खाली कंधों पर थोड़ा सा भार चाहिए,
बेरोजगार हूं साहब रोजगार चाहिए।
जेब में पैसे नहीं है डिग्री लिए फिरती हूं,
दिनोदिन अपनी ही नजरों में गिरती हूं।
कामयाबी के घर में खुले किवाड़ चाहिए,
बेरोजगार हूं साहब मुझे रोजगार चाहिए।।
प्रतिभा की कमी नहीं है भारत की सड़कों पर ,
दुनिया बदल देंगे भरोसा करो इन लड़कियों पर।
लिखते लिखते मेरी कलम तक घिस गई,
नौकरी कैसे मिले जब नौकरी ही बिक गई।
नौकरी की प्रक्रिया में अब सुधार चाहिए,
बेरोजगार हूं साहब मुझे रोजगार चाहिए।।
दिन रात करके मेहनत बहुत करती हूं,
सूखी रोटी खाकर ही चैन से पेट भरती हूं।
भ्रष्टाचार से लोग खूब नौकरी पा रहे हैं,
रिश्वत की कमाई खूब मजे में खा रहे हैं।
नौकरी पाने के लिए यहां जुगाड़ चाहिए,
बेरोजगार हूं साहब मुझे रोजगार चाहिए।।
” युवतियों की अंतर्आत्मा की आवाज़”