यादे दुजोम पिकल क्वीन के नाम से अपनी अलग पहचान रखती हैं। वह जब 4 साल की थीं, तब उसकी मां का निधन हो गया। बचपन से अपनी नानी और सौतेली मां के दुर्व्यवहार को सहने के बाद यादे ने हारकर बैठ जाने के बजाय अपने भविष्य को संवारने की योजनाओं पर काम किया। वैसे भी ईटानगर एक ऐसी जगह है जहां बहुत कम महिलाएं काम करती हैं, वहां यादे न सिर्फ एक उद्यमी के तौर पर जानी जाती हैं, बल्कि उनका ब्रांड ‘अरुणाचल पिकल हाउस’ भी अचार के लिए कस्टमर्स की पहली पसंद बना हुआ है।
यादे कहती हैं, मेरा अब तक का जीवन संघर्ष करते हुए ही बीता। मेरी मां के न रहने पर मुझे और मेरी बड़ी बहन को नानी के घर रहना पड़ा। वह खेती करती थीं और हम दोनों भी उनके काम में मदद करते। जैसे-तैसे मेहनत करके हम दोनों बहनें कुछ बड़े हुए कि एक दिन नानी भी दुनिया छोड़कर चली गईं। तब मैंने आठवीं कक्षा पास की थी। नानी के न रहने पर दोनों बहनों को अपनी सौतेली मां और पिता के साथ रहना पड़ा। सौतेली मां के साथ रहते हुए उन्हें दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं होती थी। न ही पहनने को कपड़े दिए जाते थे। ऐसे हालतों में भी 12 वीं कक्षा तक यादे ने पढ़ाई की और फिर आगे की पढ़ाई के लिए वे ईटानगर आ गईं। यहां अपनी पढ़ाई जारी रखने और खुद का खर्च उठाने के लिए वे नौकरी करने लगीं। अपने व्यवसाय की शुरुआत से पहले वह सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर काम किया करती थीं। वह हर महीने बचत भी करने लगीं। उन्हीं दिनों यादे ने फूड प्रोसेसिंग, लेबल मेकिंग और प्रिजर्वेटिव्स से जुड़ी जानकारी इकट्ठा की। उसने मणिपुर की कुछ महिलाओं से अचार बनाना सीखा। उसके बाद अरुणाचल प्रदेश में इसका प्रशिक्षण लिया। इसी साल यादे ने अपने ब्रांड अरुणाचल पिकल हाउस की शुरुआत की। यहां वे गांव की कुछ महिलाओं को भी रोजगार उपलब्ध करा रही हैं।
(साभार – दैनिक भास्कर)