Wednesday, February 12, 2025
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स्कंद पुराण में उल्लेख है रहस्यमयी रंग बदलने वाली लोनार झील का

महाराष्ट्र के बुलढाना जिले में स्थित लोनार नामक जगह पर एक झील है जिसे लोणार सरोवर कहते हैं। हाल ही में इसका पानी नीले से गुलाबी रंग में बदल गया है। आओ जानते हैं कि क्यों रहस्यमयी मानी जाती है लोनार झील , ऋग्वेद और स्कंद पुराण से लोनार का संबंध क्या है और लोनार लेक का इतिहास क्या है जानिए इस झील के बारे में 5 खास बातें।

1. उल्का पिंड से बनी झील : वैज्ञानिक कहते हैं कि यह झील एक उल्कापिंड के धारती से टकराने से बनी है। अनुमानित रूप से यह 10 लाख टन वजनी उल्कापिंड 22 किलोमीटर प्रति सेकंड की रफ्तार से धरती से टकराई थी जिसके चलते 10 किलोमिटर के क्षेत्र में धूल का गुब्बार छा गया था। जब यह धरती से टकराई तो 18000 डीग्री तापमान उत्पन्न हुआ जिसके कारण उल्का जलकर खाक हो गई और यहां 150 मीटर गहरा गोल गड्ढा बन गया। लोनार झील 5 से 8 मीटर तक खारे पानी से भरी हुई है।
2. कितनी पुरानी है झील : 2010 से पहले माना जाता था कि यह झील 52 हजार साल पूरानी हैं लेकिन हालिया हुए शोध के अनुसार यह झील लगभग 5 लाख 70 हजार वर्ष पुरानी है। इसकी गहराई करीब 150 मीटर बताई जाती है और इसका व्यास 1.2 किलोमीटर है। हालांकि कुछ वैज्ञानिकों का अभी भी मानना है कि यह झील 35-50 हजार वर्ष पूरानी है।
3. हिन्दू शास्त्रों में जिक्र : इस झील का हिन्दू वेद और पुराणों में भी जिक्र होना बताया जाता है। कहते हैं कि इसका ऋग्वेद, स्कंद पुराण और पद्म पुराण में जिक्र है। इस झील के संबंध में स्कंद पुराण में एक कथा मिलती है कि इस क्षे‍त्र में कभी लोनासुर नामक एक असुर रहता था जिसके अत्याचार से सभी दु:खी थे। देवतानों ने भगवान विष्णु से लोनासुर के आतंक से मुक्ति की विनति की तो भगवान विष्णु ने एक सुंदर युवक उत्पन किया और उसका नाम दैत्यसुदन रखा। दैत्यसुदन ने पहले लोनासुर की दोनों बहनों को अपने प्रेमजाल में फांस और फिर उनकी मदद से उस एक मांद का मुख्यद्वार खोल दिया, जिसमें लोनासुर छिपा बैठा था। दैत्यसुदन और लोनासुर में भयंकर युद्ध हुआ और अंतत: लोनासुर मारा गया। वर्तमान में लोनार झील लोनासुर की मांद है और लोनार से लगभग 36 किमी दूर स्थित दातेफाल की पहाड़ी में उस मांद का ढक्कन स्थित है। पुराण में झील के पानी को लोनासुर का रक्त और उसमें मौजूद नमक को लोनासुर का मांस बताया गया है।
4. अजीब कुआं : इस झील के पास एक कुआँ मौजूद है जिसके आधे हिस्से का पानी खारा और आधे का मीठा है। इसी कारण इसे सास-बहु का कुआं भी कहते हैं। यह भी
कहा जाता है कि लोणासुर का वध करने के चलते उसका रक्त भगवान के अंगुठे में लग गया था जिसे हटाने के लिए भगवान ने यहां अंगुठा रगड़ा जिससे यह गड्डा बन गया जो अब कुएँ के रूप में विद्यमान है।
5. झील के पास है कई प्राचीन मंदिर : इस झील के आसपास चारों ओर ऊंचे ऊंचे पहाड़ है। पहाड़ों पर चढ़ने के बाद उतरकर इस झील के पास जाने के लिए करीब आधा किलोमीटर का रास्ता तय करना होता है फिर इस झील के किनारे पहुंचा जाता है। इस झील के तट पर शिवजी का एक प्राचीन मंदिर है। पहड़ा पर चड़ने और उतरने के रास्ते के बीच में कई प्राचीन मंदिर और खंडहर हमें मिलेंगे जिसने के बारे कहा जाता है कि यह एक हजार वर्ष पूर्व यादव राजाओं ने बनवाए थे।
यहाँ स्थित मंदिर भगवान सूर्य, शिव, विष्णु, दुर्गा और नृसिंह भगवान को समर्पित हैं। कहते हैं कि यह प्राचीनकाल में कई ऋषि मुनियों की तपोभूमि की रही है। पर्यटन की दृष्टि से यह एक हिन्दू धार्मिक स्थल है।
(साभार – वेबदुनिया में प्रकाशित अनिरुद्ध जोशी का आलेख)

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