कोलकाता । हिंदी दिवस के अवसर पर अर्चना संस्था के सदस्यों ने हिंदी भाषा और उसके साथ अपनी मातृभाषा प्रेम और देशप्रेम के प्रति अपनी जिम्मेदारी को स्वरचित रचनाओं , गीत और गजल के द्वारा अपनी भावनाओं को व्यक्त किया। उषा श्राफ ने मैने हिंदी को नहीं चुना, हिंदी ने मुझे चुना है।
राजस्थानी और हिंदी में मृदुला कोठारी ने लो फेरू आग्योहिंदी पखवारोअंग्रेजी की गोदी में बैठो जाने गांव रो गवारू छोरो और हिंदी हमारी साख है है,टहनियां, सांस प्राण धमनिया है और तुलसी पौधे पर एक गीत, प्रसन्न चोपड़ा ने सीने से लगाकर पाला, अपने से दूर किया थाजैसे कड़वा घूंट, मैंने कोई पिया था, हिम्मत चोरडिया प्रज्ञा ने कुण्डलिया-हिन्दी हिन्दुस्तान की, हमको है अभिमान।
जन-जन की भाषा बने, मिले इसे पहचान।।कुछ दोहे- सीधी सरल सुहावनी, माता हिन्दी बोल।गहन ज्ञान इसमें छिपा, आँखें अपनी खोल, मीना दूगड़ ने हिंद हिंदुस्तान भारत इंडिया,कहलाया जो सोने की चिड़िया
हर शब्द के पीछे छुपा राज गहरा,पग पग पर संस्कृति देती पहरा।, प्रसन्न चोपड़ा ने सीने से लगा के पाला ,अपने से दूर किया था। जैसे कड़वा घूंट, मैंने कोई पिया था। शीतल बयार सी आती ,तपन होती कुछ कम है। मन का दर्द समझती बेटी मानो जीवन है।संगीता चौधरी ने शीर्षक हिंदी और मैं कविता की प्रस्तुति दी। बड़े प्रेम से मेरे देश में हिंदी दिवस मनाया जाता है। सुशीला चनानी ने एक सूत्र में बांधे रखती हिन्दी जैसे अन्नपूर्णा सी माँ जोड़कर रखती परिवार लगा कर भाल पर बिन्दी,संस्कृत के गोमुख से निकली गंगा सी पावन हिन्दी, एक सूत्र मे बांधे रखती ऐसी है मन भावन हिन्दी, शिक्षक पर एक गीत -अंधियारी गलियों मे राह जो दिखाते हैं वो और नही कोई मेरे गुरुदेव ही हैं ,मेरे मन में दीप ज्ञान का जलाते हैं। इंदू चांडक ने प्यारी प्यारी मातृभाषा, हमारी है हिंदी, जन जन के होठों पर गूँजे, गर्व से हिंदी, कोई आसमां के पार से बुलाता है मुझे, हर पलअपने होने का आभास दे जाता है मुझे, डॉ वसुंधरा मिश्र ने हिंदी की रेल चली हिंदी की रेल चली इतराती इठलाती कई भाषाओं की विविध रचनाओं को हिंदी भाषा के प्रति समर्पित किया गया।