मुरादाबाद । मुरादाबाद की रामगंगा नदी पार स्थित गांव, ऐसा गांव जहाँ कभी ऐसी स्थिति कि लोग अपने बेटियों को रिश्ता इस गांव में करने से कतराते थे। बामुश्किल रिश्ते आ पाते थे। कोई इन स्थितियों को बदलने के लिए कदम उठाने की जहमत नहीं उठाना चाहता था। ऐसे में पूनम देवी यहां ब्याह कर आईं। ठाकुरद्वारा के सूरजनगर से आई पूनम ने इस स्थिति को देखा तो रामगंगा नदी के शांत पानी में पत्थर मारकर हलचल पैदा करने की ठान ली। रुकावटों की परवाह कहां थी। घूंघट छोड़ा और आत्मनिर्भरता की इबारत लिख डाली।
मुरादाबाद का जो गांव बमनिया पट्टी कभी बाढ़ की विभीषिका के कारण चर्चा के केंद्र में रहता था, यहां की विकास योजनाओं को लेकर चर्चा में आ गया है। इसके पीछे पूनम रानी की मेहनत को हर कोई मान रहा है। पूनम रानी करीब 20 साल पहले ठाकुरद्वारा के सूरजननगर से शादी के बाद बमनिया पट्टी गांव आई थीं। यहां की स्थिति को देखने के बाद पूनम ने घूंघट को छोड़ा और आत्मनिर्भरता को अपनाने का निर्णय लिया। पूनम आगे बढ़ीं तो उन्हें 10 अन्य महिलाओं का साथ मिला। स्वरोजगार से जुड़ीं। इसके बाद सफलता की कहानी लिखी जानी शुरू हो गई।
15 हजार से शुरुआत, 75 हजार पहुंचा टर्नओवर
पूनम रानी ने अपने 10 साथियों के साथ मिलकर वर्ष 2019 में सहारा अश्व कल्याण स्वयं सहायता समूह का गठन किया। इस सेल्फ हेल्प ग्रुप 15 हजार रुपये की लागत से अचार बनाने का काम शुरू किया। आज के समय में इस एसएचजी का टर्नओवर 75 हजार रुपये पहुंच गया है। उन्होंने अपने अचार की कीमत 200 रुपये किलो रखी है। इससे करीब 25 हजार रुपये की आमदनी उन्हें हो जाती है। पति खिलेंद्र सिंह भी पूनम का हर कदम पर साथ दे रहे हैं।
कोरोना काल में हुआ नुकसान
15 हजार रुपये से बिजनेस स्टार्ट किया तो ऑर्डर आने लगे। काम को बढ़ाना था। लागत राशि कम पड़ रही थी। इस कारण बैंक से लोन लेना पड़ा। उन्होंने एक लाख रुपये का कर्ज लिया। एक साल के भीतर ही देश में कोरोना का आगमन हो गया। इस महामारी देश के अन्य व्यवसाय की तरह उनके स्वरोजगार को भी खासा नुकसान पहुंचाया। काम चौपट हो गया था। लेकिन, फिर साहस बटोरा। महामारी की लहर गुजरी तो उन्होंने अपने व्यवसाय को ऑनलाइन शुरू किया। अब धीरे-धीरे चीजें पटरी पर आने लगी हैं।
पूनम के प्रयास और उनके प्रोडक्ट की तारीफ सोशल मीडिया पर हो रही है। खिलेंद्र सिंह ने अपनी पहुंच का फायदा उठाकर क्षेत्र के दुकानों पर अचार रखवा दिया है। उनकी मार्केटिंग ने पूनम के बिजनेस को स्थापित करने में भूमिका निभाई है। दुकानों पर अचार बिकने के बाद नए ऑर्डर आने लगे हैं। इसके लिए उन्होंने दुकानदारों का वॉट्सऐप ग्रुप तैयार किया है। ऑर्डर को यहां पर लिया जाता है और इसके आधार पर सप्लाई होती है।
पूनम रानी कहती हैं कि हर माह करीब 25 हजार रुपये का कारोबार हो जाता है। इसमें से 10 हजार रुपये मजदूरी में जाते हैं और 15 हजार रुपये की आमदनी हो जाती है। स्थिति बदलेगी तो कारोबार और बढ़ेगा। लोकल को वोकल बनाने का प्रयास जारी है। काम को आगे बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं, सफलता तो मिलेगी ही।
बच्चों को दे रही हैं बेहतर शिक्षा
पूनम ने अपने सेल्फ हेल्प ग्रुप के जरिए आम, आंवला, अदरक, मूली, गाजर, सब्जी और करेला का अचार बनाना शुरू किया। मांग के अनुरूप यहां पर अचारों को तैयार कराया जाता है। इससे आमदनी ने उनके जीवन को बदला है। गांव की महिलाओं के भी। उनके बच्चे भी इससे लाभान्वित हुए हैं। पूनम की बेटी वर्निता बीएससी की पढ़ाई कर रही हैं। वहीं, बेटा जतिन बीफॉर्मा का कोर्स कर रहा है। पति इलेक्ट्रिक गुड्स की दुकान चलाते है। पूनत अपने साथ-साथ गांव की अन्य महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ने का काम कर रही हैं। यह बदलाव की एक शुरुआत मान सकते हैं।