समाज को बदलना है तो बड़ों को सोच बदलकर नयी पीढ़ी को समझना होगा

अपराजिता फीचर डेस्क

इस देश में संस्कृति, परिवार, परम्परा, इज्जत और समाज पर बहुत जोर दिया जाता है। माता – पिता, भाई, बहन…ये सब राजश्री फिल्म्स की फिल्मों में अच्छे लगते हैं मगर भारत में परिवार बच्चों की परवरिश नहीं करता बल्कि उसे नियंत्रित करता है। इसका सीधा सम्बन्ध हमारे देश के विकास से इसलिए है क्योंकि दमन के शिकार युवा कभी मानसिक तौर पर स्वस्थ समाज नहीं खड़ा कर सकते। आपकी मुश्किल यह है कि आपके बच्चों की जिन्दगी के निजी फैसले भी आपकी नाक का सवाल बन जाते हैं। अगर बच्चे दहेज न लेना चाहें तो आप बेटी की शादी का हवाला देते हैं, बेटी अगर विरोध करे तो समाज और नाक का हवाला देकर उसे चुप करवा देते हैं।

प्रेम करे तो बाकायदा इमोशनल ब्लैकमेल करते हैं, पढ़ाई छुड़वाते हैं, घर में कैद करते हैं और अनचाही शादी के बंधन में बाँधते हैं और इस पर भी बात न बने तो उसे मार डालते हैं। बहू को मिलने वाला प्यार उसके मायके से आने वाले दहेज की मात्रा पर निर्भर करता है, बेटी को दी जाने वाली आजादी और प्रोत्साहन उसकी ससुराल की मर्जी पर निर्भर करता है और आप कहते हैं कि आप जो भी करते हैं, अपने बच्चों के लिए करते हैं, मान लीजिए, यह सबसे बड़ा झूठ है। अपनी जिद और अकड़ नहीं छोड़ने वाले आप अपने बच्चों से उम्मीद करते हैं कि वह उनके लिए अपना सब कुछ छोड़ दे तो यह कुछ और नहीं बल्कि उस परवरिश की कीमत है क्योंकि आपने बच्चों के व्यक्तित्व को स्वीकार नहीं किया, वे आपके लिए निवेश थे। जानकर रख लीजिए, ऐसे में बच्चे आपका लिहाज करें भी तो आप उनकी नजर में अपना सम्मान खो चुके होते हैं। आपकी जिम्मेदारी समझाने तक है, जबरदस्ती करने का अधिकार नहीं है मगर बच्चों को आपका किया हुआ याद रहता है, इसलिए वे झुकते हैं और आप इसे अपनी जीत समझते हैं, दरअसल यह आपकी हार है।

ऐसे बहुत से युवाओं को जानती हूँ, जिनकी जिन्दगी उनके अभिभावकों की एक हाँ बदल सकती थी और वे बहुत सृजनात्मक हो सकते थे मगर वे नहीं है। हमारे भविष्य का एक बड़ा हिस्सा अगर घुटन में जी रहा हो तो देश का विकास कैसे होगा, ये सोचने वाली बात है। ऐसे युवाओं को दुनिया में हो रही किसी अच्छी बात पर विश्वास नहीं होता, उनको लगता ही नहीं कि उनकी दुनिया में कुछ सकारात्मक हो सकता है। वे जिन्दगी को जीते नहीं, ढोते हैं और आपको लगता है कि आपका घर खुशहाल है, खुशफहमी है ये और कुछ नहीं। एक आपकी जिद के कारण वह धोखा देता है, जिन्दगी से भागता है, कई बार नशे में चूर होता है, टूटता है और हिंसा करता है, अभिभावकों, यह सब आपका तोहफा है इन युवाओं को, जो कुछ करना चाहते थे मगर अब टूटे खिलौनों की तरह हैं।

 

प्रेम की बातें कहीं जाती हैं किताबों में, कविताओं में और हमारी परम्परा में भी ढेरों प्रेम कहानियाँ हैं मगर जब उनको जीवन में उतारने की बारी आती है तो उपरोक्त सारे फलसफे दीवार बनकर संवेदनाओं को चूर कर जाते हैं और इनमें सबसे बड़ी भूमिका उसी परिवार और अभिभावकों की होती है जो समाज, रिश्तेदारों और अपनी या अपने घर की इज्जत का हवाला देकर अपने बच्चों के सपनों की बलि दे देते हैं। उस पर भी उम्मीद ये की जाती है कि वह युवा जिन्दगी से प्रेम करे, उनका सम्मान करे, उनसे प्रेम करे और उनकी नाक को ऊँचा करता रहे। इस देश में युवाओं की जिम्मेदारी की बातें बहुत की जाती हैं मगर उनके अधिकार अक्सर दबा दिए जाते हैं, विद्रोह करें तो गोली मार दी जाती है या सूली पर लटका दिया जाता है।

