चुनाव नजदीक आ रहे हैं। कुछ ही दिनों में मध्य प्रदेश और राजस्थान में चुनाव होने जा रहे हैं। इनकी बात इसलिए क्योंकि ये दोनों बड़े राज्य हैं और यहाँ जो भी नतीजे निकलते हैं, उसका असर देश की राजनीति पर पड़ना तय है। चुनाव सामने आते ही आरोप – प्रत्यारोप की राजनीति भी शुरू हो रही है और यह अभी और तेज होगी क्योंकि अगले साल लोकसभा चुनाव होंगे। नतीजा यह है कि अब तक जो हमारे जननेता व राष्ट्रपुरुष हाशिये पर थे, अब उन पर पड़ी धूल को झाड़पोंछ कर खड़ा किया गया है। सच तो यह है कि कोई महापुरुष किसी प्रदेश या समुदाय विशेष का नहीं होता मगर हमारा दुर्भाग्य यह है कि सबसे ज्यादा राजनीति इनके नाम पर ही होती है, नये इतिहास गढ़े जा रहे हैं। होना यह चाहिए कि हम अपने महापुरुषों को समान रूप से सम्मान दें मगर हो यह रहा है कि राजनीतिक दलों की सियासी चालें इस भावना को दबा रही है। महात्मा गाँधी और पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की जयन्ती एक ही दिन 2 अक्टूबर को पड़ती है। जब तक कांग्रेस की सरकार थी, कहीं न कहीं शास्त्री जी को एक कोने में डाला जाता रहा। ठीक उसी प्रकार, 31 अक्टूबर को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की पुण्यतिथि और देश के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयन्ती एक दिन ही पड़ी। हर बार सरदार पटेल हर जगह नजर नहीं आते थे मगर इस बार शायद यह पहली बार हुआ कि इन्दिरा गाँधी हाशिये पर चली गयीं। ये दोनों ही स्थितियाँ सही नहीं हैं। राजनेता राजनीति करेंगे, ये उनका काम है मगर सवाल यह है कि हमारी जिम्मेदारी क्या है? आखिर ये सभी नेता हमारे अपने हैं, पार्टियाँ आएंगी और जायेंगी मगर जनता ही है जो हमेशा से रही है। एक असंतुलन की स्थिति हर जगह है…एक बेवजह की तुलना की जाती है और एक अनावश्यक शीत युद्ध लग जाता है। सवाल यह है कि सभी महापुरुषों को हम समान रूप से सम्मान नहीं दे सकते। यह सही है कि विचारधाराएँ अलग हो सकती हैं मगर उनका अलग होना उनकी खासियत है। भला किस बगीचे में एक ही रंग के फूल अच्छे लगते हैं? ये हमारी खुशनसीबी है कि हमारे देश में इतनी विविधता है, इतने रंग हैं…हम सभी रंगों को सम्मान क्यों नहीं कर सकते? यह सही है कि आप बहुत मेहनत करते हैं, अच्छा काम कर रहे हैं मगर इससे आपको यह अधिकार कैसे मिल जाता है कि आप दूसरों को कमतर मानकर हाशिये पर धकेलें…आप अपनी बात विनम्रता से समझा भी सकते हैं।
एक समय था जब धोनी की तूती बोलती थी। अपनी सफलता के दम पर उन्होंने कई वरिष्ठ क्रिकेटरों को टीम से बाहर करवाया था…मगर ये समय है..करवट बदलता है। आज धोनी खुद युवराज, सहवाग और हरभजन की स्थिति में हैं। आज विराट भी वही कर रहे हैं बल्कि एक तरीके से कहा जाए तो हास्यास्पद तरीके से अपनी मनमानी कर रहे हैं जो कि सही नहीं है। क्षेत्र कोई भी हो, अनुशासन और परस्पर सम्मान बहुत जरूरी है और जब यह देश के इतिहास, उसकी संस्कृति से जुड़ा मामला है तो यह और भी संवेदनशील मामला हो जाता है। पटेल के नाम पर राजनीति करने वाले, महापुरुषों को अपनी सम्पत्ति मानने वाले ये समझें न समझें…हमें इस साजिश को समझना होगा और इसे काटना भी होगा। गाँधी हों, भगत सिंह हों, शास्त्री जी हों, सरदार पटेल हों, पंडित नेहरू हों, नेताजी हों या फिर इंदिरा गाँधी हों…इन सबने अपने समय के अनुसार काम किया, वे फैसले लिए जो उस समय उनके हिसाब से जरूरी थे। आप असहमत हो सकते हैं मगर इनके बीच तुलना गलत है और कमतर मानना तो अपराध है..इस बात को समझने की जरूरत है।