वर्तमान में भारत ही न्यायालयों में जज से लेकर वकील तक महिलाओं की संख्या पुरुषों की तुलना में बेहद कम है। साल 2022 में बार काउंसिल ऑफ इंडिया की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक, देशभर में सिर्फ 15.3 फीसदी महिला वकील हैं। इसमें सबसे बड़े हाई कोर्ट यूपी में सबसे कम केवल 8.7 % महिला वकील हैं। मेघालय (59.3%) और मणिपुर (36.3%) में सबसे अधिक महिला वकील नामांकित हैं।
हालांकि कोर्ट रूम में स्त्रियों के लिए जगह बनाने का काम एक ऐसी महिला ने किया, जिन्होंने उस दौर में कानून की पढ़ाई की थी, जब महिलाओं के वकालत करने पर प्रतिबंध हुआ करता था। उन्होंने पहली महिला एडवोकेट बनकर भविष्य की नारी के लिए कोर्ट रूम के दरवाजे खोल दिए। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर भारत की पहली महिला वकील और वकालत के क्षेत्र में उनकी चुनौतियों के बारे में जानिए ताकि उनके योगदान के लिए उन्हें सम्मानित किया जा सके।
कौन हैं भारत की पहली महिला वकील – भारत की पहली महिला वकील कॉर्नेलिया सोराबजी है। उनका जन्म 15 नवंबर 1866 को महाराष्ट्र के नासिक जिले में हुआ था। उनके पिता एक पादरी थे, क्योंकि ईसाइयों पर पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव था, इस कारण ईसाई महिलाओं की शिक्षा पर प्रतिबंध नहीं था। हालांकि उच्च शिक्षा तो पहुंचने का रास्ता कोर्नेलिया के लिए भी आसान नहीं था। कोर्नेलिया की मां फ्रैंसिना फोर्ड की परवरिश एक अंग्रेज दम्पत्ति ने की थी, जिन्होंने उन्हें अच्छी शिक्षा दिलाई। फ्रैंसिना ने भी अपनी बेटी की पढ़ाई पर जोर देते हुए उन्हें यूनिवर्सिटी पढ़ने भेजा। कोर्नेलिया सोराबजी की शिक्षा- कोर्नेलिया पहली लड़की थीं, जिन्हें बाॅम्बे यूनिवर्सिटी में पढ़ने की इजाजत मिली। इसके पहले तक उस यूनिवर्सिटी में लड़कियों को दाखिले का अधिकार नहीं था। यहां से ग्रेजुएशन के बाद कोर्नेलिया आगे की पढ़ाई के लिए लंदन जाना चाहती थीं। हालांकि उनके परिवार के पास कोर्नेलिया को विदेश भेजने के पैसे नहीं थे लेकिन उनके पिता ने नेशनल इंडियन एसोसिएशन को पत्र लिखकर आगे की शिक्षा के लिए आर्थिक मदद मांगी। ब्रिटिश ननिहाल के कारण कोर्नेलिया को आसानी से आक्सफोर्ड जाने का मौका मिल गया।
वकालत की पढ़ाई करने वाली पहली भारतीय महिला – कोर्नेलिया सोराबजी ने आक्सफोर्ड के समरविल कॉलेज से सिविल लाॅ की डिग्री हासिल की और वकालत की पढ़ाई करने वाली पहली भारतीय महिला बन गईं। इसी के साथ उस कॉलेज से टाॅप करने वाली वह पहली भारतीय महिला थीं। भारत वापस आकर कोर्नेलिया ने 1897 में बॉम्बे यूनिवर्सिटी से एलएलबी की। डिग्री और योग्यता के बाद भी कोर्नेलिया वकील नहीं बन पाईं क्योंकि तब महिलाओं को वकालत करने का अधिकार नहीं था।
प्रैक्टिस के लिए किया संघर्ष – वह संघर्ष करती रहीं। विरोध का सामना किया और अंत में 1923 में कानून में बदलाव होते ही अगले वर्ष कोर्नेलिया सोराबजी को कोलकाता में बतौर एडवोकेट प्रैक्टिस का मौका मिला। हालांकि 1929 में 58 वर्ष की आयु में उन्हें हाईकोर्ट से रिटायरमेंट मिल गई।