मजे की बात यह है कि प्रेम को दबाने और कुचलने वाले ही प्रेम गीत और रोमांटिक फिल्में भी देखते हैं। खलनायक को गालियाँ देते हैं मगर अपनी जिन्दगी में कभी कुछ भी नहीं सीखते। इस दोहरे संस्कारों और दोहरे मापदंडों वाले समाज का भविष्य भी कुंठा भरा ही होगा और आपको उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि आपका बच्चा आपसे प्यार करेगा या आपका सम्मान करेगा। ऐसे वातावरण में, ऐसे परिवार में सिर्फ घुटन होती है और आप अपनी घृणा का जहर आने वाली पीढ़ी को यह समझकर दे रहे हैं कि वह इसे अमृत समझे, वह नहीं समझेगी, उसे समझना भी नहीं चाहिए। आप तय कीजिए कि आपने बच्चों को बड़ा किया है या एटीएम मशीन खरीदी है। ये कैसा स्टेटस और अहंकार है जो जिन्दगी पर भी भारी पड़ता है। आप किसी को घुटते देख सकते हैं मगर अपने अहंकार से समझौता नहीं कर सकते बल्कि साजिश रचकर उसे झुकाने की कोशिश करते हैं, अगर ये परिवार और, ममता और प्यार है तो इससे बुरा कुछ नहीं हो सकता।

कई अभिभावक तो यह भी तय करते हैं कि उनकी बहू, बेटी या बेटे को उनके दोस्तों, कार्यालय के सहकर्मियों और ससुराल से कैसे पेश आना चाहिए और यहाँ तक कि उनके कितने बच्चे और कब होने चाहिए….यह बात कड़वी है मगर एक समय के बाद आपके बच्चों की जिन्दगी में आपका दखल खत्म होना जरूरी है वरना वे कभी आगे नहीं बढ़ेंगे। आप अपनी जिन्दगी अपने हिसाब से जीए या अभिभावकों के दबाव में, वह आपका फैसला था मगर आप अपने बच्चों की जिन्दगी का रिमोट अपने हाथ में रखना चाहते हैं, तो यह आपकी जबरदस्ती भले हो सकती है मगर आपका अधिकार नहीं है।

 

बच्चों को आपने मोल्डिंग मशीन समझ रखा है, वह पहने आपके हिसाब से, जीए आपके हिसाब से, पढ़े हिसाब से, कार्यक्षेत्र भी आपकी मर्जी से चुने और जीवनसाथी भी आपके स्टेटस के हिसाब से और यही इस देश की अधिकतर समस्याओं की जड़ है। बाल विवाह बच्चे खुद नहीं करते, दहेज भी आप ही बच्चों के जरिए अपनी नाक के लिए लेते और देते हैं, उनके प्रेम में दीवार बनकर ऑनर किलिंग भी आप ही करते हैं।

अगर अनचाही शादी या गलत शादी के होने के कारण आपका बेटा या बेटी कहीं बाहर प्यार तलाशता है, नशा करता है, अपने जीवनसाथी के साथ हिंसा करता है तो भले ही वह गुनहगार वह है और यह भले ही आपकी नजर में अवैध हो मगर इस गुनाह के तार भी आपसे ही जुड़े हैं। कई बार कन्याभ्रूण की हत्या और बेटियों से होने वाला पक्षपात, लड़कों को अपराधी बनने की हद तक शह देना कि वह निर्भया सा कांड कर डाले, यह आप ही की देन है इसलिए समाज को बदलना चाहते हैं तो सबसे पहले खुद को बदलिए। दोहरेपन से मुक्त होकर अपने बच्चों को खुली हवा में साँस लेने दीजिए वरना आप बच्चों की नजर में ही नहीं आने वाली पीढ़ी के भविष्य में जहर घोलने वाले गुनहगार से अधिक कुछ नहीं होंगे।

शुभजिता

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