लिटिल थेस्पियन का 22वां रंग अड्डा सम्पन्न

कोलकाता । लिटिल थेस्पियन ने अपना 22वां रंग अड्डा सुजाता देवी विद्या मंदिर के प्रांगण में 28 अप्रैल को सफलतापूर्वक संपन्न किया । अप्रेल माह का रंग अड्डा मुख्य रूप से आग़ा हश्र कश्मीरी, रामेश्वर प्रेम, सफदर हाशमी तथा अज़हर आलम पर केंद्रित रहा l रंग अड्डा का मुख्य उद्देश्य छात्रों कों रंगमंच से जुड़ी बारीकीयों कों बताने के साथ- साथ रंगमंच से जुड़े विशिष्ट व्यक्ति, नाटककार, निर्देशक आदि के बारे में बताना भी है l स्कूल तथा कॉलेज में नाटक भी कहानी कि तरह ही पढ़ाया जाता रहा है l नाटक के प्रति रूचि पैदा करना भी रंग अड्डा का उद्देश्य है l आग़ा हश्र कश्मीरी के नाटक ‘सीता बनवास ‘ पर आलेख प्रियंका सिंह ने प्रस्तुत किया l आलेख के माध्यम से छात्र नाटक से जुड़े नाटककार के बारे में जानते है तथा समझते है l कॉलेज में छात्र केवल गिने चुनें नाटक ही पढ़ते है l इसीलिए उनकी जानकारी में कुछ ही नाटककार होते है l आलेख के माध्यम से वह कई और नाटककारों के विषय में भी जानकारी प्राप्त कर लेते है l सीता बनवास नाटक रामायण को आधार बना कर लिखा गया नाटक है l जो समाज को आईना दिखाता है l समाज में स्त्रियों को ही दोष देता आया है l राम भी एक धोबी के दोषारोपण के कारण ही सीता को बनवास पर भेज देते है l यहाँ राम के चरित्र पर ऊँगली नहीं उठती है केवल सीता को ही सवालों के घेरे में छोड़ दिया जाता है l रामेश्वर प्रेम के नाटक ‘पुत्र, फल और जहर’ पर आलेख पाठ सुधा गौड़ ने प्रस्तुत किया l प्रस्तुत नाटक में घर के मालिक को आधार बना कर समाज तथा देश के चरित्र को दिखाया गया है l वह व्यक्ति जो अपने घर का मुखिया है तथा धर्म का भी लेकिन वह पर स्त्री के साथ संबंध रखता है तो उसके चरित्र पर ऊँगली नहीं उठती है पर जब कोई नारी किसी पराये पुरुष से बात भी करती है तो वह कटघरे में खड़ी कर दी जाती है l पुरुष अपने स्वार्थ के लिए किसी कि भी आहुति दे सकता है चाहें वह उसका खुद का बेटा ही क्यों न हों बदले कि आग में वह अपने पुत्र को भी उकसा सकता है और उसे उसकी माँ का हत्यारा भी बना सकता है l भारतीय संस्कृति के नाम पर हम कुछ भी ऊल जलूल काम कर सकते है l लिटिल थेस्पियन कि निर्देशिका तथा वरिष्ठ रंगकर्मी उमा झुंझुनवाला ने सफदर हाशमी के जीवन के बारे में बताते हुआ रंगकर्मी कि प्रतिबद्धता पर रोशनी डाली | रंग अड्डा के अंत में अज़हर आलम के अंतिम नाटक ‘चाक ‘ का अभिनयात्मक पाठ किया गया l जिसे संगीता व्यास,सुधा गौड़, प्रियंका सिंह, पार्वती कुमारी शॉ, इंतेखाब वारसी, मो. आसिफ अंसारी, दानिश वारिस खान ने किया l जैसे चाक पर बर्तन घूमते है और चाक पर ही उनका आकर तय होता है उसी प्रकार समय के चाक पर बटवारे की त्रासदी का दुःख भोगता हुआ अभिशप्त मुस्लिम परिवार भारत से पाकिस्तान तथा पाकिस्तान से बंगलादेश बने अपनी अस्मिता को खो देता है भारतीय या हिंदुस्तानी कहे जाने परिवार से ‘बंगाल’ का धब्बा लगाए हुए मुस्लिम परिवार कि कहानी का दर्द दिखाया गया है जो देश का होकर भी प्रवासी है और अपने अस्मिता कि लड़ाई लड़ रहा है l रंग अड्डा का संचालन इंतखाब वारसी तथा दानिश वारिस खान ने किया l इस रंग मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित थे वरिष्ठ समाज सेवक श्री गोपाल अग्रवाल | उन्होंने कहा कि रंग मंच हमें हर परिस्थिति में जीना सिखाता है और यह विधा थी, है और हमेशा ही रहेगी |

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