हिन्दी की गरिमा का सांस्कृतिक उद्घोष है हिन्दी साहित्य ज्ञानकोश

कोलकाता  : कोई भी ज्ञानकोश ऐसे ज्ञान का द्वार खोलता है जो पाठकों में जिज्ञासा, खुलापन और रचनात्मकता पैदा करे।  हिन्दी साहित्य ज्ञानकोश भारत में निर्मित कोशों की परंपरा में 7 खंडों का एक अद्वितीय ग्रंथ है। भारतीय भाषा परिषद में इसके प्रकाशन के अवसर पर आयोजित गोष्ठी में देश के विभिन्न कोनों से आए विद्वानों ने इसका स्वागत किया और बताया कि हिन्दी में पचास साल के बाद एक ऐसा कोश आया है जिसमें हिंदी साहित्य से संबंधित सभी विषयों के अलावा मीडिया, पर्यावरण, समाज विज्ञान, इतिहास, मानवाधिकार, धर्म और संस्कृति जैसे विषयों से संबंधित 2,660 प्रविष्टियाँ हैं। यह ज्ञानकोश कोलकाता में बना है जो एक गौरव का विषय है।
बनारस हिंदू विश्‍वविद्यालय के वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ.अवधेश प्रधान ने कहा कि नए समय की चुनौतियों के संदर्भ में इस कोश का निर्माण हुआ है। यह  हिन्दी शिक्षा जगत के एक बड़े अभाव को पूरा करेगा। यह कोश बहुत सरल भाषा में तैयार हुआ है। यह  हिन्दी की महान परंपरा की ही एक विकसित कड़ी है। सम्पादक मंडल के सदस्य डॉ.अवधेश प्रसाद सिंह ने कहा कि इस ज्ञानकोश की तरह ही एक मानक  हिन्दी व्याकरण की आवश्यकता है। इग्नू से जुड़े प्रो.जवरीमल्ल पारख ने कहा कि आज साहित्य के अध्ययन के लिए ज्ञान के व्यापक क्षेत्रों का अध्ययन भी जरूरी है। यह ज्ञानकोश इसी कमी को पूरा करता है। यह देश के 275 लेखकों के सहयोग से बना है। यह महज सूचनाओं का भंडार नहीं है बल्कि ज्ञान का भंडार है।
ज्ञानकोश के प्रधान सम्पादक डॉ.शंभुनाथ ने कहा, ‘यह महज कुछ व्यक्तियों का निर्माण नहीं है बल्कि भारतीय संस्कृति और हिन्दीभाषी समाज की रचनात्मक शक्ति की अभिव्यक्ति है। यह ज्ञानकोश परम्परा और नवोन्मेष का संगम है। मुझे खुशी है कि देश भर में इसका व्यापक स्वागत हो रहा है। फिर भी मैं यही कहूँगा कि हमने एक विकसनशील ज्ञानकोश की नींव डाली है जिस पर आने वाली पीढ़ियाँ इमारत ऊंची करती जाएंगी।’
ज्ञानकोश समारोह की अध्यक्षता संस्कृत के प्रसिद्ध विद्वान और राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के पूर्व कुलपति डॉ.राधावल्लभ त्रिपाठी ने की। उन्होंने कहा कि यह ज्ञानकोश  हिन्दी की एक ऐसी उपलब्धि है जो दशकों तक हिन्दी पाठकों को आलोकित करेगी। उन्होंने कहा कि भारतीय बहुलता में अखंडता की एक दीर्घ परंपरा है जो इस ज्ञानकोश में भी प्रतिबिंबित होती है। यह देश की संस्कृति को बचाने की ही एक कोशिश है। आज सोशल मीडिया पर जिस तरह भ्रामक सूचनाओं को प्रचार हो रहा है, यह ज्ञानकोश उस साम्राज्य से टक्कर लेता है।
भारतीय भाषा परिषद की अध्यक्ष डॉ.कुसुम खेमानी ने स्वागत भाषण देते हुए कहा कि हम इस ज्ञानकोश का प्रकाशन करके गौरवान्वित महसूस करते हैं। यह हम सब की एक सामूहिक उपलब्धि है।
इस ज्ञान समारोह में शोध सहायक के रूप में काम करने वाले शोधार्थियों – दिनेश कुमार शर्मा, श्रद्धांजलि सिंह, पूजा गुप्ता, पीयूषकांत और उपेंद्र शाह का अभिनंदन किया गया। समारोह में बड़े पैमाने पर लेखक, शिक्षक और विद्यार्थीगण उपस्थित थे। सभा का संचालन परिषद की मंत्री बिमला पोद्दार ने किया।

 

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