कोलकाता । अर्चना संस्था की ओर से आयोजित स्वरचित गोष्ठी में संस्था के सदस्यों ने सर्वप्रथम सुरों की देवी भारत रत्न लता मंगेशकर जी को अपनी शब्दांजलि अर्पित की।’सुर शब्द बन बदली सी विलीन हो गई शून्य आकाश में’कविता मृदुला कोठारी द्वारा और गीत ‘स्वर देवी को स्वरों से देते हम स्वरांजलि’ भारती मेहता और विद्या भंडारी ने ‘गाँऊगी हर गीत में तुमको /हृदय में तुम्हें बसाऊँगी ‘, संगीता चौधरी ने ‘तुम हो स्वर की मल्लिका’ प्रस्तुत कर सुर साम्राज्ञी को श्रद्धांजलि अर्पित की।
हिम्मत चोरड़़िया ने कुंडलिया-गागर में सागर भरूँ, देना ऐसा ज्ञान।दोहे-दुश्मन भ्रम मत पालना, ये वीरों का देश।
समर भूमि में एक हैं, भले अलग परिवेश।।, सिमट अंधेरा अब गया, हुआ शिशिर का अंत।मृदुला कोठारी ने कू-कू कोयल बोलती,आया सुखद बसंत।।मन मंजीरा सुर वीणा के साथअधरों की बंसरी के संगछेड़ता जब अनहद मीठे राग विद्या भंडारी ने खुशबू मिट्टी की, संगीता चौधरी ने दोहे- कृपा करो मां शारदे और पतझड़ का ना जाने कैसा नाता है, क्यों मनाऊं मैं वैलेंटाइन डे, नोरतन मल भंडारी ने प्यार होता है/रेशमी धागों की गिरह की तरह/ हो जाये,/तो तोङना मुश्किल /जोङना मुश्किल। (2)खामोशी की भी होती है/ एक आवाज /कौन कहता है/उस तक नहीं/ पहुंच पाएगी / मेरी खामोशी।, हिम्मत चोरड़़िया ने मुक्तक विधाता छंद -हरा ये रंग कहता है, सदा खुशहाल बन रहना।, धनाक्षरी छंद-खेत अब लहराये, उपवन सरसाये,शशी कंकानी ने गीत -हर दिल में मस्ती छाने लगी/ये कैसा चढ़ने लगा खुमार/हौले से दस्तक किसने दी/कोई और नहीं ये है बसंत बहार,सुना कर कार्यक्रम का जोश बढ़ाया। वहीं मीना दूगड़ ने पूरे कार्यक्रम की रिपोर्ट अपनी कविता के द्वारा प्रस्तुत की – सुरीले मधुर दोहा गीत के साथ सजीला शुभारंभ और उतने ही सुरीले गीत के साथ आज की गोष्ठी की मनभावन संपन्नता। मध्य भाग सज उठा बसंत की बयार से, गुलाब की सौरभ से,लता जी के अमर स्मरण से, जीवन संगीत से, मिट्टी की खुशबू से, धरती आकाश के फासले में बसे ख्वाबों से, धनाक्षरी के हरे भरे लहलहाते खेतों से, प्यार के रेशमी धागों से, खामोशी की जुबां से,क्रोध की जहरीली गोली के दुष्प्रभाव से,मधुसिक्त मकरंद में डूबे श्रद्धा स्वरों से सभी सदस्यों की रचनाओं को शब्दों में पिरो कर रचनाओं की माला भेंट की। और अपनी कविता -कल रात सपने में गुलाब से मुलाकात हो गई / बगीचे में खिले खिले, सफेद गुलाबी लाल पीले-वैलेंटाइन डे की संस्कृति/मात्र सात दिनों पर टिकी प्यार की बंजर धरती सुनाया।
सुशीला चनानी ने ऋतु बसन्त में ए सखी,धरा करे श्रृंगार। जैसे पिय घर पग धरे,दुल्हन पहली बार।, हाइकु-बासन्ती हवा/भरे मदिर भाव/धिरकें पाव/गीत-खोलो खोलो सखी मन के किंवाड,बसन्त ऋतु आयी है !, लता जी को समर्पित दोहा-सारा जीवन कर दिया,सात सुरों के नाम
सांस सांस संगीत था,सप्तक ही था धाम।।, उषा सराफ ने धरती से आकाश तक का फ़ासला न होता, /तो ख्वाबों का कारवाँ कहाँ होता सुनाया। इंदू चांडक – आया आया जी बसंत ऋतुराज /मावड़ळी रै आंगणियै/बाज्या ढोल मंजीरा चंग सुरीला साज/मावड़ळी रै आंगणियै गीत से वसंत का स्वागत किया। व्यंग्य के वरिष्ठ कवि बनेचंद मालू नेे क्रोध किए गुण बहुत हैं,/क्रोध कीजिए रोज…….पैराशूट और दिमाग,/रह जाएँ अधखुले तो / हो जाए सत्यानाश…….सुनाया जो नया प्रयोग रहा। डॉ वसुंधरा मिश्र ने कविता ‘वसंत’ नभ से उतरता वसंत /इतराता इठलाता /भर गया जब सूखी टहनियों पर /तभी तो उतर आता है जमीन पर /मदमस्त हो वसंत भी। और’ रचना ‘ गर्भ के किस कोने में /तुम छिपी थी, सुनाया। कार्यक्रम का संचालन और तकनीकी सहयोग इंदु चांडक की काव्यात्मक अभिव्यक्ति से पूर्ण रहा।