राजनीति की शिक्षिका…कांक्षी सिखा रही हैं महिलाओं को राजनीति

नयी दिल्ली : ‘मेरी एक अच्छे वेतन वाली नौकरी थी। एक लेजिस्लेटिव एसिसटेंट ऐंड पॉलिटिकल स्ट्रैटजिस्ट का काम कर रही थी। 2018 में जीएसटी काउंसिल ने सेनेटरी नेपकिन पर 18% टैक्स लगा दिया। मुझे इस फैसले पर बहुत हैरानी हुई। इसकी वजह जाननी चाही तो पता चला कि जीएसटी काउंसिल में महिलाएं थी ही नहीं। पॉलिसी मेकिंग पर काम करने के दौरान देखा कि फैसले लेते समय, खासकर महिलाओं जुड़े फैसले लेने में महिलाओं की भागीदारी दूर-दूर तक नहीं दिखाई देती। राजनीति में महिलाएं जब होती हैं तब उन्हें महिला मुद्दे ही देखने को कहा जाता है। बेरोजगारी से लेकर और सभी मुद्दों को पुरुषों की नजर से देखा जाता है। मैंने यह भी देखा कि चुनावी कैंपेन में भी महिलाओं की गिनती कम थी। जब इस तरह से राजनीति में महिलाओं की कम हिस्सेदारी और गैर बराबरी देखी तो 2019 में ‘नेत्री फाउंडेशन’ की शुरुआत की।’ भोपाल में पली-बढ़ी 28 साल की कांक्षी अग्रवाल की ये कहानी है।  वे कहती हैं, ‘जो मेरे जैसा दिखता नहीं है, मेरे जैसे कपड़े नहीं पहनता, मेरी परेशानियों को नहीं समझता, जिसे हर महीने माहवारी नहीं होती, वो हमारे लिए पॉलिसी मेकिंग में कैसे जस्टिस कर पाएंगे। टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसिस, मुंबई से अर्बन पॉलिसी ऐंड गर्वनेंस पढ़कर आई थी। मुझे लेजिस्लेटिव ऐड टू मेंबर ऑफ पार्लियमेंट ( एलएएमपी) फेलोशिप मिली, जिसकी वजह से मुझे कई एमपी और एमएल के साथ काम करने का मौका मिला। राजनीति में रहकर जब मैंने ये फर्क देखा तो इस असमानता को समानता में बदलने की कोशिश की। साथ ही मन में ये भी सवाल आ रहा था कि अगर मुझे राजनीति में एंट्री लेनी हो तो कैसे ली जाए? ये सारे सवाल और समझ ‘नेत्री’ (वुमन हू लीड) की पृष्ठभूमि बने।

‘बेटियों को नहीं दी जाती राजनीति की शिक्षा’
मेरी परवरिश भी राजनीतिक परिवार में हुई, लेकिन फिर भी वैसा समर्थन नहीं मिला जैसा मिलना चाहिए था। हमारे समाज में बेटियों को टीचर, इंजीनियर, पॉलिसी मेकर सब कुछ बनना सिखाया जाता है, राजनेता बनना नहीं। लड़कियों के लिए राजनीति ‘गंदी’ जगह मानी जाती है। बस ये सारे घटनाक्रम मेरी जिंदगी को आकार देने में भी काम आए और मैंने एक फाउंडेशन की शुरुआत की। अब मैं गर्व से कह सकती हूं कि मैं एक ऐसे फाउंडेशन की संस्थापक हूँ जो भारत का पहला ऐसा संस्थान है जो महिलाओं को राजनीति में जाने की ‘पढ़ाई’ कराता है। महिलाओं का पॉलिटिकल करिअर शेप कराता है। ये सब करना फूलों से भरा नहीं था। ‘नेत्री’ की शुरुआत से पहले खूब शोध किया और सीधे नई महिला के घर का दरवाजा खटखटाकर नहीं कहा कि ‘आओ राजनीति करें।’ इसके लिए मैंने अलग-अलग जिलों में महिलाओं के जो सेल्फ हेल्प ग्रुप चल रहे हैं उनसे संपर्क किया। उनके साथ पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया।

