Thursday, December 4, 2025
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अब स्मार्ट फोन में संचार साथी’ ऐप अनिवार्य

नयी दिल्ली । दूरसंचार विभाग (डीओटी) ने भारत में स्मार्टफोन बनाने वाली कंपनियों को निर्देश दिया है कि वे अपने सभी नए मोबाइल फोनों में सरकार द्वारा विकसित साइबर सुरक्षा ऐप ‘संचार साथी’ को अनिवार्य रूप से प्री-इंस्टॉल करें। विभाग ने यह भी स्पष्ट किया है कि उपयोगकर्ता इस ऐप को अपने फोन से डिलीट नहीं कर पाएंगे। सरकार का कहना है कि यह कदम उपभोक्ताओं को ऑनलाइन धोखाधड़ी, फर्जी कॉल-मैसेज और मोबाइल चोरी जैसी बढ़ती घटनाओं से बचाने के बड़े अभियान का हिस्सा है। निर्देश के तहत कंपनियों को तीन महीने के भीतर इसे लागू करना होगा। इसका सीधा प्रभाव एप्पल, सैमसंग, शाओमी, ओप्पो, वीवो जैसे प्रमुख स्मार्टफोन निर्माताओं पर पड़ेगा। रिपोर्ट के अनुसार, कंपनियों ने इस निर्देश पर तत्काल टिप्पणी नहीं की है, लेकिन उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि कई निर्माता इस कदम पर आपत्ति जता सकते हैं। अब तक ‘संचार साथी’ एक वैकल्पिक ऐप था, जिसे उपयोगकर्ता एप्पल या गूगल ऐप स्टोर से अपनी इच्छा से डाउनलोड करते थे। लेकिन नए निर्देश के बाद यह ऐप हर नए फोने में पहले से मौजूद होगा और पुराने फोनों में सॉफ्टवेयर अपडेट के माध्यम से जोड़ा जाएगा। यह ऐप इस साल जनवरी में लॉन्च किया गया था और अगस्त तक इसके 50 लाख से अधिक डाउनलोड दर्ज किए जा चुके हैं। सरकारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, ऐप की मदद से अब तक 37 लाख से अधिक चोरी या गुम मोबाइल फोन ब्लॉक किए गए हैं और लगभग 23 लाख फोन ट्रैक कर लिए गए हैं। ऐप फोन के IMEI यानी 15 अंकों के विशिष्ट पहचान नंबर के माध्यम से चोरी हुए डिवाइस को ब्लॉक करने और खोजने में मदद करता है। इसके अलावा, यह फर्जी कॉल, एसएमएस और व्हाट्सऐप जैसे प्लेटफॉर्म पर आए संदिग्ध संदेशों की शिकायत दर्ज करने की सुविधा भी देता है। मोदी सरकार का तर्क है कि बढ़ते साइबर फ्रॉड, फर्जी कॉल सेंटर, और मोबाइल चोरी के नेटवर्क पर रोक लगाने के लिए यह कदम जरूरी है, लेकिन सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या अनिवार्य प्री-इंस्टॉल ऐप उपभोक्ताओं की निजी पसंद और गोपनीयता पर असर डालेगा। देखा जाए तो सरकार द्वारा ‘संचार साथी’ जैसे उपयोगी और जनहितकारी ऐप को बढ़ावा देना निश्चित रूप से एक सकारात्मक कदम है, खासकर ऐसे समय में जब साइबर अपराध तेजी से बढ़ रहे हैं। चोरी हुआ मोबाइल तुरंत ब्लॉक करना, फर्जी कॉल और संदेशों की रिपोर्टिंग—ये सभी सुविधाएँ वास्तव में नागरिकों की सुरक्षा मजबूत करती हैं। लेकिन दूसरी ओर, ऐप को अनिवार्य बनाना और उसे हटाने का विकल्प न देना, उपभोक्ता की स्वतंत्रता और डिजिटल गोपनीयता को लेकर चिंताएँ भी पैदा करता है। किसी भी सरकारी ऐप को फोन में स्थायी रूप से इंस्टॉल रखने का निर्देश तकनीकी कंपनियों और नागरिक अधिकार समूहों के बीच स्वाभाविक रूप से बहस छेड़ेगा। टेक उद्योग का तर्क होगा कि यह उपयोगकर्ता अनुभव और स्वतंत्रता में हस्तक्षेप है, जबकि गोपनीयता विशेषज्ञ यह सवाल उठाएँगे कि क्या सिम-बाइंडिंग और अनिवार्य ऐप जैसी नीतियाँ निगरानी के जोखिम को बढ़ा सकती हैं।

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