कोलकाता की सुपरिचित संस्था साहित्यिकी की ओर से हाल ही में भारतीय भाषा परिषद के सभागार में भीष्म साहनी शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित संगोष्ठी में भीष्म साहनी के साहित्यिक अवदानों पर गंभीर चर्चा हुई। डॉ. विजयलक्ष्मी मिश्रा के स्वागत भाषण से संगोष्ठी की सफल शुरुआत हुई। सविता पोद्दार ने साहनी की कहानियों का विश्लेषण करते हुए कहा कि भीष्म साहनी ने कथा साहित्य की जड़ता को तोड़कर उसे ठोस सामाजिक आधार दिया है। उन्होंने मध्यवर्ग और निम्न मध्यवर्ग की समस्याओं को उभारा।प्रसिद्ध नाट्यकर्मी महेश जायसवाल ने भीष्म साहनी के नाटकों पर बोलते हुए कहा कि रचनाकार का अपने समाज से जो रिश्ता होता है वह उसकी वैचारिक चेतना को विकसित करता है। भीष्म साहनी ने बंटवारे के दर्द को झेला और उसे अपनी रचनाओं में उतारा। भीष्म प्रगतिशील चेतना से संपन्न नाटककार थे।
महेश जी ने भीष्म के प्रसिद्ध नाटक “कबिरा खड़ा बाजार में ” के एक अंश की भावपूर्ण श्रुति नाट्य प्रस्तुति की जिसमें उनका साथ श्रीमती विजयलक्ष्मी मिश्रा और गीता दूबे ने दिया।
डा आशुतोष ने कहा कि भीष्म साहनी का आंकलन हमें मुकम्मल लेखक के तौर पर करना चाहिए और लेखकों को देवता के रूप में स्थापित करने से बचना चाहिए। रंगकर्मी जीतेन्द्र सिंह ने उनके नाटकों की चर्चा करते हुए हानूश को बहुत अधिक सशक्त नाटक के रूप में चिह्नित किया। गीता दूबे ने भीष्म साहनी के औपन्यासिक अवदान पर विचार करते हुए उन्हें मूल्यबोध की चेतना से संपन्न रचनाकार के रूप में रेखांकित किया। अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में डा. किरण सिपानी ने भीष्म साहनी की प्रासंगिकता को उभारा। संगोष्ठी का सफल संचालन डा. वसुंधरा मिश्र और धन्यवाद ज्ञापन वाणीश्री बाजोरिया ने किया। कार्यक्रम में साहित्यिकी की सदस्याओं के अलावा शहर के प्रतिष्ठित साहित्यकारों ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज की, जैसे, जीतेन्द्र जीतांशु, कल्याणी ठाकुर, सेराज खआन बातिश, कपिल आर्य, पुष्पा तिवारी आदि।
गीता दूबे