महिलाओं के लिए राजनीति ‘गंदी’?
जब महिलाओं को ‘नेत्री’ से जोड़ रही थी। तब सबसे बड़ी दिक्कत आई कि ‘राजनीति’ शब्द ही लोगों को पसंद नहीं, क्योंकि ये ‘गंदा’ शब्द माना है। इससे बड़ी परेशानी ये थी कि पंचायती राज के इर्द-गिर्द महिलाओं को राजनीति की जो समझ होनी चाहिए, वो नहीं है। कई महिलाओं को लगता है कि वे रिजर्व सीट पर ही लड़ सकती हैं, जबकि ऐसा नहीं है। उनमें राजनीति को लेकर कई तरह के मिथ हैं। पुरुषों के लिए सीटें रिजर्व होती हैं, ऐसा महिलाओं को लगता है। दूसरी समस्या, महिलाओं को लगता है कि घर और राजनीति दोनों संभाल नहीं सकते। राजनीति कोई अच्छा करिअर नहीं है। राजनीति फुल टाइम करिअर केवल पुरुषों के लिए समझा जाता है। तीसरी समस्या, जो महिलाओं ने सामने रखी, वो संसधानों की थी। महिलाओं के पास पैसे नहीं हैं। चौथी समस्या है कि उन्हें परिवार की तरफ से मोटिवेशन नहीं मिलता कि वे राजनीति में आएं… इस तरह की सच्चाइयां हमारे सामने आईं। इन सभी परेशानियों और मिथ्याओं को तोड़ते हुए हम महिलाओं को राजनीति में भुनाने की कोशिश करते हैं। अब मेरी लड़ाई सत्ता के डिसेंट्रिलाइजेशन की लड़ाई बन गई।

‘राजनीति का ककहरा सिखाती हैं’
मेरा काम गांव स्तर पर ज्यादा रहा। मैंने नेत्री की शुरुआत भोपाल से की। आज हम बरेली, राय बरेली, अमेठी और हारूदा जैसे जिलों में भी काम कर रहे हैं। अपनी संस्था के जरिए मैं इलेक्टोरल पॉलिटिक्स के अलावा ग्राम पंचायत तक की राजनीति बताती हूं। मैं उन्हें सिखाती हूं कि राजनीति में घुसते कैसे हैं? नेत्री के जरिए हम कई ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाते हैं। जिसमें पॉलिटिकल क्वीन बनने से लेकर पॉलिटिकल क्वीन बनाने तक का सफर तय कराते हैं। इन प्रोग्राम्स में बूथ मैनेजमेंट, कांस्टीट्यूएंसी मैनेजमेंट, ऑर्गनाइजिंग स्किल्स, कैपेसिटी बिल्डिंग, सोशल मीडिया हैंडलिंग, कम्युनिटी बिल्डिंग सब कराते हैं। राजनीति बहुत ही अकेलेपन का सफर है, इसलिए यहां कम्युनिटी बिल्डिंग होना भी बहुत जरूरी है।

‘महिलाओं की राजनीतिक समझ मजबूत करना जरूरी’
मेरे पास आज भी कई ‘भले मानुष’ आते हैं और कहते हैं कि कांक्षी आपको महिलाओं की आजीविका पर काम करना चाहिए, लेकिन मुझे लगता है बिना पॉलिटिकल एजंसी के इकनॉमिक इंपावरमेंट एक झूठ है। इसलिए महिलाओं का राजनीति में आना जरूरी है। मैंने देखा है कि महिलाएं जब सत्ता में आती हैं, वे अपने नागरिकों के प्रति ज्यादा जिम्मेदार होती हैं। घोषणापत्र के ज्यादा वादे पूरे करती हैं। महिलाएं शांति बनाए रखने में ज्यादा विश्वास रखती हैं। आर्थिक और सामाजिक नीतियों पर विशेष नजर रखती हैं। महिलाएं राजनीति में होती हैं तो अलग तरह से पॉलिसी मेकिंग करती हैं। इस वजह से पॉलिसी मेकिंग सबके हित की बात कर पाती है।
‘कानूनी समझ होना जरूरी’
महिलाओं की राजनीतिक समझ बेहतर होने से पहले कानूनी समझ होना जरूरी है। उसके लिए भी मैंने एक पिटीशन डाली है। हमें महिलाओं को ये समझाना जरूरी है कि न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका का स्ट्रक्चर क्या है? ये काम कैसे करते हैं? जब आपको किसी की जरूरत पड़े तो आप किसके पास मदद लेने जाएं? महिलाएं जब नोमिनेशन फाइल करने जाएं तो उसकी पूरी कानूनी समझ हो ताकि उनका नॉमिनेशन कोई कैंसिल न करवा दे। ‘माय कानून सखी’ पिटीशन शुरू की जिसमें हम राष्ट्रीय महिला आयोग से निवेदन कर रहे हैं कि वे देश में “कानून सखी” हॉटलाइन नंबर शुरू करें, जहां से महिलाएं अपने कानूनी और संवैधानिक अधिकारों के बारे में जानकारी इकट्ठा कर पाएं।
आज ‘नेत्री’ में महिलाओं की संख्या अच्छी खासी है। पिछले एक साल में हमने 400 महिलाओं को तैयार किया है। मैं बस यही कहना चाहती हूं कि राजनीति कोई रॉकेट साइंस नहीं है। ये एक लंबा और मुश्किल सफर है। राजनीति महिलाओं की स्थिति बदलने का सबसे आसान रास्ता है इसलिए इसके बारे में पढ़ना और कानूनी समझ बनाना जरूरी है
(साभार – दैनिक भास्कर)

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