कोलकाता : सीताराम सेकसरिया स्वाधीनता संग्राम में तीन बार जेल गए थे और उनके जीवन के ढाई साल जेल में बीते थे। 1947 के बाद व्यवसाय से मुक्त हो कर उन्होंने अपना पूरा जीवन समाज सेवा और स्त्री शिक्षा के प्रसार के लिए समर्पित कर दिया। सीताराम सेकसरिया और भागीरथ कानोड़िया की जोड़ी ने न केवल भारतीय भाषा परिषद की स्थापना की बल्कि राजस्थान में भी कई सामाजिक कार्य किए। उनका जीवन गांधी के विचारों से आलोकित था। भारतीय भाषा परिषद के संस्थापक दिवस समारोह के अवसर पर विद्वानों ने ये विचार व्यक्त किए।
समारोह में ‘गांधी के सुधार आंदोलन और स्त्री शिक्षा’ पर बोलते हुए गांधी शांति प्रतिष्ठान, नयी दिल्ली के अध्यक्ष प्रसिद्ध गाँधीवादी कुमार प्रशांत ने कहा कि जिस गांधी ने 1896 में कस्तूरबा को घर से निकालने की ठान ली थी। उनमें 1916 तक इतना परिवर्तन आ चुका था कि एक विषय पर असहमति के बाद अपनी पत्नी बा से उन्होंने कहा कि हम असहमति के बावजूद साथ रह सकते हैं। इस तरह गाँधी ने असहमति को कुचलने की जगह उसे मर्यादा दी जो आज भी लोकतंत्र की प्रधान शर्त कही जा सकती है। गाँधी ने यह भी कहा कि एक पुरुष को शिक्षा देेने से एक व्यक्ति शिक्षित होता है पर एक स्त्री को शिक्षा देने से पूरा परिवार शिक्षित होता है। गाँधी ने अहिंसा का जो संदेश दिया, वह आज सांप्रदायिक विद्वेष और हिंसा के दौर में खोता जा रहा है। उनका जीवन आज भी एक संदेश है।
भारतीय भाषा परिषद के संस्थापक दिवस समारोह में कश्मीर में हिंदी की अलख जगाने वाली बीना बुदकी और कोलकाता में वंचितों तक शिक्षा पहुंचाने वाली समाजसेवी सुस्मिता गुप्ता को ‘समाज कल्याण पुरस्कार’ से नवाजा गया। इस अवसर पर रतनलाल शाह ने सीताराम सेकसरिया और भागीरथ कानोड़िया की मित्रता से जुड़े कई मार्मिक प्रसंग सुनाए और महेश लोधा ने गांधी पर अपने विचार रखे। अध्यक्षीय भाषण देते हुए बांग्ला कथाकार रामकुमार मुखोपाध्याय ने गाँधी और रवींद्रनाथ के महान कार्यों में एक गहरा मानवतावादी संबंध देखा। संचालन करते हुए नंदलाल शाह ने किया। बिमला पोद्दार ने परिषद की ओर से धन्यवाद दिया।
प्रेषक : सुशील कान्ति