माहावारी…शर्म का नहीं सेहत और स्त्रीत्व का मामला है

-सुषमा त्रिपाठी

मेनस्ट्रुअल हाइजीन एक ऐसा विषय है जो महिलाओं की जिंदगी में बहुत मायने रखता है मगर इस पर हम बात नहीं करते और न ही इसे लेकर किसी प्रकार की जागरूकता है। माहावारी या मासिक धर्म महिलाओं को लेकर आज भी कई विश्वास या यूँ कहें कि अंधविश्वास हैं और कई बार यह महिलाओं के प्रति भेदभाव को भी जन्म होता है। कई बार उसे अलग कर दिया जाता है तो कहीं पर मंदिरों में महिलाओं के प्रवेश पर रोक लग जाती है, इसे लेकर हमारे घरों और समाज में हिचक है और इस पर बात करना शर्म की बात मानी जाती है।

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जाहिर है कि अगर हम समस्या को ही स्वीकार नहीं करते जो कि सीधे महिलाओं के स्वास्थ्य और उसके शरीर में होने वाले जैविक परिर्वतनों से जुड़ी प्रक्रिया है तो हम उसका निदान खोज सकेंगे, यह भी सोचना बेमानी है। एक अध्ययन के अनुसार इस देश में महज 12 प्रतिशत महिलाएं ही सेनेटरी नैपकिन इस्तेमाल करती हैं और इनमें से 96 प्रतिशत महिलाएं अधिकतर शहरों या उपनगरीय इलाकों में रहने वाली महिलाएं हैं।

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97 प्रतिशत गायनोकोलॉजिस्ट मानते हैं कि सेनेटरी नैपकिन का इस्तेमाल रिप्रोडक्टिव ट्रैक्ट इन्फेक्शन यानि सँक्रमण को काफी हद तक कम कर सकता है। मासिक धर्म से जुड़े हास्यास्पद मिथक गहरी वर्जनाओं को जन्म देते हैं। माना जाता है कि महिलाएं इस दौरान अपवित्र, बीमार और अभिशप्त होती हैं। एक सैनेटरी पैड बनाने वाली कम्पनी ने अपने हालिया अध्ययन में पाया कि 75 फ़ीसदी महिलाएं अब भी पैड किसी भूरे लिफ़ाफ़े या काली पॉलीथीन में लपेटकर ख़रीदती हैं। इससे जुड़ी शर्म के कारण परिवार के किसी पुरुष के हाथों इसे मंगवाना तो बहुत कम होता है।

मुझे याद है कि अपनी तीन बड़ी बहनों के साथ एक बड़े परिवार में पलते-बढ़ते हम क्या-क्या जतन करते थे कि किसी को हमारी माहवारी के बारे में ख़बर न लगे। मुझे याद है कि अपनी तीन बड़ी बहनों के साथ एक बड़े परिवार में पलते-बढ़ते हम क्या-क्या जतन करते थे कि किसी को हमारी माहवारी के बारे में ख़बर न लगे। पिता और भाइयों को तो बिल्कुल भी नहीं। माहवारी के दौरान हमारी माँ पहले से ही पुरानी चादरों को काट कर एक बक्से में छुपा कर रख देती थीं।

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भारत में कई औरतों के लिए माहवारी की तस्वीर नहीं बदली है। बहुत से हालिया अध्ययनों से पता चला है कि औरतों के स्वास्थ्य के लिए ये सब कितना बड़ा ख़तरा है।शोध से पता चलता है कि ये एक ऐसा विषय है जिसने औरतों की बेहतरी, उनके स्वास्थ्य और स्वच्छता के मसले को प्रभावित किया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार गर्भाशय के मुंह के कैंसर के कुल मामलों में से 27 फ़ीसदी भारत में होते हैं और डॉक्टरों के अनुसार माहवारी के दौरान साफ़-सफाई की कमी इसकी बड़ी वजह है। रिपोर्टों के मुताबिक़ भारत में हर पांच में से एक लड़की माहवारी के दौरान स्कूल नहीं जाती है।

