कोलकाता । अर्चना संस्था की ओर से रचनाकारों ने नए वर्ष का स्वागत किया और कोरोना जैसी भयंकर बिमारी से छुटकारा करने के लिए ईश्वर से प्रार्थना की। गोष्ठी में सभी ने अपनी रचनात्मक ऊर्जा से भरी रचनाएंँ सुनाई । वरिष्ठ कवयित्री विद्या भंडारी के संचालन में दो घंटे तक ऑनलाइन पर हुई गोष्ठी का आरंभ इंदु चांडक के नव वर्ष गीत से हुआ – मंगलमय हो जिसका हर पल/वर्ष की शुरुआत सुखद हो। उसके पश्चात संगीता चौधरी -सर्दी की धूप गर्म दुशालों सी लगती है।,कोरोना पूर्ण विश्व से,छाया हर वृक्ष को। देबी चितलांगिया – मूक बधिर प्राण, लौटा लाते हैं, एक कविता :एक गान, मृदुला कोठारी – हे पृथ्वी किस शक्ति पर इतनी प्रबल होकर रहती हो खड़ी चिर युवा चिर सुंदरी, दूसरा गीत राजस्थानी तावड़ो चोखो लागे रे, इंदू चांडक – हाइकु- वाद विवाद /असफल संवाद/ युद्ध का नाद, हठ सतत/मन भेद प्रदत्त/महाभारत, भिक्षा का अन्न/ कर लूँगा ग्रहण/ना करूँ रण, भारती मेहता (अहमदाबाद) – पुरूष कप,प्लेट नारी/कप जहाँ- तहाँ टँगने के लिये /सुविधाजनक/प्लेट अपने निश्चित घेरे में फैली/गर्म को शीतल कर देने वाली !,वरिष्ठ कवयित्री प्रसन्न चोपड़ा ने विद्या भंडारी के लिए दो कविताएँ समर्पित की – मुझे नाज तुम पर है साथी प्रणय प्रीत के गीत हूं गाती,मैं मुस्कान अनूठी हूं जो तेरे होठों पर आती, सफलता की सीढ़ियां चढ़ती गई धीरे-धीरे धूप भी हटती गई,छा हर वृक्ष की मिलती रही,आपदाएं स्वयं ही हटती गई। विद्या भंडारी – बाहर प्रदर्शन भीतर सुषुप्ति क्यों ।, यदि मैं होती खजूर का वृक्ष , रहती खङी तनी हुई/ किन्तु मैं हूँ कोमल – कोमलान्गिनी, झुकती चली गयी।/छोटा सा हमारा संसार विविधता का है सार/शुभकामनायें अपार। /लेखन में हो विस्तार। सुशीला चनानी – दोहे ,क्षणिका ,कविता/मन में दृढ संकल्प हो,सफल। ओर सब काज/प्रेम पर दो क्षणिका/ प्रेम करना है तो कर!/पहले गणित की किताब / संदूकची में धर!/ प्रेम के पहले पन्ने पर/मत नाच/आगे तो बांच!/घड़ी तो बेचते हो /समय बेच सकते हो क्या, एन एम भंडारी – जिन्दगी/देखना चाहता हूॅ/करीब से/पढना चाहता हूॅ/बारीकी से/मगर मेरी पकङ से /बाहर है/उसकी उङान।,शब्द। / बह्म है/परिचायक है/ ज्ञान का/ उद्बोध है/मानसिक चेतना का । हिम्मत चोरड़़िया – सासू से बोली बहुरानी- सरसी छंद आधारित जोगीरा सारा रा रा रा रा/सच्चा साथी तू ही तेरा- सरसी छंद आधारित गीत, दोहा-रंग बिखेरे नित नये, खोले अभिनव द्वार।/ प्यारी मेरी अर्चना, गूँज उठे संसार।, शशि कंकानी – आओ करें चिंतन मनन मंथन/खुशी बाँटे सभी में/ना दुःखी हो किसी का मन, और राजस्थानी रचना आ पत्ते री नहीं पते री बात है/कदे तक रह्यो कोई रो साथ है। वसुंधरा मिश्र – दिन में भी ख्वाब/जब भी बंद करती हूँ/आँखों को/ख्वाब चोरी हो जाते हैं/खुली आँखें सपने देख नहीं पातीं और हर पल नई सुबह /हर क्षण है परिवर्तित/हर पल बीत रहा है /जीवन तो चलने का नाम आदि रचनाएँ सुनाई। बने चंद मालू ने व्यंग्य रचनाएँ कुम्हार ने माटी के लौंदे से /चिलम बनाई/ बनाते बनाते मष्तिष्क में /एक चिनगारी उभर आई,/उसकी मति बदल गई,/और सुराही बनाने की मन में /आगई।, जो आदमी अपने को /सर्व विजयी महान मान बैठा था /कहता था मरने तक की फ़ुरसत / नहीं,/वह आज मरने के डर से/फ़ुरसत में बैठा है। सुनाई। श्रोताओं में मीना दूगड़, समृद्धि, गुलाब बैद, उषा श्राफ आदि सदस्याएँ उपस्थित रहीं । अंत में, धन्यवाद दिया इंदु चांडक ने।