– डॉ. वसुंधरा मिश्र
रिश्ते रेशमी बंधन हैं
बंधक बना देते हैं
तोड़ने के लिए मजबूर भी करते हैं
रिश्तों की मिठास
भावों से खेलती है
फिर कड़वे जहर घोलती है
रिश्ते बड़े स्वार्थी हैं
जब जुड़ते तो छूटते नहीं
जब टूटते तो जुड़ते नहीं
मन की अदृश्य सुई से सिले हैं
रिश्तों के अनगिनत नाज़ुक धागे
तार तार होते भी देर नहीं लगाते
माँ से जुड़ी हूँ मैं माँ मुझसे
माँ से भी बिगड़े हैं रिश्ते
प्यार और भावों की खुराक से बनते हैं रिश्ते
त्याग तपस्या बलिदान विश्वास पर टिकते हैं रिश्ते
थोड़ी सी ठसक से मर जाते हैं रिश्ते
फिर तो लाश की तरह ढोए जाते हैं रिश्ते
कितनी ही दुहाई दो
सब पानी में बह जाते हैं रिश्ते
किश्तों में समझौता नहीं होता
मनुष्यों के बीच की धूरी है रिश्ते
रीढ़ की हड्डी हड्डी की तरह सीधे नहीं है रिश्ते
निभाने के तरीके हैं रिश्ते
कश्ती में छेद की तरह हैं रिश्ते
अमूर्त में मूर्त होते हैं रिश्ते
दिखते हैं हौसला बढ़ाते हैं
काश! रिश्तों में स्थिरता होती
हर पल परिवर्तित होते हैं रिश्ते
रिश्तों के मरने के बाद
रिश्तों का बीमा नहीं मिलता