फूल संभवतः सौंदर्य के सबसे पुराने प्रतीक हैं। सभ्यता के किसी प्राचीन आंगन में जंगल और झाड़ियों के बीच उगे हुए फूल ही होंगे जो इंसान को उस ख़ासे मुश्किल वक़्त में राहत देते होंगे। फूलों से ही पहली बार उसने रंगों को पहचाना होगा। ख़ुशबू को जाना होगा। पहली बार सौंदर्य का अहसास किया होगा। फूलों की अपनी दुनिया है। वो याद दिलाते हैं कि पर्यावरण के असंतुलन से लगातार धुआंती, काली पड़ती, गरम होती इस दुनिया में फूलों को बचाए रखना जरूरी है। उत्तराखंड की फूलों की घाटी अद्भुत, रंगबिरंगी सैंकड़ों प्रजातियों के फूलों का एक अलग संसार है। उत्तराखंड के सीमांत जनपद चमोली में मौजूद यूनेस्को की विश्व धरोहर रंग बदलने वाली फूलों की घाटी को हर साल आवाजाही के लिए 1 जून को आम पर्यटकों के लिए खोल दिया जाता है। पर्यटकों 31 अक्तूबर तक फूलों की घाटी में बिखरे पड़े सौंदर्य का आनंद उठा सकते हैं।
उत्तराखंड में पवित्र हेमकुंड साहब मार्ग पर फूलों की घाटी को उसकी प्राकृतिक खूबसूरती और जैविक विविधता के कारण 2005 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित किया था। 87.5 वर्ग किमी में फैली फूलों की ये घाटी न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया भर के पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है। फूलों की घाटी में दुनियाभर में पाए जाने वाले फूलों की 500 से अधिक प्रजातियां मौजूद हैं। हर साल देश विदेश से बड़ी संख्या में पर्यटक यहां पहुंचते हैं। यह घाटी आज भी शोधकर्ताओं के आकर्षण का केंद्र है। नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान और फूलों की घाटी सम्मिलित रूप से विश्व धरोहर स्थल घोषित हैं।
पर्वतारोही फ्रेंक स्मिथ ने की थी खोज
फूलों की घाटी को खोजने का श्रेय फ्रैंक स्मिथ को जाता है। जब वह 1931 में कामेट पर्वत के अभियान से लौट रहे थे तब रास्ता भटकने के बाद 16700 फीट ऊंचे दर्रे को पार कर भ्यूंडार घाटी में पहुंचे। यहां मौजूद असंख्य प्रजातियों के फूलों की सुंदरता को देखकर वो आश्चर्यचकित हो गये। फूलों की घाटी का आकर्षण इतना गहरा था कि वो फ्रैंक स्मिथ को 1937 में दोबारा यहाँ खींच लाया। इस बार उन्होंने यहाँ के फूलों पर गहन अध्ययन व शोध किया और 300 से अधिक फूलों की प्रजातियों के बारे में जानकारी एकत्रित की। अपने इस संपूर्ण अध्य्यन को फ्रैंक स्मिथ नें 1938 में ”वैली ऑफ फ्लावर” नामक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया। इस पुस्तक के प्रकाशन के बाद दुनिया ने पहली बार फूलों की इस घाटी के बारे में जाना।उसके बाद से आज तक इस घाटी के फूलों का आकर्षण हर किसी को अपनी ओर खींचता है। कहा जाता है कि फ्रैंक स्मिथ यहां से कई किस्म के बीज अपने देश ले गये थे।
मार्गेट लैगी की कब्र
1938 में विश्व के मानचित्र पर फूलों की घाटी के छा जाने के बाद 1939 में क्यू बोटेनिकल गार्डन लन्दन की ओर से जाॅन मार्गरेट लैगी, 54 वर्ष की उम्र में फूलों का अध्यन करने के लिए आई थी। अध्य्यन के दौरान दुर्भाग्यवश फूलों को चुनते हुए 4 जुलाई 1939 को पहाड़ी की एक ढाल से गिरने से उनकी मौत हो गई।जॉन मार्गेट लैगी की याद में यहाँ पर एक स्मारक बनाया गया है। यहां आने वाले पर्यटक लैगी के स्मारक पर श्रद्धा सुमन अर्पित कर उन्हें याद करते है।
पांच सौ प्रजाति से अधिक फूल
फूलों की घाटी में पांच सौ प्रजाति के फूल अलग-अलग समय पर खिलते हैं। यहां जैव विविधता का खजाना है। यहां पर उगने वाले फूलों में पोटोटिला, प्राइमिला, एनिमोन, एरिसीमा, एमोनाइटम, ब्लू पॉपी, मार्स मेरी गोल्ड, ब्रह्म कमल, फैन कमल जैसे कई फूल यहाँ खिले रहते हैं। घाटी मे दुर्लभ प्रजाति के जीव जंतु, वनस्पति, जड़ी बूटियों का संसार बसता है।
हर 15 दिन में रंग बदलती है ये घाटी
फूलों की घाटी की खास बात यह है कि हर 15 दिन में यहां अलग-अलग प्रजाति के रंगबिरंगे फूल खिलने से घाटी का रंग भी बदलता रहता है। यह ऐसा सम्मोहन है, जिसमें हर कोई कैद होना चाहता है।
– कैसे पहुंचे और कब आएं फूलों की घाटी
फूलों की घाटी पहुंचने के लिए सड़क मार्ग से गोविंदघाट तक पहुंचा जा सकता है। यहां से 14 किमी. की दूरी पर घांघरिया है। समुद्र तल से यहां की ऊंचाई 3050 मीटर है। यहां लक्ष्मण गंगा पुलिया से बायीं तरफ तीन किमी की दूरी पर फूलों की घाटी है। वैसे तो घाटी पर्यटकों के लिए पहली जून को खुल जाती है लेकिन जुलाई प्रथम सप्ताह से अक्तूबर तृतीय सप्ताह तक यहां फूलों की छटा सबसे खूबसूरत होती है। यहाँ विभिन्न प्रकार की तितलियां भी पाई जाती हैं। इस घाटी में कस्तूरी मृग, मोनाल, हिमालय का काला भालू, गुलदार, हिम तेंदुआ भी दिखता है।