आगरा : आगरा में एक ऐसी युवती है जो घर पर मोती उगाती है। जी हां आपने सही सुना घर पर ही एक ड्रम में किए प्रयोग से हौसला बढ़ा और अब इस युवती ने मोती उगाने की ट्रेनिंग लेकर इस काम को शुरू कर दिया है। मोती उगाने वाली इस बेटी का नाम है रंजना यादव। 14 गुना 14 फीट के तालाब में मोती की फसल लगाकर अब इसमें दो हजार सीप डाली गयी है। रंजना के अनुसार आगरा में मोतियों की खेती का ये पहला प्रयास है। बात लगन की है। डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ लाइफ साइंस से एमएससी कर चुकी रंजना ने पढ़ाई के दौरान पर्लफार्मिंग के बारे में जाना। भुवनेश्वर जाकर पर्ल फार्मिंग का विधिवत प्रशिक्षण लिया। उन्होंने पिता सुरेश यादव के महर्षिपुरम स्थित प्लाट में तालाब बनाया। दो महीने पहले गुजरात से मंगाई गईं सीप इस तालाब में डाली। इन सीपों को तालाब में एक मीटर गहराई में लटकाए गए जालीदार बैग में रखा गया है। रंजना बताती हैं कि इसमें मानवीय प्रयास शामिल है लेकिन मोती प्राकृतिक रूप से पैदा होती हैं और इनकी मांग खूब है।
ऐसे बनता है मोती
प्राकृतिक रूप से मोती का निर्माण तब होता है जब रेत, कीट आदि किसी सीप के अंदर पहुंच जाते हैं। तब उसके ऊपर चमकदार परतें चढ़ती है। यह परत मुख्यत: कैल्शियम की होती है। मोती का उत्पादन भी इसी तरीके से होता है। सीप के अंदर 4-6 मिलीमीटर व्यास के ‘बीड या न्यूक्लियर’ डाले जाते हैं और तैयार होने पर मोती को निकाल कर पॉलिश किया जाता है।
गहन देखभाल है जरूरी
न्यूक्लियर डालने से पहले और बाद में सीप को कई प्रक्रिया से गुजारा जाता है। प्रतिरोधक दवाएं और प्राकृतिक चारा (एल्गी, काई) दिया जाता है फिर तालाब में डाला जाता है। शुरूआत में रोज फिर एक-एक दिन छोड़कर निरीक्षण किया जाता है। बीमार सीपों को दवा देना, मृत सीपों को हटाना, तालाब में ऑक्सीजन का इंतजाम करना और बैग की सफाई आदि जरूरी है। मोती मनचाहे आकार के
रंजना ने बताया कि परंपरागत गोल ही नहीं जिस आकार की चाहें मोती बनाई जा सकती है। यही डिजाइनर मोती है। बस न्यूक्लियर वैसा बनाना पड़ता है। साथ ही न्यूक्लियर को सर्जरी की मदद से सीप में रखने की कुशलता और उचित देखभाल ही मोती की गुणवत्ता को बढ़ाती है। रंजना पर्ल फार्मिंग के इच्छुक लोगों को अपने फार्म पर प्रशिक्षण भी दे रही हैं और कई विद्यार्थी प्रशिक्षित हो चुके हैं।
(साभार – अमर उजाला)