साल के 6 महीने बीत गये और कोरोना काल का यह समय अब भी जारी है। पूरी दुनिया और विशेष रूप से हमारे देश में यह महामारी विकराल रूप धारण कर रही है मगर भारत की मुश्किलें यहीं खत्म नहीं होतीं। एक तरफ चीन को सबक सिखाना है तो दूसरी तरफ नेपाल भी परेशान करने लगा है। बड़ा अजीब सा समय है, मुश्किल है मगर हम इससे भी आगे निकलेंगे…लेकिन क्या दूसरों पर निर्भर रहकर आगे बढ़ा जा सकता है..क्या दूसरों के कन्धों पर चढ़कर आसमान छू लेना स्थायी समाधान है? थोड़ी देर के लिए मान भी लें कि यह हो सकता है मगर फिर एक और सवाल है…आखिर कब तक? एक समय के बाद आपको अपने दम पर खड़ा होना ही पड़ता है…इसका अर्थ यह नहीं है कि आप दूसरों की ओर पीठ घुमाकर बैठ जाएँ मगर अपनी जरूरतें खुद पूरी कर लेना ही एक रास्ता है….आज हम उसी मोड़ पर खड़े हैं। 59 चीनी ऐप पर प्रतिबन्ध लगने से हो सकता है कि आप बहुत निराश हों मगर क्या ये सच नहीं है कि निराशा की जगह अपने देश में इनको विकसित किया जाए…अपनी राह खुद निकाली जाए। हमारा तो मानना है कि गूगल, फेसबुक और व्हाट्सऐप का भी देसी विकल्प हम जितनी जल्दी खोज लें..हमारे लिए उतना ही अच्छा है…बाकी ये तो शुरुआत है…आगे – आगे देखिए होता है…अनलॉक का मतलब लापरवाही मत समझ बैठिएगा…अबकी तो यही कहना है…सुरक्षित रहिए और आत्मनिर्भर भी। अगर आत्मनिर्भर होते, रोजगार होता तो हमारे श्रमिक भाइयों को ऐसे कठिन दिन न देखने पड़ते और न हम सुशान्त सिंह राजपूत जैसे प्रतिभाशाली युवा को खोते…इसलिए यही समय है औऱ यह आत्मनिर्भर होने का ही समय है।