ये हैं यासीन जो 40 साल से कर रहे हैं मंदिरों की रखवाली मगर अपनी सर्जरी के लिए पैसे नहीं

कोलकाता से 125 किलोमीटर दूर मिदनापुर जिले का पथरा गांव में लगभग 300 साल पुराने 84 से ज्यादा मंदिर हुआ करते थे। लेकिन यदि ये मंदिर आज भी खड़े हैं तो इसकी एक वजह है मोहम्मद यासीन पठान। इस काम के लिए 1993 में उन्हें कबीर पुरस्कार जो पिछले साल उन्होंने वापस कर दिया। आज पठान काफी बीमार हैं और पैसे की तंगी के चलते अपनी सर्जरी के लिए फंड जुटा रहे हैं।

पठान बताते हैं कि वह बचपन से अक्सर इन मंदिरों को देखने जाता था। यहीं से मुझे इन पुराने मंदिरों के बारे में जानने की उत्सुकता बढ़ी और मुझे इन मंदिरों से जोड़ दिया।  लेकिन समय के साथ इन मंदिरों की हालत बद से बदतर होती जा रही थी। यहां आने वाले लोग जिनमें से ज्यादातर खुद हिंदू थे यहां से ईटें, पत्थर, मंदिर के अवशेष उठा कर ले जाते थे। ऐसे में यासिन ने ठान लिया कि इन मंदिरों और उनके बचे हुए अवशेषों को बर्बाद नहीं होने देंगे। इसी के साथ यासीन ने मंदिरों की निगरानी शुरु कर दी और उन्हें नुकसान पहुंचाने वालों को रोकना शुरु कर दिया।

मुसलमान होने के चलते आई दिक्कत, किया बिरादारी से बाहर

यासिन का लोगों ने विरोध किया क्योंकि वह मुसलमान थे। लोगों ने कहा कि उन्हें मंदिरों में घुसने या उनके बारे में कुछ कहने-करने का अधिकार नहीं है।  उनकी बिरादरी के लोगों ने काफिर कह अलग-थलग कर दिया। इसके अलावा उन्हें कई तरह की धमकियां भी दी गई। लेकिन उन्होंने 1992 में इस मामले को लेकर जागरुकता फैलाने और ज्यादा से ज्यादा लोगों को इस मुहिम से जोड़ने के लिए उन्होंने ‘पथरा आर्कियोलॉजिकल कमिटी’ बनाई। जिसमें गांव के मुसलमान और हिंदू शामिल हुए और आस-पास के इलाकों के आदिवासियों को भी इस समिती का हिस्सा बनाया।1998 में प्लानिंग कमीशन के तत्कालीन मेंबर प्रणब मुखर्जी ने इन मंदिरों के लिए 20 लाख रुपए की सहायता राशि घोषित की और आर्क्योलॉजिकल डिपार्टमेंट को इन मंदिरों का जिम्मेदारी सौंपी गई।

केवल 10 हजार रुपए में कर रहे हैं गुजारा

आज पथरा में पक्की सड़की, बिजली और टेलिफोन की सुविधा है। लेकिन 62 साल के यासीन केवल 10 हजार रुपए महीने में गुजारा कर रहे हैं। उन्होंने मंदिर की देखरेख के लिए कई लोन भी लिए। यासीन के चार बच्चे हैं और उनकी किडनी में स्टोन और दिल की बीमारी है। एक इंटरव्यू में वह कहते हैं कि निजी अनुभव भी बेहद खराब रहे। यासीन के मुताबिक वह इलाज के लिए चेन्नई गया। जहां होटल ने उनका वोटर आइकार्ड देखा और कहा कि हम मुस्लिमों को कमरा नहीं देते। यासीन कहते हैं कि साम्प्रदायिक सद्भाव का ताना-बाना कमजोर हो रहा है। इसे देखकर उन्हें काफी दुख है और इसी के चलते उन्होंने अपना सम्मान वापस करने का फैसला किया।

(साभार – दैनिक भास्कर)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *