बंगाल में चुनाव का बुखार चढ़ता जा रहा है। सियासी आँच पर सब कुछ पक रहा है, स्टिंग से लेकर हादसों तक। राजनीति तो पहले भी हर बात पर होती थी मगर अब लाशों पर भी सियासत तेज हो रही है। 31 मार्च का दिन कोलकाता के इतिहास में एक और हादसा लिख गया मगर यह हादसा था या लापरवाही के कारण होने वाली तबाही, तय करना मुश्किल है। हमेशा की तरह सभी पार्टियों ने बयानबाजी तेज कर दी है मगर सवाल यह है कि इस बयानबाजी की जंग से जो जानें गयी हैं, वे क्या वापस लौटेंगी? सियासत की जंग अभी बहुत कुछ दिखाने वाली है मगर इन सबके बीच एक सवाल यह है कि महिलाओं की स्थिति क्या है और सबसे बड़ी बात यह है कि उनकी भूमिका क्या है? बेहद दुःखद है कि बहुत सी शिक्षित महिलाएं भी अपनी यह जिम्मेदारी नहीं निभाना चाहतीं या पूरी प्रक्रिया के प्रति उदासीन बनी रहती हैं या फिर सारा जिम्मा अपने घर वालों पर छोड़ देती हैं। अगर आप एक सजग नागरिक के रूप में अपने अधिकारों का प्रयोग नहीं कर पातीं तो सशक्त होना शायद आपके लिए सम्भव ही नहीं है। सशक्तीकरण के लिए जरूरी है कि अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का उपयोग किया जाए और अच्छी बात है कि इस दिशा में जागरूकता आ रही है। जाति और धर्म की दीवारों से ऊपर उठकर निष्पक्ष भाव से मतदान करना आपका अधिकार ही नहीं बल्कि आपका दायित्व भी है। कम से कम देश के विकास और भविष्य को ध्यान में रखना तो बेहद आवश्यक है। जनता सजग होगी तो सरकार के लिए काम करना पहले उसकी विवशता होगी और बाद में आदत बनेगी इसलिए अपराजिता का निवेदन है कि आप सभी जहाँ भी हॆं, अपने मताधिकार का प्रयोग करें और करवाएं। पोएला बैशाख और बैसाखी के साथ नये साल व नवरात्रि व रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं