मिदनापुर । विद्यासागर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की ओर से आजादी के अमृत महोत्सव पर ‘स्वातंत्र्योत्तर हिंदी कविता: राष्ट्र, इतिहास और लोकतंत्र’ विषय पर एक अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ विभाग के शोधार्थी पंकज कुमार सिंह द्वारा सरस्वती वंदना के साथ हुआ। स्वागत वक्तव्य देते हुए विभागाध्यक्ष डॉ प्रमोद कुमार प्रसाद ने दिया। उन्होंने कुलपति प्रो. शिवाजी प्रतिम बसु के प्रति आभार प्रकट किया। उद्घाटन वक्तव्य देते हुए विद्यासागर विश्वविद्यालय के कला और वाणिज्य के डीन प्रो.तपन कुमार दे ने कहा हिंदी विभाग द्वारा आयोजित यह संगोष्ठी इस अर्थ में महत्वपूर्ण है कि आजादी के 75 वर्ष के इतिहास को हिंदी कविता में तलाशने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने स्वातंत्र्योत्तर हिंदी कविता के मूल स्वर पर चर्चा करते हुए कहा कि हिंदी कविता जनोन्मुखी है। बीज भाषण देते हुए प्रो. दामोदर मिश्र (कुलपति, हिंदी विश्वविद्यालय, हावड़ा) ने कहा कि स्वातंत्र्योत्तर हिंदी कविता में राष्ट्र, इतिहास और लोकतंत्र पृथक नहीं बल्कि एक दूसरे से जुड़े हुए हैं।उन्होंने स्वातंत्र्योत्तर हिंदी कविता की समृद्ध परंपरा और वैशिष्टयों पर चर्चा करते हुए कहा कि हिंदी कविता ने नवजागरणकालीन कविता की परंपरा और लोकतांत्रिक मूल्यों को अपना विषय बनाया। अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए प्रो मुक्तेश्वरनाथ तिवारी (अध्यक्ष, हिंदी एवं भाषा भवन, विश्व भारती, शांतिनिकेतन) ने कहा कि स्वातंत्र्योत्तर हिंदी कविता ने साहसिक कार्य किया है। हिंदी कविता ने राष्ट्र और लोकतंत्र के दामन को थामे रखा।हिंदी कविता सामाजिक आजादी के स्वप्न का आख्यान है। स्वातंत्र्योत्तर हिंदी कविता आजादी के बाद के संघर्ष का कथा है। डॉ सत्यप्रकाश तिवारी ने कहा कि आजादी के बाद के भारत के विविध छवियों पर चर्चा करते हुए कहा कि हिंदी कविता ने आधुनिक विमर्शों को अपना केन्द्रीय स्वर बनाया। नीदरलैंड से जुड़ी डॉ पुष्पिता अवस्थी का नेटवर्क कमजोर रहने के कारण उन्होंने अपना संदेश भेजते हुए कहा कि हिंदी कविता उम्मीद और व्यवस्था-विरोधी कविता है। प्रो आशीष त्रिपाठी (काशी हिंदी विश्वविद्यालय, वाराणसी) ने कहा कि स्वातंत्र्योत्तर हिंदी कविता प्रतिरोध और संघर्ष की कविता है।हिंदी कविता लोकतंत्र की क्रिटिक रचती है। हिंदी कविता ने मानव विरोधी अलोकतांत्रिक गठजोड़ और चरित्र को चिह्नित करती है। कार्यक्रम का संचालन डॉ संजय जायसवाल ने तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ श्रीकांत द्विवेदी ने दिया। तकनीकी संयोजन शोधार्थी मधु सिंह और रूपेश यादव ने किया। इस अवसर पर विज्ञान विभाग के डीन प्रो. सत्यजीत साहा, मकेश्वर रजक, नीरज शर्मा, कलावती कुमारी, ठाकुर, शशि शर्मा, जगदीश भगत ,प्रीति पटेल सहित देश-विदेश से बड़ी संख्या में साहित्य प्रेमी उपस्थित थे।