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15 साल की मार्गदर्शी उत्तरकाशी के गांव में रहती हैं और स्कूल जाना पसंद करती हैं। पहाड़ी रास्तों पर लंबा चलकर वो स्कूल जाती हैं, लेकिन पिछले साल जब उन्हें पहली बार माहवारी हुई थी तो उन्होंने स्कूल लगभग छोड़ ही दिया था। वे कहती हैं, “सबसे बड़ी मुश्किल इसको संभालने में होती है। मुझे शर्म आती है, डर लगता है कि कहीं दाग़ न लग जाए और लोग मेरा मज़ाक न उड़ाए।” मार्गदर्शी बताती हैं, “मुझे बहुत ग़ुस्सा आता है। समझ नहीं आता है कि इसको लेकर इतनी शर्म क्यों जुड़ी हुई है।” मार्गदर्शी डॉक्टर बनना चाहती हैं और इस बात से हैरान हैं कि जीव विज्ञान की कक्षा में जब माहवारी पर चर्चा होती है तो लड़के इतना हँसते क्यों हैं। मार्गदर्शी कहती हैं, “ये तो हर लड़की के साथ होता है. इतनी प्राकृतिक और सहज बात से हमें असहज होने पर मजबूर क्यों कर दिया जाता है।” ज़ाहिर है इस थोपी गई शर्म और चुप्पी की संस्कृति से बाहर आने का सिलसिला शुरू हो गया है। जैसे-जैसे औरतें अपने फ़ैसले ख़ुद करने लगी हैं, वैसे-वैसे तस्वीर भी बदलती जा रही है मगर यह इतना आसान आज भी नहीं है। अधिकतर माएं आज भी अपनी किशोरावस्था में जा रही बेटियों को देखती हैं तो उनके लिए मासिक धर्म को समझाना एक मुश्किल काम होता है। बच्चों को कई बार समझाना बेहद मुश्किल होता है, खासकर अगर उसकी उम्र कम है क्योंकि बच्चियाँ डर जाती हैं इसलिए इस  मसले को लेकर संवेदनशील होना भी बेहद जरूरी है।

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सबसे बड़ी दिक्कत दाग लगने को लेकर है जिसकी वजह से शर्म का सामना करना पड़ता है। आज भी 90 प्रतिशत संस्थानों, शिक्षण संस्थानों में सेनेटरी नैपकिन वेंडिंग मशीन नहीं है मगर देखा जाए तो यह रोजगार और जागरुकता का साधन बन सकता है। हाल ही में राज्य के महिला व बाल विकास विभाग, महिलाओं के लिए काम कर रही संस्था ऑल बंगाल विमेन तथा इको डेव कंसल्टेंसी ने ऑल बंगाल विमेन में सम्पूर्णा प्रोडक्शन सेंटर खोला जहाँ सेनेटरी नैपकिन की पैकिंग और बिक्री होगी। ये सैनेटरी नैपकिन सरकारी होम्स में बेचे जाएंगे और इसके लिए राज्य सेनेटरी नैपकिन वेंडिंग मशीनें लगायी जा रही हैं। 10 रुपए में 3 नैपकिन मिलेंगी। इसके लिए सरकार शिक्षण संस्थानों, अस्पतालों, संस्थानों, दफ्तरों से लेकर सार्वजनिक स्थानों पर सेनेटरी नैपकिन वेंडिंग मशीन लगाने की तैयारी कर रही है। कलकत्ता विश्वविद्यालय ने इस  दिशा में शुरुआत कर दी है। समस्या इन नैपकिन्स के नष्ट करने को लेकर है तो इसके लिए वेंडिंग मशीनों के साथ इनसिनिलेटर भी दिए जा रहे हैं जो पर्यावरण की रक्षा करते हुए इन नैपकिन्स को खत्म करेंगे।

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अच्छी बात यह है कि अब सिने तारिकाएं भी इसे लेकर जागरूकता लाने की कोशिश में साथ दे रही हैं। हाल ही में करीना कपूर ने कहा कि पुरुषों को भी इन दिनों में महिलाओं का साथ देना और उनको समझना चाहिए। प्रियंका चोपड़ा भी इस पर बात कर रही हैं तो इसका एक अच्छा प्रभाव पड़ रहा है और महिलाएं खुलकर बात कर रही हैं और पुरुष उनको समझ रहे हैं। दरअसल, अब जरूरत माहावारी को लेकर शर्म से आगे बढ़कर बात करने और आवश्यक कदम उठाने की है क्योंकि आखिरकार यह महिलाओं की सेहत और अस्मिता का मामला है, महिलाओं परिवार कीही नहीं बल्कि समाज और देश की भी धुरी हैं इसलिए यह उनके लिए ही नहीं हमारे देश के विकास के लिए जरूरी है, और कोई न करे तो खुद महिलाओं को इस दिशा में कदम बढ़ाने होंगे।

(इनपुट – साभार बीबीसी हिन्दी, सम्पूर्णा की तस्वीरें साभार – अदिति साहा)

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