कोलकाता । साहित्यिकी संस्था द्वारा वर्चुअल गोष्ठी में संस्था की वरिष्ठ लेखिका रेणु गौरीसरिया और प्रमिला धूपिया के व्यक्तित्व और कृतित्व पर परिचर्चा का आयोजन किया गया ।दोनों का ही जन्म 1941 का है और दोनों ही बालिका शिक्षा सदन विद्यालय की छात्रा रही हैं। प्रमुख वक्ताओं में गीता दूबे और कुसुम जैन ने क्रमशः रेणु गौरिसरिया और प्रमिला धूपिया की साहित्यिक यात्रा के महत्वपूर्ण पहलुओं पर विचार व्यक्त किए ।
कथाकार और साहित्यकार रेणु गौरीसरिया के जीवन यात्रा पर गीता दूबे ने विस्तार से जानकारी देते हुए कहा कि रेणु जी बालिका शिक्षा सदन में प्रसिद्ध कथाकार मन्नू भंडारी की शिष्या और साहित्य मर्मज्ञ रहीं। साथ में एक लोकप्रिय शिक्षिका भी रहीं। उनके जीवन के संघर्षों और दुखों को कभी भी हाईलाइट न करते हुए सकारात्मक ऊर्जा सोच से अपने अस्सी वर्ष में आज भी ऊर्जा से भरी हुई हैं। बताया कि रेणु जी की हिंदी आत्मकथा ‘जकारिया स्ट्रीट से मेफेयर तक’ का अब द्वितीय संस्करण आ रहा है और बांग्ला में भी अनुवाद हो रहा है। रेणु जी के आलेख ‘समस्या’ को साहित्यिकी की वरिष्ठ सदस्या मीना चतुर्वेदी ने पढ़ा।
रेणु गौरीसरिया ने अपने वक्तव्य में संस्था को धन्यवाद देते हुए कहा कि उन्हें जीवन के हर मोड़ पर प्रेम मिला। पुस्तकें पढ़ना, फिल्म, नाटक आदि देखना रुचि रही है और हंँसते रहना ही जीवन का मूलमंत्र माना है, रोना कोई नहीं सुनता। लेखिका प्रकृति से सौम्य हैं और जीवंतता इनके जीवन के महत्वपूर्ण अंग है। उनकी अनुभूतियों को उनकी रचनाओं में पढ़ा जा सकता है। बीस जुलाई 2022 को हुई इस गोष्ठी में मीना चतुर्वेदी ने रेणु के आलेख ‘समस्या’ का पाठ बहुत ही भावपूर्ण होकर किया जो बहुत ही सहज और प्रभावी रचना है। रेणु गौरीसरिया ने अपने वक्तव्य में अपने जीवन के अनुभवों को साझा किया।स्कॉटिश चर्च कॉलेज की हिंदी विभागाध्यक्ष और साहित्यकार गीता दूबे ने रेणु गौरीसरिया के व्यक्तित्व और कृतित्व पर चर्चा करते हुए कहा कि वे एक शिक्षिका होने के साथ-साथ एक सफल लेखिका हैं। इस अवसर पर उषा श्राफ और पूनम पाठक ने प्रश्न भी किए जो रेणु जी के जीवन के दुखों और अच्छी शिक्षिका कैसे बनें से संबंधित रहे।
साहित्यिकी की दूसरी वरिष्ठ सदस्या प्रमिला धूपिया रानी जीजी के रूप में लोकप्रिय हैं। जिनकी कविता ‘स्वागत है स्वर्ग में तुम्हारा ‘का पाठ बबीता माँधणा ने किया। माँधणा ने स्वरचित दोहे के साथ दोनों लेखिकाओं के गुणों और विशेषताओं का वर्णन किया। प्रमिला जी ने बताया कि संस्था की निदेशक कुसुम जैन की प्रेरणा से उन्होंने लिखना शुरू किया। विशारद प्रमिला जी भी बालिका शिक्षा सदन में मन्नू भंडारी जी की शिष्या रहीं और वहीं से पढ़ने-लिखने लिखने की रुचि विकसित हुई।
कुसुम जैन ने प्रमिला धूपिया के साथ अपने पचास वर्षों की यात्रा के अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि संयुक्त परिवार की परंपरा और पुरुष प्रधान संस्कृति में एक सशक्त महिला के रूप में अपने को प्रतिष्ठित करते हुए प्रमिला यानी रानी जीजी को एक सशक्त व्यक्तित्व की मलिका बताया। समझौता और प्रतिरोध दोनों ही उनके व्यक्तित्व के महत्वपूर्ण पहलू हैं। उनके प्रगतिशील विचारों से भरे लेखन पर विस्तार से जानकारी दी।
प्रमिला धूपिया ने कहा कि मेरे लेखन पर इस तरह की चर्चा करने के लिए संस्था को धन्यवाद देती हूँ अपने जीवन में आए अच्छे शिक्षकों मन्नू भंडारी और रमेश सर के संस्कार और पढ़ने की रुचि को महत्वपूर्ण बताया।
अध्यक्षता करते हुए भवानीपुर एजूकेशन सोसाइटी कॉलेज की हिंदी व्याख्याता डॉ वसुंधरा मिश्र ने वरिष्ठ लेखिकाओं की रचनाधर्मिता पर अपने महत्वपूर्ण विचारों को व्यक्त करते हुए कहा कि वर्तमान संदर्भ में रेणु गौरीसरिया और प्रमिला धूपिया के व्यक्तित्व और कृतित्व दोनों ही प्रेरित करने वाले हैं। दोनों ही अपने – अपने जीवन में
एक संपूर्ण महिला हैं । अस्सी की उम्र में रेणु जी का लेखन अभी भी अपनी ऊंँचाइयों को छू रहा है और प्रमिला धूपिया की जीवन शैली, अनुशासन, संकल्प और आदर्शों को लेकर परिवार, समाज और संस्कृति की विरासत के रूप में सभी को प्रेरित करता है। अनुभूति जब लेखन में उतरती है तो वह सृजन बन समष्टि से जुड़ जाती है।
कार्यक्रम का संयोजन व संचालन वरिष्ठ सदस्या डॉ सुषमा हंस ने किया। संस्था की सचिव डॉ मंजु रानी गुप्ता ने कार्यक्रम के प्रारंभ में सभी का स्वागत करते हुए अपने विचार व्यक्त किए। अंत में, डॉ वसुंधरा मिश्र ने सभी सदस्याओं को धन्यवाद देते हुए कहा कि इस प्रकार के कार्यक्रम लेखन को बढ़ावा देते हैं और साहित्यिकी कई महत्वपूर्ण लेखिकाओं से समय-समय पर रूबरू कराती रहती है जिससे दूसरे लेखकों को प्रेरणा मिलती है। इस प्रकार की साहित्यिक परिचर्चा से विचारों का आदान-प्रदान होने के साथ-साथ लेखन और पाठक समृद्ध होता है। तकनीकी सहयोग दिया नुपूर अशोक ने। कार्यक्रम में साहित्यिकी संस्था की सदस्याओं की अच्छी-खासी उपस्थिति रही।