अच्छी किताबें नहीं मिली तो आईएएस नहीं बन सके, अब बने लाइब्रेरीमैन

रांची । 2002 में चाईबासा में रहने वाले 20 वर्षीय संजय कच्छप ने स्नातक की पढ़ाई के वक्त आईएएस अधिकारी बनने का सपना देखा। इसके लिए इन्होंने अपने स्तर से हरसंभव कोशिश की, लेकिन गरीबी के कारण महंगी पुस्तकें खरीद पाने में वे असमर्थ थे। वहीं अच्छी पुस्तकें नहीं मिल पाने के कारण उनका यह सपना अधूरा हो गया। हालांकि बाद में उन्हें रेलवे और कृषि विभााग में नौकरी मिल गई। सरकारी नौकरी मिलने के बाद इन्होंने निर्धन बच्चों की परेशानियों को समझते हुए पुस्तकालय स्थापित करने का अभियान शुरू किया। अपने पैतृक गांव से लेकर जहां भी नौकरी के दौरान पदस्थापित रहे , वहां बच्चों के लिए पुस्तकालय स्थापित करने का काम किया। जिसके कारण इन्हें अब सभी ‘लाइब्रेरी मैन’ के नाम से जानने लगे। अब तक इन्होंने कोल्हान क्षेत्र में 40 पुस्तकालय की स्थापना करने में सफलता हासिल की है।
पैतृक स्थान में पहले ‘मोहल्ला पुस्तकालय’ की स्थापना
सरकारी नौकरी में आने के बाद सबसे पहले संजय कच्छप ने पश्चिमी सिंहभूम जिला मुख्यालय चाईबासा में वार्ड नंबर-1 के पुलहातू स्थित अपने पैतृक स्थान पर पहले ‘मोहल्ला पुस्ताकलय’ की स्थापना की। इस सराहनीय काम में उन्हें कई समान विचारधारा वाले लोगों ने मदद की। तब से लेकर अब तक उन्होंने कोल्हान प्रमंडल के तीन जिलों पश्चिमी सिंहभूम, सरायकेला-खरसावां और पूर्वी सिंहभूम जिले में लगभग 40 पुस्तकालयों की स्थापना की है। इन पुस्तकालयों की मदद से दूरदराज के क्षेत्रों में रहने वाले गरीब और आदिवासी छात्रों को बड़ी मिली है।
बाल दिवस पर दुमका स्थित सरकारी आवास में भी पुस्तकालय स्थापित
कृषि विभाग में कार्यरत संजय का तबादला पिछले दिनों दुमका में हो गया। 14 नवंबर बाल दिवस पर इन्होंने दुमका स्थित अपने आधिकारिक आवास के एक हिस्से में ही बच्चों के लिए पुस्तकालय की स्थापना की। संजय बताते है कि 2002 में जब वे स्नातक की पढ़ाई के दौरान संघर्ष कर रहे थे, तो उन्होंने महसूस किया कि चाईबासा जैसे दूरदराज के इलाकों में किताबों तक पहुंच पाने की कमी के कारण सिविल सेवाओं में प्रवेश करने का उनके बचपन का सपना मुश्किल था। गरीबी एक और बाधा थी। 2004 में चाईबासा में कॉलेज में स्नातक करने में कामयाबी मिलने के बाद रेलवे में कुछ दिनों के लिए नौकरी की। उसी दौरान उन्होंने यह फैसला कर लिया कि उन्हें जिस तरह से अच्छी पुस्तकों की कमी महसूस हुई है, वे अन्य गरीब और आदिवासी बच्चों को किताबों की मुश्किल नहीं होने देंगे।
पुस्तकालय स्थापना से युवाओं ने छोड़ा नशा
संजय ने अपने वेतन और कुछ दोस्तों की मदद से पुलहातू के सामुदायिक भवन में पहला पुस्ताकलय स्थापित करने में कामयाबी हासिल की। वर्ष 2008 तक इस क्षेत्र के लिए पुस्तकालय एक विदेशी शब्द था, लेकिन धीरे-धीरे जब स्थानीय युवाओं और छात्रों ने पुस्ताकलय का उपयोग करना शुरू किया,तो उन्हें एहसास हुआ कि पढ़ाई में व्यस्त रहने के कारण क्षेत्र के युवाओं में जागरूकता आई है, नशा की लत भी छूटने लगी है। इससे उत्साहित होकर और भी पुस्तकालय स्थापित करने का निर्णय लिया। इस बीच झारखंड लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास करने के बाद वे कृषि विभाग की नौकरी में आ गए और रेलवे की नौकरी छोड़ दी। मोहल्ला पुस्तकालय में पढ़ाई कर कई ने सिविल सेवा, रेलवे और बैंक समेत अन्य संस्थानों में नौकरी हासिल की
पुस्तकालय स्थापित करने के इस अभियान से कई युवाओं को सफलता मिली। इसी पुस्तकालय में बैठकर घंटों पढ़ाई करने वाले अजय कच्छप अभी डिप्टी कलेक्टर के रूप में कार्यरत है जबकि 29वर्षीय विकास टोप्पो पिछले 6 वर्षों से चाईबासा पुस्तकालय में पढ़ाई कर प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारियों में जुटे है। इस क्षेत्र के कई गरीब आदिवासी बच्चों ने इसी निःशुल्क पुस्तकालय में पढ़ाई कर रेलवे और बैंक समेत अन्य परीक्षाओं में सफलता प्राप्त की।
500 पंचायतों में पुस्तकालय खोलने के लिए 22 करोड़ मंजूर
इधर,राज्य सरकार भी सामुदायिक और मोहल्ला पुस्तकालय खोलने की योजना पर काम कर रही है। योजना के तहत अगले कुछ वर्षाें में सभी पंचायतों में पुस्तकालय स्थापित करने की योजना है। इस साल 30 सितंबर को राज्य सरकार के पंचायती राज विभाग ने पंचायत भवनों में 500 पुस्तकालय स्थापित करने की योजना के लिए 22 करोड़ रुपये के प्रस्ताव को मंजूरी दी है।

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