महिला दिवस पर बेटी के लिए

 

geeta dubey

 

 

 

 

 

 

 

 

  • डॉ. गीता दूबे

ओ मेरी प्यारी बिटिया

ओ मेरी सोन चिरैया

आज महिला दिवस पर

चारों ओर गूंज रहे हैं नारे

रोशनी और आनंद के फौव्वारे

पट गया हैबाजार कीमती उपहारों से

आह्लादित हैं महिलाएं इन कारबारों से

पर तुम न समझना इसे अपनी सफलता

मेरी रानी यह नहीं है वह रास्ता

जिस पर चलकर पाओगी अपनी मंजिल

इन चोंचलों से कुछ भी न होगा हासिल।

ओ मेरी नन्हीं परी

ओ मेरी प्यारी कली

यह सब तमाशा है

बस घड़ी दो घड़ी।

ध्यान सेदेखो मेरी बिटिया

कल जिन लड़कियों/ औरतों ने

रखा था व्रत शिवरात्रि का

अच्छा वर पाने की कामना से

परिवार कल्याण की भावना से

और सोलह श्रृंगार कर

खिंचवाकर तस्वीरें

आकर्षक भंगिमा में

अपने – अपने देवताओं के साथ

हुलसते हुए बांटा था

सोशल मीडिया में गर्व के साथ।

आज वे ही सारी स्त्रियां

निकल पड़ी हैं

हाथों में मशाल लेकर

सड़कों और चौराहों पर,

गरज रही हैं मंचों पर।

लादी जा रही हैं फूल मालाओं से

बहलाई जा रही हैं अभिनंदन पत्रों से।

गर्वित हैं आज जो अपने साफल्य पर

कल फिर से ढकेल दी जाएंगी

अपने अपने घरों में,

दहलीज की सीमा के अंदर

जहाँ अपनी अपनी खिड़कियों से

अपने हिस्से का आकाश निहारती

अपनी सिसकियों को हृदय में दबाती

सारे तीज त्योहार खुशी खुशी मनाती

पति ,बेटे और परिवार की मंगल कामना के गीत गाती

बेटियों को कोख में ही दफनाती

इंतजार करेंगी वास्तविक  मुक्ति के दिन का।

ओ मेरी बिटिया

कभी इस छद्म मुक्ति के भुलावे में मत पड़ना,

अपनी आजादी उधार या सौगात में न मांगना।

उसे हासिल करना अपने दम खम से

अपनी ही शर्तों पर।

और अपनेसाथ साथ मुक्त करना

अपनी तमाम सखियों और सखाओं को

क्योंकि मुक्ति का सही आनंद और आस्वाद

अपनी नहीं  सबकी मुक्ति में है।

जहाँ मुक्त विचार और उदार आचार हो,

हर एक के लिए विकास का आधार हो।

जहाँ अर्गलाएं तन की ही नहीं

मन की भी कटकर गिरें

जहाँ हर मनु और मानवी को

अपने सपनों का घर मिले।

निर्भया, नयना और सोनी को न्याय मिले,

सत्ता का सुख और पद का आनंद ही नहीं

असहमति के लिए जगह और निर्णय का अधिकार मिले।

(कवियत्री स्कॉटिश चर्च कॉलेज की हिन्दी विभागाध्यक्ष हैं)

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