ही इसे सिर पर चढ़ा रखा है। अभी से किसी की नहीं सुनती है। मैं कहे देता हूँ, इतना लाड़ – दुलार ठीक नहीं है।
सुजाता : फिर तुम दोनों लड़ने लगे। देखो माँ की तबीयत ठीक नहीं है। भैया, आप पहले माँ का इलाज करवाइए। इसके बाद हमारे सिर पर जो साहू जी का कर्ज है उसे खत्म कीजिए। रोज-रोज  के ताने अब सहे नहीं जाते हैं।
रोहन : अरे सुजाता! सब हो जाएगा तू इतनी चिन्ता क्यों करती है। बहना, अभी हम है और जब तक मैं हूँ तुम सबको को कभी कुछ सोचने की जरूरत नहीं है। (अचानक खबर सुनाई पड़ती है।
कल से पूरा भारत बंद और कोई भी व्यक्ति घर से बाहर नहीं निकलेगा। रोहन, सुजाता, सीमा, और कृष्णा सब एक दूसरे को देखते है । पूरे घर में एक सन्नाटा छा जाता है परदा गिरता है।)

दृश्य-2
( परदा उठता है। रोहना चिन्ता में डूबा है। परेशान छिपाना चाहता है मगर स्थिति ऐसी है कि अब उसे माँ से इसके बारे में बात करनी पड़ रही है। माथे पर चिन्ता की लकीरें, रुँआसा चेहरा लिए वह माँ के पास जाकर चुपचाप बैठ जाता है। माँ समझ रही है…मगर रोहन की चिन्ता बढ़ाना नहीं चाहती।
आखिर रोहन को चुप्पी तोड़नी पड़ती है – अम्मा, तीन दिन तो किसी तरह गुजार लिये मगर आगे….बात पूरी होने से पहले ही उत्साह में डूबी सीमा घुसती है…सब उसे देखने लगते हैं।
रोहन : माँ अब तेरी तबीयत कैसी है? मैं जानता हूँ कल तुझे दवा नहीं दे पाया हूँ और न ही घर में अनाज का एक भी दाना ही बचा है। सोचता हूँ कि एक- दो दिन और किसी प्रकार चल जाएगा पर उसके बाद क्या होगा, कुछ समझ नहीं आता।
माँ : बेटा, दवा की चिंता मत कर। मैं ठीक हूँ, बस तुम बहू और भाई- बहनों का ध्यान रखो। (थोड़ा रुक कर) बात तो तेरी ठीक है बेटा अगर बचाकर भी चलाया जाए तो घर की नईया पार नहीं लग पाएगी। लेकिन यह भी तुझे ध्यान रखना होगा जिसका कोई नहीं होता, भगवान उसको असहाय नहीं छोड़ते। भगवान पर भरोसा रख मेरे लाल। समय सब मुसीबत खत्म कर देता है। (अचानक दरवाजे से सीमा का शोर सुनायी पड़ता है।)
सीमा : भइया! भइया! बाहर राशन के लिए सबका नाम लिखा जा रहा है। जल्दी चलो। (सबके चेहरे खिल जाते हैं।)
रोहन : (रोहन दौड़ते हुए जाता है और नाम लिखने वाले बाबू से कहता है।) भइया हमारा भी नाम लिख लीजिए। हमें भी राशन चाहिए था।
राशनवाला : यहाँ खैरात नहीं बँटते हैं। एक तो लॉकडाउन ने धन्धा खत्म कर रखा है, ऊपर ये चले आये मुँह उठा के। (थोड़ा ठहरता है)..ऐसा है मेरे भाई कि नेताजी ने तो पहले से ही नाम गिनवा दिये हैं हमको। हम बस कूपन दे रहे हैं। जरा रुको तुम्हारा नाम होगा तो जरूर मिलेगा। (खाते में नाम की जाँच करने लगता है)। देखो भाई, तुम्हारा नाम नहीं है ।जाओ, पहले नेताजी से मिलो और यहाँ भीड़ मत लगाओ।
फिर अचानक उसका पारा गरम हो जाता है – जानते नहीं हो कोरोना फैला है कोरोना। सबको मारेगा क्या? भाग यहां से।(रोहन उदास चेहरा लेकर घर लौटता है। उसके सामने अपनी बीमार माँ, भाई-बहनों और पत्नी का उदास चेहरा एक बार आंखों के सामने घूम जाता है।)
दृश्य- 3
(आज लॉकडाउन का पाँचवा दिन है दवा के अभाव में माँ का बुरा हाल है उनकी तबीयत बहुत बिगड़ गयी है।)
माँ : बेटा तू बड़ा है । इस स्वार्थ भरी दुनिया मे अपना कोई नहीं है। बेटा मुझे नहीं लगता है कि मैं अब बच सकूँगी। अपने भाई और पत्नी का ख्याल तुझे ही रखना है। दोनों बहनों की जिम्मेदारी अब तुझ पर ही है बेटा उन्हें हमेशा अपने साथ रखना।(तभी दरवाजे पर दो व्यक्ति आवाज देते है ‘घर में कोई है चावल लेने के लिए’)
( सुजाता दौड़ी बाहर की तरफ जाती है और देखती है एक व्यक्ति है हाथ में एक अनाज से भरा हुआ थैला लिए हुए है और दूसरा का कैमरा ऑन करके तैयार है। सुजाता जैसे ही हाथ बढाती है अंदर से रोने और चिल्लाने की आवाज सुनाई पड़ता है।)
कृष्णा : दीदी माँ अब नहीं रही! जल्दी चलो, माँ हमे छोड़कर चली गई। (पूरा माहौल रुदन में डूब जाता है।
सूत्रधार : रात को रोहन और उसकी पत्नी अपना भविष्य सोच कर बहुत परेशान हो जाते हैं। अंत में जब पूरा घर छान मारने के बाद रोहन को सिर्फ 10 रुपये मिलते हैं। इस रुपये से वह सबका पेट तो नहीं भर सकता था पर उसके पास इससे निजात पाने एक खतरनाक उपाय समझ आ गया। और अगले दिन समाचार आता है कि पाँच सदस्य वाले एक परिवार ने भूख से तंग आ कर जहर खा लिया है। सरकार के पास कोरोना से बचने के कई उपाय भले हों पर भूख से बचने का अभी भी कोई उपाय नहीं है। हमे साथ मिल कर इस पर विचार करना होगा .अपने आस – पास देखिए और ऐसा कोई जरूरतमन्द है तो उनकी मदद करिए और हाँ, हो सके तो कैमरा बाहर मत निकालिएगा

 

शुभजिता

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