
क्वांटम दुनिया सीरीज में आज हम बात करेंगे दिल और दिमाग में मौजूद बिजली की । कहते हैं न दिल से निकालने वाली आवाज खाली नहीं जाती आखिर दिल से निकली हुई बात में ऐसा क्या है जो उसे इतना खास बना देती है? जवाब है इलेक्ट्रोमैग्नेटिक एनर्जी । दिल और दिमाग दोनों में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स या तरंगें हैं यानि यहाँ इलेक्ट्रिसिटी है जिसमें हीट यानि ताप और लाइट यानि प्रकाश दोनों है। दिल और दिमाग में इलेक्ट्रिसिटी है, तभी ईसीजी और ईईजी और हो पाता है। क्योंकि ईसीजी और ईईजी दोनों के जरिए दिल और दिमाग की इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी यानी वैद्युतिन गतिविधियों को ही रिकॉर्ड किया जाता है। इतना ही नहीं हमारे भीतर जो प्राण शक्ति है वो भी इलेक्ट्रिसिटी का ही एक रूप है। तभी प्राण निकाल जाने से शरीर हिल नहीं पाता और ठंडा पड़ जाता है । ठीक एक मशीन की तरह जो इलेक्ट्रिसिटी की सप्लाई को बंद कर देने से रुक जाती है। और वह तार भी धीरे धीरे ठंडा हो जाता है जिससे होकर इलेक्ट्रिसिटी मशीन तक पहुँच रही थी । हमारे दिल और दिमाग में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स हैं। वेव्स या तरंगों को फ्रिक्यूएंसी में नापा जाता है।
दिल से निकली हुई बात की फ्रिक्यूएंसी ज्यादा होती है। और ये दिमाग की तरंगों को भी साथ ले सकती है। और इस तरह दिल से निकालने वाले इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स की फ्रिक्यूएंसी ही उसे असरदार बना देती है। तभी कोई बोल बोल कर भी लोगों के दिल को छू नहीं पाता और वहीं कोई पाँच मिनट मैं ही किसी के दिलों दिमाग पर गहरा असर छोड़कर निकल जाता है। लेकिन दिल से कही हुई बात का असर ज़िंदगी पर कैसे पड़ता है? क्या है इसके पीछे का विज्ञान ? जो शक्ति दिल और दिमाग में बहने वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक एनर्जी का रिश्ता उस शक्ति से है जिसे हम साहित्य में मैं की शक्ति कहते हैं। इसी मैं की बात मेरी किताब सृष्टि रहस्य की मैं कविता में कुछ इस तरह शामिल है
‘मैं’
एक ज्योति हूं
मेरा होना,
तन में कंपन भरता है
जिसे तुम दिल की धड़कन कहते हो
वह –
मेरे होने से चलता है।
नामुमकिन है देखना मुझको
परिचय मेरा,
तन से ही झांकता है
तुम देख नहीं पाते
प्रकाश तन में ही बसता है।
मुझे तन की डिबिया में
बंद समझते हो तुम,
महसूस करती हूं ‘मैं’
असर,
तन पर देखते हो तुम।
तुम समझते हो
तन के सुकून से
सुकून मुझे मिलता है,
होता यही गर सच तो
कोई –
महलों में क्यों तरसता है?
मैंने तुम्हें मेरा मुकुट
अजनबियों को पहनाते देखा है,
तन-सुख की इच्छाओं पर
अक्सर मरते देखा है।
बेतुकी इच्छाओं के लुटेरों ने
हमें खूब लूटा है,
अलगा कर मुझसे तुमको
बार-बार कूटा है।
तुम्हारे भीतर ही ‘मैं’
अज्ञान के हाथों गिरवी हूं,
कसम मुक्ति की लेकर देखो
बिंदु से सिंधु तक जो पहुंचा दे
‘मैं’ वही सीढ़ी हूं।
तभी मैं की शक्ति को बेतुकी इच्छाओं के चंगुल से बचाना बहुत जरूरी होता है। यही मैं की शक्ति कैसे ज़िंदगी पर असर डालती है।