नयी दिल्ली : एक कश्मीरी लोकगीत ‘हो गुलो’ आजकल कश्मीर घाटी में युवाओं की जुबान पर चढ़ा हुआ है। इस गाने को कश्मीर में सीमा के दोनों तरफ के लोग पसन्द कर रहे हैं। इस गाने को अनंतनाग के मोहम्मद अल्ताफ मीर ने गाया है। मीर वैसे तो आतंकी बनने गए थे लेकिन कोक स्टूडिया पाकिस्तान की ओर से उनका गाना जारी किए जाने के बाद वे एक लोकप्रिय गायक बन गए। उनके गाने को सिर्फ दो दिन 1,50,000 से ज्यादा लोग देख चुके हैं. ‘हो गुलो’ गाना प्रसिद्ध कश्मीरी कवि, स्वर्गीय गुलाम अहमद मेहजूर के एक पुराने क्लासिक्स में से है।
28 साल पहले मीर गए थे आतंकी बनने
कश्मीर के अनंतनाग इलाके के रहने वाले मोहम्मद अल्ताफ 28 साल पहले, 1990 में आतंकी बनने के लिए अपना घर छोड़ कर पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर चले गए थे। वे अपने साथ कई युवाओं को भी ले गए थे। लम्बे समय तक घर से कोई संपर्क न होने के चलते उनके परिजनों ने मान लिया था कि उनकी मौत हो चुकी है। इसी बीच कोक स्टूडियो पाकिस्तान की ओर से उनका गाना जारी किए जाने के बाद उनके जीवित होने की बात सामने आयी।
2017 में जीवन में आया बदलाव
कोक स्टूडियो टीम पाकिस्तान की ओर से 2017 में देश में प्रतिभाओं की तलाश की जा रही थी। इसी बीच मीर का बैंड कश्मीर कोक स्टूडियो के 2018 संस्करण के लिए चुन लिया गया। कुल सात बैंड चुने गए थे जिनमें मीर का बैंड भी शामिल था। मीर के सुर्खियों में आने के बाद पता चला कि वे कई वर्षों तक रेडियो पाकिस्तान से जुड़े रहे।
घर वापस आने के लिए परिवार लगा रहा गुहार
अल्ताफ मीर का गाना लोकप्रिय होने से परिजनों को भी पता चला कि वो जिन्दा है। ऐसे में परिजन उसे घर वापस लाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने कई माध्यमों से मीर से गुहार लगाई है कि वो घर वापस लौट आएं। मीर की मां जना बेगम कहती हैं कि उसके जिन्दा होने से हमें बेहद खुशी है। उन्होंने कहा कि 28 साल पहले खबर आई थी कि वह आतंकी बन गया पर अब इस बात का संतोष है कि वो अच्छा काम कर रहा है। ऐसा कैसे हुआ यह नहीं पता पर जैसे भी उसके लिए अल्लाह का शुक्रिया। उन्होंने कहा कि उम्मीद है कि बेटा जल्द ही घर लौट आएगा।
ऐसे शुरु हुआ मीर का सफर
मोहम्मद अल्ताफ मीर की ओर से हाल ही में मुज्जफराबाद में दिए गए एक वीडियो इंटरव्यू में मीर बताते हैं, उन्होंने कई दस्तों के साथ आतंकी बनने के लिए बॉर्डर पार किया था। हथियार चलाने की ट्रेनिंग लेने के कुछ दिन बाद वह घर लौट आए थे। इसके बाद वो दिन में बस कंडक्टरी करते थे और शाम को कपड़ों पर चेन की सिलाई किया करते थे। उन्होंने सूफियाना महफिलों में गाना शुरू कर दिया। वे महफिलों में डफली भी बजाते थे। उन्होंने पीर राशिम से संगीत की तालीम ली। एक दोस्त की शादी में उनका गाना रेडियो मुजफ्फराबाद में काम करने वाले एक व्यक्ति ने सुना. उसने इन्हें रेडियो के डायरेक्टर से मिलवाया। वॉयस टेस्ट के बाद उन्होंने इन्हें काम दे दिया। इस तरह मीर के संगीत की शुरुआत हुई। उन्होंने रेडियो पर हर सप्ताह पांच शो करना शुरू कर दिया। अल्ताफ मीर बताते हैं कोक स्टूडियो नए टैलेंट की तलाश कर रहा था तभी एक महिला ने उनका नाम सुझाया। इस साल अप्रैल में कोक स्टूडियो के प्रोड्यूसरों ने अल्ताफ से मुलाकात की और उन्हें काम दिया।