समाज की नब्ज टटोलता कबिरा खड़ा बाजार में

लिटिल थेस्पियन की ओर से हाल ही में  भीष्म साहनी लिखित “कबीरा खड़ा बाज़ार में” का मंचन भारतीय भाषा परिषद सभागार में किया गया। नाटक के निर्देशक एस एम अज़हर आलम हैं। लगभग 1 घंटे 40 मिनिट के इस नाटक में कबीर के माध्यम से सामाजिक परिस्थितियों का चित्रण किया गया है।kabira (2)

नाटक का सारांश – 

भीष्म साहनी द्वारा लिखित नाटक ‘कबीरा खड़ा बाजार में’ संत कबीरदास के माध्यम से  समाज में व्याप्त कुरीतियों-विसंगतियों, जात-पात, छुआ-छूत, ऊंच-नीच, ढोंग-आडंबर और भेदभाव के खिलाफ पुरजोर ढंग से आवाज उठाई गई है l इस नाटक का सशक्त पक्ष कबीर की निर्गुणी रचनाएं हैं जो मानस पर अपना गहरा प्रभाव छोडती है।

निर्देशकीय –

नाटक में कबीर के फकीराना अंदाज के साथ धार्मिक मठाधीशों की चालबाजी और राजनीतिक शातिरों की जालसाजी का बखूबी चित्रण किया गया। इंसानियत को सबसे बड़ा मजहब मानने वाले कबीर को खरी बातों के लिए हिंदू-मुसलमान दोनों ही तबकों की आलोचना सहनी पड़ी, कोड़े खाने पड़े, जेल जाना पड़ा मगर कबीर ने सच्चाई का रास्ता नहीं छोड़ा। ‘चींटी के पग घुंघरू बाजे तो भी साहब सुनता है जैसे वाक्यों में आडम्बर का खुलासा और मानवीय दर्शन का चरम हैl ये नाटक अपने निर्गुणी विचारधारा का वाहक होने के कारण ही मुझे ज़्यादा प्रिय है l  हालाँकि मानवता का प्रचार हर युग की माँग है चाहे वो कबीर युग हो या आज का समय….कबीर हमेशा प्रासंगिक रहेंगे l

निर्देशक ने खुद सिकन्दर लोदी की भूमिका निभायी है जबकि कबीर की भूमिका में सायन सरकार दिखे। नाटक कबीर की तरह ही प्रासंगिक है।

 

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